मिसाल-बेमिसाल : हर महीने ढाई-तीन लाख रुपए की दवाएं देते हैं दान में
नई दिल्ली। क्या आपने कभी ये सोचा है कि आपके द्वारा इस्तेमाल करने के बाद जो दवा कभी बच जाती है और आप कुछ समय बाद उसे यूं ही फैंक देते हैं...

वह दक्षिण पश्चिम दिल्ली के मंगलापुरी में किराये के कमरे से अपने इस अभियान को चला रहे हैं। मेडिसिन बाबा ने बताया कि उन्हें इस तरह का मेडिसिन बैंक चलाने की प्रेरणा पांच साल पहले लक्ष्मीनगर में मेट्रो के एक निर्माणाधीन पुल के गिर जाने के हादसे के बाद मिली जिसमें दो मजदूरों की मौत हो गयी थी और कई लोग घायल हो गये थे। तब उन्होंने देखा और महसूस किया कि कई मरीज धन के अभाव में दवाएं नहीं खरीद पाये।
साल 2004 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 65 करोड़ भारतीयों को जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं हो पातीं। हालांकि ओंकार नाथ बताते हैं कि इस काम में तकनीकी और कानूनी पेचदगी भी है क्योंकि बिना डॉक्टरी परामर्श के दवाएं सीधे मरीज को नहीं दी जा सकतीं। इस पेचीदगी को दूर करने के लिए वह कुछ अस्पतालों और संस्थाओं के माध्यम से गरीब मरीजों को दवाएं देते हैं जिस काम में डॉक्टरों का सीधा सहयोग होता है।

अहिंसा फाउंडेशन के सहयोग से काम कर रहे ओंकार नाथ कुछ संस्थाओं और एनजीओ को भी दवाएं दान देते हैं। खुद करीब 10 साल की उम्र से विकलांगता झेल रहे ओंकार नाथ हर रोज 5 से 7 किलोमीटर पैदल चलते हैं। लाल या नारंगी कुर्ता पजामा, जिस पर उनका पूरा परिचय लिखा मिल जाएगा, पहने हुए मेडिसिन बाबा दिल्ली के कई इलाकों में आज भी चिल्ला-चिल्लाकर दवाएं इकट्ठी करते हैं।
उनके मुताबिक दवाएं बेचने के आरोप भी लगते रहे हैं लेकिन वह अपना काम जारी रखते हैं। बची दवाइयां दान में, ना कि कूड़ेदान में के ध्येय वाक्य के साथ काम कर रहे ओंकार नाथ ने कहा, सोचा था कि आसान काम है, लेकिन ऐसा नहीं है। बहुत मुश्किल काम है, लेकिन मैं रुका नहीं, बल्कि काम को और बढ़ा रहा हूं।
एक ब्लड बैंक में मेडिकल सहायक के तौर पर काम कर चुके ओंकारनाथ बताते हैं कि पूरे भारत से और कई दूसरे देशों से भी इस परोपकार के काम में लोग उनसे संपर्क करते रहते हैं और दवाएं भी भेजते हैं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में कुछ महीने पहले आई आपदा के बाद राहत कार्यों के तहत उन्होंने खुद वहां के कुछ क्षेत्रों में दवायें पहुंचाई और आगे भी उस राज्य में 2-3 साल तक दवाएं पहुंचाना जारी रखेंगे।