थार के 'जल-योद्धा' रच रहे पानी पर इतिहास!

बाड़मेर। बारिश की कमी, झोपड़ी या ढाणी से बहुत दूर जल का स्रोत और साफ़ जल की अनुपलब्धता। आमतौर पर रेगिस्तानी इलाके के गाँवों में ये शिकायतें ग्रामीणों की ज़ुबां पर मिल ही जाती है। लेकिन प्रगतिशील भारत में बाड़मेर और जालोर के ये ग्रामीण जो अपने आप को जल योद्धा के रूप में पहचाना जाना पसंद करेंगे, पानी पर एक इतिहास रच रहे हैं। थार रेगिस्तान के दूरस्थ इलाकों में बसे गाँवों में पेयजल समितियों के माध्यम से छोटे गाँव-ढाणी के हर घर तक ना केवल साफ़ पेयजल पहुँचाया और आरओ प्लांट्स का रख रखाव किया जा रहा है बल्कि साफ़ पानी से जुड़े स्वास्थ्य लाभ के बारे में जागरूकता भी फैला रहे हैं।

एक ऐसे ही जल योद्धा रेखा राम जो जोगासर कुआ गाँव की जल समिति के अध्यक्ष हैं, के चेहरे पर संतुष्टि के भाव उभरते हैं जब वे बताते हैं की किस तरह ग्रामीणों ने दशकों पुरानी पेयजल समस्या को जड़ से मिटाने के लिए कुछ नया करने की ठानी। उनके अनुसार, "वो दिन गए जब घर की महिलाओं को एक मटका पानी लेने के लिए मीलों लम्बा सफर तय करना पड़ता था। अब हमारी समिति के जरिये हम साफ़ पानी ढाणी- ढाणी पहुंचा रहे हैं। हमें ख़ुशी है कि राजस्थान सरकार और कॉर्पोरेट के सहयोग से हमने एक ऐसा समाधान पाया है जो कारगर साबित हुआ है।"

कुम्भा बाबा पेयजल समिति जोगासर कुआं गाँव के ग्रामीणों की पंजीकृत समिति है। यह समुदाय आधारित आर ओ इकाई के संचालन में महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रही है। जीवन अमृत प्रोजेक्ट अपनी तरह का पहला और सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। बाड़मेर और जालोर में तेल उत्पादन कर रही कंपनी केयर्न इंडिया के सामुदायिक प्रकल्प के रूप में इस अभियान को राज्य सरकार के पीएचईडी विभाग के जल सहयोग और टाटा प्रोजेक्ट्स तथा पिरामल फाउंडेशन के तकनीकी सहयोग से आगे बढ़ाया जा रहा है।

रत्ना राम भी एक जल योद्धा हैं जो सवाऊ पदम सिंह ग्राम जल समिति के अध्यक्ष हैं। उनका मानना है कि साधारणतया हमारी सारी अपेक्षा सरकार के एक तरफ़ा प्रयासों की तरफ लगी रहती है जबकि जीवन अमृत प्रोजेक्ट के तहत ग्रामीण, जल समिति के रूप में संयंत्र देखभाल की जिम्मेदारी खुद उठा रहे हैं। यही इसकी सफलता का मुख्य कारण भी है।

यह प्रोजेक्ट एक अनूठा उदाहरण है, जहाँ आधुनिक तकनीक को कॉरपोरेट फंडिंग के माध्यम से गाँव में ला कर स्वास्थ्य सम्बन्धी ज़रुरत के आधार पर सरकारी सहयोग के साथ आगे बढ़ा जाता है। पूर्व में इसी प्रोजेक्ट के तहत जगह-जगह एटीएम की तर्ज पर कार्ड स्वाइप करने पर पानी देने वाली मशीनों को स्थापित किया गया। छोटे टॉवरनुमा 'एटीएम' जल केंद्र बनाये गए हैं जिन्हें दूरस्थ स्थानों पर पीने के पानी की ज़रुरत को चौबीस घंटे पूरा किया जा सकता है। पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए 'सूचक' तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। केयर्न द्वारा सरपंच को संयंत्र के नींव कार्य में भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा जाता है ताकि समुदाय शुरूआती चरण से ही जुड़ा हुआ महसूस करे।

वर्तमान चरण में बाड़मेर और जालोर में तेल क्षेत्रों के निकटवर्ती गाँवों में 32 समुदाय आधारित आरओ वाटर प्लांट तथा 10 ऑटोमैटिक जल कियोस्क स्थापित किये गए हैं। प्रतिदिन इनके ज़रिये अस्सी हज़ार लीटर से अधिक शुद्ध जल का वितरण किया जा रहा है। कवास जल समिति के कोषाध्यक्ष मोटा राम के अनुसार पांच रुपए में बीस लीटर की साधारण दर पर फ़िल्टर जल का वितरण गाँवों तक किया जा रहा है। "जल समिति के सदस्य उत्साहित हैं कि हमारा राजस्व लगातार बढ़ रहा है, जिससे इस सिस्टम की सार संभाल आसान हो जाती है।" गाँव की महिलाएं भी उत्साह के साथ इसमें जुड़ रही हैं। कवास समिति की शारदा देवी के अनुसार गाँव की महिलाओं का प्रतिदिन कम से कम दो घंटे का समय बच रहा है क्यूंकि पीने का पानी अब घर तक पहुँच रहा है।

इसी प्रोजेक्ट के तहत जल वितरण में लगे वाहनों का इस्तेमाल केवल डिलीवरी वाहन के रूप में नहीं कर जागरूकता पैदा करने वाले जल रथ के रूप में किया जा रहा है। अपने तय दायित्वों से आगे बढ़ते हुए जल योद्धाओं की ये जल समितियां जागरूकता पैदा करने में भी सहयोगी बन रही हैं। जल योद्धाओं के लिए आँकड़े भी उत्साहित करने वाले हैं। प्रत्येक जल समिति जल वितरण के माध्यम से सात हज़ार रूपये का राजस्व प्रति सप्ताह प्राप्त हो रहा है। इस राजस्व से समिति आरओ प्लांट का रख रखाव किया जा रहा है। समितियों के माध्यम से तीस हज़ार ग्रामीणों को सीधे सीधे लाभ पहुँचाया जा रहा है। केयर्न इंडिया द्वारा इस तरीके को इस्तेमाल करते हुए जिले के अन्य हिस्सों में भी साफ़ पेयजल पहुँचाने की योजना है।
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