"देखिए, सियासत के अंडरवर्ल्ड की कहानी, निकाय चुनाव में कांग्रेस के टिकटों की हुई जमकर बिकवाली"
जयपुर। कहने को भले ही राजनीति को देश और जनता की सेवा का कार्यक्षेत्र कहा जाता है, लेकिन राजनीति के गलियारे में जाने के बाद राजनेता देश ...
ऐसा ही कुछ हुआ, हाल ही में राजस्थान के 46 नगर निकायों के लिए हुए निकाय चुनाव में, जिसमे टिकटों की जमकर बिकवाली हुई और जमकर खरीद-फरोख्त करने के बाद जिसने जितनी ज्यादा मोती रकम दी, उसका टिकट उतना ही पक्का हो गया। लेकिन 'ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है', कि किस तरह से राजनीति के मैदान में उतरने वाला खिलाड़ी दांव-पैच खेलता है और अपने स्वार्थ के लिए पब्लिक के बीच अपना अनोखा रूप लेकर पेश होता है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर जहां से कभी कांग्रेस ने सीधे महापौर का पद जीतकर अपनी झोली में डाला था, जिस जिले से जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण के 2 सांसद जीतकर आए, उसी जयपुर शहर में कांग्रेस आखिर क्यों फिसड्डी साबित हो गई। इसके पीछे कहने को भले ही पार्टी खुद कुछ भी कहे, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। चुनाव से पहले दावे तो ये भी किए थे कि भाजपा की अंदरूनी कलह का फायदा उठाकर अगर कांग्रेस को बोर्ड बनाने का मौक़ा मिल जाए तो वो भी मौक़ा देखा जाएगा, लेकिन चुनाव के बाद सामने आए नतीजों ने कांग्रेस को इस कदर धूल चटा दी कि आने वाले कई सालों में कांग्रेस के लिए संभल पाना फिलहाल काफी मुश्किल ही लग रहा है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा किस वजह से हुआ।
इसके पीछे एक बड़ी वजह यह रही कि कांग्रेस के टिकटों की जमकर बिकवाली हुई थी और किसी सौदे की तरह से ही खरीद-फरोख्त करके टिकटों का बंटवारा किया गया था। इस बात का खुलासा किया है राजस्थान के एक निजी समाचार चैनल ने, जिसने अपने 'ऑपरेशन पंजा' नामक स्टिंग में इस बात का खुलासा कुछ ऑडियो क्लिप्स के आधार पर किया है। फर्स्ट इंडिया ने इन ऑडियो क्लिप्स में बताया की किस तरह से कांग्रेस के टिकटों के बंटवारे के लिए सौदेबाजी की गई थी और किस तरह से साफतौर पर मांगी गई थी टिकट दिए जाने की एवज में कीमत और इसके लिए किस तरह से हुआ कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं में टिकट को लेकर मोल-भाव।
इन ऑडियो क्लिप्स में कुछ लोगों को फोन पर आपस में बात करते हुए सुना जा सकता है, जिसमे इनके द्वारा की गई बातों से ऐसा लगता है कि ये लोग भी अंडरवर्ल्ड की दुनिया में बोले जाने वाली भाषा में बात कर रहे हैं। इन क्लिप्स को सुनकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह से राजनीति में भी अंडरवर्ल्ड जैसी भाषा का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इन क्लिप्स के की गई आपसी बातचीत में जिक्र हो रहा है, 'पपीतों' और 'बच्चों' का, लेकिन इनका असल मतलब कुछ और ही है। चैनल ने बताया कि किस तरह से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की चर्चाओं में आला नेताओँ के नाम के साथ जुड़ रही हैं पपीतों की गिनती।