आशीष प्रभाकर मामले पर आईपीएस अधिकारी पंकज चौधरी का पत्र वायरल
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे आईपीएस अधिकारी पंकज चौधरी के कथित पत्र मे उन्होंने लिखा है कि, दिवंगत पुलिस अधिकारी अाशीष प्रभाकर के परिवार के लिए हार्दिक शोक संवेदना एंव दुर्भाग्यपूर्ण क्षण आशीष की मौत एक सबक़ एंव आत्ममंथन का क्षण पुलिस विभाग के लिए। ये मेरी व्यक्तिगत राय एंव सोच है। क्या, आशीष की दुखद: मौत टाली जा सकती थी...? एक होनहार पुलिस अधिकारी की मौत, इस समाज एंव पुलिस के लिए कई प्रश्न छोड़ जाते है। मेरा मानना है कि जितना इस अधिकारी के बारे में जान पाया हुं, यह कई प्रकार से पुलिस के लिए बड़ा नुक़सान है? एेसे क्या कारण रहे, जो इस अधिकारी की मानसिक दशा का आभास पुलिस विभाग नहीं कर सका, जो आमजन की किसी भी समस्या का समाधान करता नज़र आता है। पुलिस एक परिवार के रुप में संचालित होती है, इसका आभास आशीष को क्यों नही हुआ? क्या आशीष को सबसे ज़्यादा असुरक्षा एवं भय इस विभाग से रहा, जो इतने बड़े परिवार को अपनी बात व्यथा रखने की हिम्मत नही जुटा सका।
यदि किसी ट्रेप, ब्लेकमैलिग, चीटिँग से परिवार तबाह होने के कगार पर था, तो पुलिस विभाग पर भरोसा रखना था, अपनी बातो को निडरता से बोलना था, खुद से कुछ ग़लती हो गई, उसको भी ठीक करना था और इस ट्रेप से बाहर आना था। पर शायद पुन: रिपीट कर रहा हूं, विभाग पर भरोसा नही रखा गया। यह मान लिया गया कि इस विभाग के अधिकांश अधिकारी, कर्मचारी, जवान उसका पक्ष नहीं मानेंगे और हंसी का पात्र बनायेंगे। मैं इस तथाकथित आशंका को सही भी मानता हूं एवं निरंतर इस बात का प्रबल विरोध इस विभाग के कुछ (जिनकी संख्या दिनदुनी रात चौगुनी बढ़ते) दलालों एंव चापलूसों पर करता रहा हूं, जो वर्दी तो पुलिस की पहनते हैं पर अपने स्वार्थ के लिए हाज़िरी कहीं और बजाते हैं।
पुलिसिंग में यह प्रजाति काफी समय से इस विभाग को खोखला कर रही है, यह उचित मंच नहीं है, अन्यथा विभाग के इन चापलुसों को उजागर करने में ज़्यादा वक़्त नही लगेगा। ये सबसे घातक तत्व है, जो पुलिस परिवार को खंडित कर रहे हैं। पुन: इस बेहद दुखद घटना से मर्मांहत हुँ और इस घटना के सामाजिक पहलु, पुलिस के भीतरी समीकरण को पुख़्ता करने की अपेक्षा रखता हूं, ताकि कोई अन्य प्रभाकर इस दशा में पुलिस विभाग को सबसे पहले अपना हितेषी मानेगा और आने वाले इस प्रकार के संकट से बाहर आ सकेगा।
— जयहिंद जयभारत जयसविंधान।