फीकी पड़ रही "गुलाबी" नगरी की रंगत
निगम प्रशासन की ओर से पिछले साल की गई कवायद के तहत चारदीवारी के अधिकांश इलाकों में जगह-जगह पर स्प्रे कलर का इस्तमाल कर शहर की रंगत लौटाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे, जिसका नतीजा ढ़ाक के तीन पात जैसा ही निकला। जबकि यहां पक्का एवं टिकाऊ रंग किए जाने के लिए पुराने व परांपरागत तरीके से रंग-रोगन किया जाता तो वह ज्यादा लम्बे समय तक टिका रह पाने में कारगर साबित हो पाता, जिससे नगर निगम को रंग-रोगन में आने वाले अतिरिक्त खर्चे की बचत हो सकती थी।
शहर की ऐतिहासिक इमारतों का आलम यह है कि आज शहर की शान-ओ-शौकत के रूप में देखे जाने वाला हवामहल भी एक बार फिर से अपना नूर खोता जा रहा है। वहीं चारदीवारी के गायब होते सौंदर्य से पर्यटकों को भी निराशा हाथ लग रही है। इसी ऐतिहासिक विरासत को देखने के लिए हर वर्ष हजारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं।
शहर के हैरिटेज को विरुपित करने पर सख्त कानून है, मगर जिन जगहों पर समानांतर क्रम में दुकानों पर नाम लिखवाने के लिए नगर निगम ने सभी दुकानों के बाहर एक समान रंग करवाया, वहां आज फिर से अलग-अलग रंग और आधुनिक मल्टीप्लेक्स इमारतें दिखाई देने लगी है। ऐसे में हैरिटेज दुकानों और इमारतों की एकरूपता गायब हो चुकी है।
वहीं दूसरी ओर हैरिटेज इमारतें भी गायब होती दिखाई देने लगी है। ऐसे में जिन इमारतों और दुकानों को गुलाबी रंगत प्रदान करने के लिए करोड़ों रुपए का खर्चा किया था, उनकी उड़ती हुई रंगत के बाद उपजे हालात को देखकर लगता है कि शहर की रंगत लौटाने के लिए किए गए खर्चे का ज्यादा टिकाऊ परिणाम नहीं मिल पाया।