महंगी हुई बजरी, निर्माण कार्य प्रभावित
जयपुर। प्रदेश में बजरी के लिए रॉयल्टी प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाने और कोर्ट की ओर से दिए जाने वाला समय समाप्त होने के कारण बजरी के दामों ...
गौरतलब है कि करीब डेढ़ साल पूर्व बजरी खनन के लिए आवंटन प्रक्रिया चालू करने के लिए राज्य सरकार ने ठेकेदारों को केंद्रिय खनन मंत्रालय से पट्टे लेने को कहा था, मगर उसके बाद समय सीमा खत्म हो गई और किसी प्रकार की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई। अप्रेल में एक बार फिर बजरी के दामों ने उछाल मारा। कारण था बजरी के लिए पटटा प्रथा शुरू होना।
ऐसे में अब सरकार के लिए भी बेहद पेचीदा काम था, क्योंकि कोर्ट के आदेश के मुताबिक जब तक आवंटन प्रक्रिया पूरी नहीं की जाएगी तब तक खनन कार्य नहीं किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक उस वक्त तक सरकार के बड़े प्रोजेक्ट चरम पर थे, जिसके चलते जनहित याचिका दायर कर छह माह में सभी प्रक्रियाएं पूर्ण करने के समय मांगा।
करोड़ों का खेल : जानकारी के मुताबिक बरसों से ठेकेदार अपनी मर्जी से खनन करते रहे हैं। अब केंद्रिय खनन मंत्रालय से प्रयावरण की अनुमति लेने में कानूनी प्रक्रिया में उलझने के कारण ठेकेदारों को धंध चोपट हो रहा है। माना जा रहा है कि बजरी के पेटे जहां सरकार को करोड़ो रुपए का राजस्व मिलता है, वहीं ठेकेदार सालाना करीब 500 करोड़ का कारोबार करते हैं। सबसे अधिक टोंकी की बनास नदी में खनन होता है। सूत्रों के मुताबिक यहां पर बकायदा खनन माफिया पनप चुके हैं।
क्या होगा असर : सारा दारोमदार आज आने वाले कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है। अगर खनन करने के लिए मिलने वाली पर्यावरण अनुमति नहीं मिलती है तो बजरी के दामों के संभवत: जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। चूंकि आचार संहिता लगी हुई है, इसलिए भी सरकार इस मामले में कोर्ट से गुहार नहीं लगा सकती। ऐसे में आम आदमी का मकान बनाने का सपने पर कुठाराघात होने वाला है।
दो दिन से बंद हजारों ट्रक : बजरी खनन रुकने के कारण प्रदेश में हजारों ट्रक खाली पड़े हैं। लाखों की सं या में मजदूर और दलाल बेरोजगार हो गए हैं। मकान बनाने की प्रक्रिया भी शहर में धीमी पड़ चुकी है। मजदूरी कर रोजाना रोटी के लिए जुगाड़ करने वाले मजदूरों और कारीगरों के लिए आने समय अधिक मुश्किल भरा हो सकता है।