दीपावली पर पूरे शहर को अपना परिवार मानकर निभाई जाती है यह अनूठी परंपरा
भारतीय साल के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाए जाने वाले इस त्यौहार पर लोग अपने-अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में एक और जहां साफ-सफाई कर उसे नए रंग-रौगन कर सजाते हैं। वहीं घरों और दुकानों में रखे पुराने सामानों की जगह पर नए सामान लाते हैं, वहीं दूसरी ओर धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर उसका वंदन करते हैं और अपने-अपने घरों में माता लक्ष्मी का आह्वान करते हैं।
लोग अपने-अने घरों में आज भी दीपक जलाकर दीपमाला बनाते हैं और आतिशबाजी कर श्रीराम के लौटाने की खुशी मनाते हैं। दीपावली के दूसरे दिन को गोवद्र्धन पूजन के रूप में मनाया जाता है, जिसमें अपने घरों के बाहर गाय के गोबर से गोवद्र्धन बनाकर उसका पूजन किया जाता है। इसी दिन शाम के समय कई जगहों पर बेलों का पूजन किया जाता है।
बेलों का पूजन राजस्थान मे अजमेर जिले के उपखंड केकड़ी में बड़े ही अनूठे तरीके से किया जाता है, जिसमें खेतों में किसानों के साथी माने जाने वाले वाहन ट्रेक्टर और बेलों का पूजन किया जाता है। पूजा होने के बाद जहां ट्रेक्टर को फूलों और मालाओं से सजाया जाता है, वहीं बेलों के भी रंग-बिरंगे छापे लगाकर सजाया जाता है। इसके बाद बेल पालने वाले किसान अपने-अपने बेलों को पूरे शहर के निमित किये जाने वाले कार्य के लिए लेकर जाते हैं। पूरे शहर को अपना परिवार मानकर किए जाने वाला यह पुनित कार्य ही सबसे अनूठी परंपरा है, जिसे 'घासभैरूं' के नाम से जाना जाता है।
इस परंपरा में भैरूंजी के रूप में पूजे जाने वाले एक बड़े से शिलाखंड़ को पूरे शहर में घुमाया जाता है, ताकि शहर के किसी घर में किसी भी तरह की कोई आपदा-विपदा हो तो भैरूंजी उसे समाप्त कर अपने साथ ही ले जाते हैं और शहर को तमाम विपदाओं से बचाया जा सके। इस परंपरा में सबसे अचरज वाली बात यह है कि भैरूंजी के इस शिलाखंड की इस तरह से साल में सिर्फ इसी दिन पूजा जाता है और इस दिन के अलावा अगर कोई तीन-चार बलिष्ठ आदमी इसे उठाने का प्रयास करे तो वे इसे उठा सकते हैं, लेकिन इस दिन यह शिलाखंड इतना भारी हो जाता है कि इसे कई जोड़ी बेलों की मदद के साथ-साथ शहर के कई किसानों के द्वारा खींचे जाने पर भी यह बड़ी मुश्किलों से खींचा जाता है।
विशेष रूप से इसी दिन इस शिलाखंड के इतना भारी होने के पीछे भी एक अनोखी कहानी है। शहर में रहने वाले तमाम बुजुर्ग बताते है कि भैरूंजी के इस शिलाखंड़ को अपने स्थान से उठाए जाने से पहले काफी देर तक यहां इनके भजन-कीर्तन होते हैं और भैरूंजी के स्थान वाली सभी चढ़ाई जाने वाली शराब के समान ही श्रद्धालु इस पर भी शराब चढ़ाते हैं। यह सिलसिला काफी देर तक चलता है और ऐसा माना जाता है कि काफी शराब चढ़ाए जाने की वजह से ही भैरूंजी माने जाने वाले इस शिलाखंड का वजन बढ़ जाता है, जिसे बेलों और कई आदमियों की मदद से ही खींचा जा सकता है, इसे खेचने के लिए लगाए गए बेल भी इसे खींचते हुए भाग नहीं पाते हैं।
इसके लिए भी शहरवासियों के द्वारा एक युक्ति काम में ली जाती है, जिसमें बेलों के आसपास पटाखे फैंक जाते हैं, ताकि वे पटाखों की आवाज से डरकर भागे और भैरूंजी के इस शिलाखंड को आगे बढ़ाए। इन बुजुर्गों का कहना है कि पहले सद्भावना के साथ इस तरह पटाखे फैंके जाते थे, जिससे ये बेल डर से भागते थे और भैरूंजी का पूरे शहर में घुमाते हुए सुबह करीब तीन-चार बजे वापस अपने स्थान पर रख दिया जाता था।
'गंगा-जमुना' की होती है करोड़ों की बिक्री
अब खराब होने लगा 'माहौल'
बीते कई सालों में इस तरह की हरकतों से कई लोग और कई पुलिस वाले घायल हो चुके हैं। अब पुलिस वाले पहले से और भी अधिक सतर्क रहते हैं और आसपास के इलाकों से भी प्रलिस बुलाई जाती है और कई पुलिस वालों को सादा वर्दी में भी तैनात किया जात है, जिससे शरारती तत्वों पर उनके करीब रहकर उन पर कड़ी नजर बनाई रखी जी सके और उनके द्वारा किए जाने वाले किसी भी हरकत पर उन्हें तुरंत दबोचा जा सके।