घास भैरू की सवारी मे उमडा श्रद्धा का सेलाब , सवारी मे दिखा रोमांच
कोटा । बून्दी जिले के नैनवां उपखण्ड मे भी पाँच दिवसीय दिपावली पर्व की धुम है दिपोत्सव पर्व को सभी बडे हर्षोल्लास के साथ मना रहे है आज न...
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कोटा । बून्दी जिले के नैनवां उपखण्ड मे भी पाँच दिवसीय दिपावली पर्व की धुम है दिपोत्सव पर्व को सभी बडे हर्षोल्लास के साथ मना रहे है आज नेनवाँ उपखण्ड के देई कस्बे मे भाई दोज पर कस्बे मे बाबा घास भैरू की भव्य सवारी निकाली गई ,
घास भैरु की सवारी कस्बे के घास का भैरू का चौक से शुरू होकर मुख्य मार्ग होते हुऐ बस स्टेण्ड,नसियां ,शीतला चौक,घास का दरवाजा होते हुए वापस अपने निर्धारित स्थान पर पहुंची । इस
बीच लोगो मे अपने बैलो को जोतने के लिए होड लगी रही , पटाखो के शोर से चमकर बैलो का भीड को तितर बितर करना। लोगो का गिरना पडना हर पल रोमाँच पेदा करता रहा। आज भी इस प्राचीन साँस्क्रति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छते,चबूतरियां महिलाओ सहित लोगो की भीड से अटी रही। कई जगहो पर घास भैरू मचले जिनको मदिरा का भोग लगाकर मनाया गया। इस बीच बेल टूटने से घास भैरू रूके। कई लोग सवारी के दोरान चोटिल हो गए। सवारी को देखने के लिए कोटा,बून्दी,टोंक,सवाईमाधोपुर,नैनवां,करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रो से बडी सख्या मे लोग सवारी देखने पहुँचे।
कई वर्षो से चली आ रही है परम्परा
बाबा घास भेरु यहा टोंक जिले के घास गांव से आए हैं जो अपनी विलक्षण यात्रा के लिए प्रसिद्ध है ।
प्राचीन समय में इन्हें घसीटकर सवारी निकाली जाती थी बाबा घास की एक गोल पत्थर की प्रतिमा है जिसका वजन करीब 5 किवंटल है उन्हें तीन बराबर की लकड़ियों का सिंघाड़ा बनाकर आसन दिया जाता है जिसके लोहे की सांकल कुंडली में बांधी जाती है तथा बेल जोतकर बाबा की सवारी हर साल दीपावली कार्तिक शुक्लपक्ष की पड़वा को रात्रि बेल पूजन के पश्चात प्रारंभ होती है।
सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार ग्राम के मीणा समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी एवं ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं ।
उन्हें स्नान करवाया जाता है तथा मदिरा का भोग लगाया जाता है
पर्व के विशेष गीतों द्वारा उनका आदर सत्कार किया जाता है तब जाकर प्रसन्न होते हैं उनके प्रसन्न होने पर ही बेल की जोड़ी उन्हें खिंच पाती है अंयथा नहीं
देई ही नही आसपास के गांवो के किसान अपने बेलो बाबा घास के जोतने को लाते है बेलो को जोतने की होड़ का अद्भुत दृश्य देखने लायक होता है बेल अपनी बारी के लिए जबरदस्ती करते है । ग्रामीणों की भीड़ का ये आलम होता है कई लोग बेलो की रस्सीओ में उलझकर पेरो तले गिर जाते है
उनके ऊपर कई बेल व्यक्ति आदि निकलने से वह बेहोस तक हो जाते हैं साथ ही दीवाली के त्योहार के कारण सभी लोगमनोरंजन स्वरूप भांति भांति के पटाखे चलाते हैं जिनसे बेल डरकर भागते हैं
जिससे बहुत से लोग व बेल भी जल जाते हैं बाबा घास भेरु का चमत्कार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति या जानवरों की आज दिन तक मौत नहीं हुई है
