सम्पादकीय : 'आरक्षण' की आस, बनती जा रही है सरकार के गले की फांस
कुल मिलकर हरियाणा के हालात ऐसे बन चुके हैं, जिसे देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि, आरक्षण की आग मे झुलस रहा जाटलैंड अब जल उठा है, जिसके चलते अब तक 10 लोग मौत की आगोश में समा चुके है और हालत दिन-ब-दिन बेकाबू होते ही जा रहे हैं। हालांकि प्रशासन की ओर से प्रदर्शनकारियों से कहा जा रहा है कि, "भीड़ के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं हो सकती है। इसलिए वे एक समिति बनाकर सरकार के साथ बातचीत के लिए आगे आएं।" वहीं ज्यादातर जाट नेताओं का कहना है कि, 'यह आंदोलन तब तक खत्म नहीं किया जाएगा, जब तक कि सरकार जाट समुदाय को आबीसी वर्ग में शामिल नहीं कर लेती।'
हर बार जब भी कहीं से आरक्षण की मांग बुलंद होने लगती है तो, प्रदर्शनकारी सबसे पहले रेलवे की पटरियों पर डेरा क्यों दाल लेते हैं। इसके कारण देश के मुख्य भागों से जोडऩे वाला रेल मार्ग सिर्फ बाधित ही नहीं, बल्कि किसी भी समय सुरक्षा प्रहरियों के संगीनों से गोलियों की आवाजों के बीच आशंकित रहता है और रेल से सफर करने वाले यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
एक बात समझ से बिलकुल पर है कि, आरक्षण की मांग पर सबसे ज्यादा परेशानियों का शिकार आखिर रेलवे मार्गों और रेल यात्रियों को ही क्यों बनाया जाता रहा है। जबकि रेलवे प्रशासन द्वारा रेलवे मार्ग को बाधित करना तो दूर की बात, पटरियों पर चलना तक भी दंडनीय अपराध में शामिल है। फिर आखिर रेलवे मार्ग को न सिर्फ बाधित कर देना, बल्कि पटरियों पर ही डेरा तक डाल लिए जाने के बावजूद रेलवे प्रशासन की ओर से क्यों कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
मौजूदा परिपेक्ष्य में आए दिन सिर उठा रही आरक्षण की इस मांग को लेकर भड़कने वाली आग में जलती देश की आम जनता का आखिर क्या कुसूर है, जो उन्हें भी किसी न किसी तरह से इस आग की लपटों से झुलसना पद जाता है। आरक्षण की मांग पर भीड़ में शामिल उपद्रवियों द्वारा की जाने वाली तोड़फोड़, आगजनी एवं अन्य संदिग्ध क्रियाकलापों के खिलाफ आखिर क्यों कोई कार्रवाई नहीं की जाती। जबकि देश में कानून-व्यवस्था के नाम पर कई मर्तबा कई बेनाहों को भी सलाखों के पीछे रहना पद जाता है। ऐसे में रेलवे स्टेशनों में आगजनी, रेलवे एवं सड़क मार्गों को बाधित करने, सार्वजानिक स्थलों पर तोड़फोड़ और आगजनी किया जाना क्या किसी तरह का कोई आपराधिक गतिविधियों में शामिल नहीं है।
दूसरी ओर, आरक्षण की मांग पर हंगामा करने वालों को भी यह सोचना चाहिए कि क्या महज सरकारी नौकरी हासिल कर पाने के लिए आरक्षण की राह पर निकलना मुनासिब है। या फिर उसकी जगह पर योग्यता को प्राथमिकता दिया जाना उचित होगा। अगर आपमें योयता है, तो फिर आपको आरक्षण की जरुरत ही कहां रह जाती है और अगर महज आरक्षण के नाम पर ही आप अपने इरादों में कामयाब हो भी जाते है तो, जरा सोचिए कि महज आरक्षण के बूते पर मिलने वाली उस नौकरी का 'कैडर' कैसा होगा।
जबकि देश में कई ऐसे भी काबिल, होनहार और योग्य व्यक्ति हैं, जो दिन-रात एक करके, ना जाने किन परिस्थितियों का सामना करके, अपने मां-बाप की खून-पसीने की कमाई से शिक्षा हासिल करके नौकरी हासिल करते हैं, उनको मिलने वाली नौकरी का 'कैडर' निश्चित ही आपसे कई बेहतर और कई ऊंचा होगा, जिन्हें आपको आखिर में 'सर' ही कहना होगा। फिर आपको मिलने वाले उस आरक्षण का वजूद ही क्या रह जाएगा, जब आपसे ज्यादा काबिल व्यक्ति को ही उसकी योग्यता के आधार पर आपसे ऊंचा ओहदा मिलेगा।
खैर, इसमें कसूर उन लोगों का भी नहीं है, जो आज आरक्षण की मांग पर इतना हो-हल्ला कर रहे हैं, क्योंकि इन लोगों को ये राह आखिर दिखाई भी तो किसी सरकार ने ही है। सरकार की दिखाई हुई इस आरक्षण की राह पर आज आए दिन कोई न कोई निकलता जा रहा है और आरक्षण हासिल करने के लिए सरकार तक अपनी मांग पहुँचाने के खातिर हर तरीका अपना रहे हैं, जिससे कई लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अब सरकार को भी सोचना चाहिए कि आखिर आरक्षण की इस लड़ाई का अंत ही क्यों न कर दिया जाए और इसके स्थान पर योग्यता व काबिलियत को क्यों न तवज्जो दी जाए। इससे जो व्यक्ति काबिल और योग्य होगा उसे उसकी काबिलियत और योग्यता के अनुसार नौकरी मिल पाएगी और तब न किसी को ये अहसास होगा कि मैं महज आरक्षण के कारण पिछड़ गया।
देश में ऐसे कई मां-बाप हैं, जो अपनी औलाद को पढ़-लिखकर काबिल बनाने के लिए न जाने कैसी-कैसी परिस्थितियों से गुजरते हैं और कई मां-बाप तो ऐसे भी होते होंगे, जो कहीं से कर्जा लेकर अपनी औलाद को पढ़-लिखकर काबिल बनाते हैं, लेकिन महज आरक्षण के आधार पर नौकरी पाने वालों के कारण नौकरी नहीं मिलने पर अपने और अपने मां-बाप के सपनों को चकनाचूर होता हुआ देखकर तिल-तिल मरते रहते हैं, तो क्या महज आरक्षण के खातिर ऐसे काबिल और योग्य युवाओं के हौसलों का गला घौंट देना उचित होगा?