दवा के नाम पर बाबा घास भेरु को दारू की बोतल चढ़ाना , कामी तेल चढ़ाना एवं अगर लगाना काफी होता है किसानो की मान्यता है कि बाबा घास की जुडी के नीचे बेल को व छोटे बच्चों को निकालना 12 महीने सुरक्षित रहने का आशीर्वाद प्राप्त होना माना गया है ।
घास भैरु की सवारी कस्बे के घास का भैरू का चौक से शुरू होकर मुख्य मार्ग होते हुऐ बस स्टेण्ड,नसियां ,शीतला चौक,घास का दरवाजा होते हुए वापस अपने निर्धारित स्थान पर पहुंची । इस
बीच लोगो मे अपने बैलो को जोतने के लिए होड लगी रही , पटाखो के शोर से चमकर बैलो का भीड को तितर बितर करना। लोगो का गिरना पडना हर पल रोमाँच पेदा करता रहा। आज भी इस प्राचीन साँस्क्रति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छते,चबूतरियां महिलाओ सहित लोगो की भीड से अटी रही। कई जगहो पर घास भैरू मचले जिनको मदिरा का भोग लगाकर मनाया गया। इस बीच बेल टूटने से घास भैरू रूके। कई लोग सवारी के दोरान चोटिल हो गए। सवारी को देखने के लिए कोटा,बून्दी,टोंक,सवाईमाधोपुर,नैनवां,करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रो से बडी सख्या मे लोग सवारी देखने पहुँचे।
कई वर्षो से चली आ रही है परम्परा
बाबा घास भेरु यहा टोंक जिले के घास गांव से आए हैं जो अपनी विलक्षण यात्रा के लिए प्रसिद्ध है ।
प्राचीन समय में इन्हें घसीटकर सवारी निकाली जाती थी बाबा घास की एक गोल पत्थर की प्रतिमा है जिसका वजन करीब 5 किवंटल है उन्हें तीन बराबर की लकड़ियों का सिंघाड़ा बनाकर आसन दिया जाता है जिसके लोहे की सांकल कुंडली में बांधी जाती है तथा बेल जोतकर बाबा की सवारी हर साल दीपावली कार्तिक शुक्लपक्ष की पड़वा को रात्रि बेल पूजन के पश्चात प्रारंभ होती है।
सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार ग्राम के मीणा समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी एवं ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं ।
उन्हें स्नान करवाया जाता है तथा मदिरा का भोग लगाया जाता है
पर्व के विशेष गीतों द्वारा उनका आदर सत्कार किया जाता है तब जाकर प्रसन्न होते हैं उनके प्रसन्न होने पर ही बेल की जोड़ी उन्हें खिंच पाती है अंयथा नहीं
देई ही नही आसपास के गांवो के किसान अपने बेलो बाबा घास के जोतने को लाते है बेलो को जोतने की होड़ का अद्भुत दृश्य देखने लायक होता है बेल अपनी बारी के लिए जबरदस्ती करते है । ग्रामीणों की भीड़ का ये आलम होता है कई लोग बेलो की रस्सीओ में उलझकर पेरो तले गिर जाते है
उनके ऊपर कई बेल व्यक्ति आदि निकलने से वह बेहोस तक हो जाते हैं साथ ही दीवाली के त्योहार के कारण सभी लोगमनोरंजन स्वरूप भांति भांति के पटाखे चलाते हैं जिनसे बेल डरकर भागते हैं
जिससे बहुत से लोग व बेल भी जल जाते हैं बाबा घास भेरु का चमत्कार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति या जानवरों की आज दिन तक मौत नहीं हुई है
दवा के नाम पर बाबा घास भेरु को दारू की बोतल चढ़ाना , कामी तेल चढ़ाना एवं अगर लगाना काफी होता है किसानो की मान्यता है कि बाबा घास की जुडी के नीचे बेल को व छोटे बच्चों को निकालना 12 महीने सुरक्षित रहने का आशीर्वाद प्राप्त होना माना गया है ।