दो हजार रु. लीटर के दूध के लिए मची मारामारी
विशाखापटनम। यूं तो गधे को कई लोग महज मजाक का पात्र समझते हैं, लेकिन लगता है अब इन लोगों एक बार फिर से सोचने की जरूरत है। मादा गधे के दूध ...
आंध्र प्रदेश के तेलंगाना और कोस्टल इलाके में राज्य विभाजन को लेकर गतिरोध इन दिनों चरम पर है। लेकिन, इस तनाव के बीच भी बंजारों का एक ग्रुप उत्तरी तेलंगाना इलाके से गधों के झुंड के साथ कोस्टल इलाके में आया है। बंजारों के इस ग्रुप का बिजनस चर्चा का विषय है। कोस्टल इलाके में मादा गधों के दूध ऊंची कीमत लेकर बेचे जा रहे हैं। बंजारों के इस ग्रुप का दावा है गधे का दूध नवजात शिशुओं की सेहत के लिए जबर्दस्त है।
शिवाजीपालेम में जी. लिंगाम्मा नाम की एक महिला गधों की एक जोड़ी के साथ थी और दूध खरीदने वालों की उसके पास लाइन लगी थी। 4 परिवारों के 20 लोग 15 जोड़ी गधों के साथ तेलंगाना के अदीलाबाद जिले से आए हैं। गधे के दूध को लेकर लोगों में भरोसा है कि नवजात शिशुओं में सांस और अस्थमा की समस्या के लिए यह रामबाण है।
लिंगम्मा ने बताया कि हम लोग एक कप (25 एमएल) गधे का ताजा दूध 200 रुपए में बेचते हैं। यदि किसी को ज्यादा मात्रा में दूध चाहिए तो 2000 रुपए प्रति लीटर मिलता है। दूध की महंगी कीमत होने के बावजूद लोग बिना किसी तोल-मोल के खरीदते हैं। दूध बेचने वाले ग्रुप के हर एक शख्स की कमाई रोज 700 से 800 रुपए है।
लिंगम्मा ने बताया कि इनका ग्रुप पिछले साल भी दूध बेचने आया था। इसी दौरान एक हाउसवाइफ के. सत्यवती ने सलुर में लिंगाम्मा से 75 एमएल दूध खरीदा। सत्यवती ने बताया कि उनकी बेटी ने एक बच्चे को जन्म दिया है। जब मैंने सुना कि गधे के दूध बेचने वाले हमारी सड़कों पर फेरी लगा रहे हैं तो मैं काफी खुश हुई थी।
सत्यवती ने बताया कि मेरे पोते की अच्छी सेहत के लिए गधे का दूध बेहद उपयोगी है। यह एक तरह से आयुर्वेदिक औषधि है। गधे के दूध पर सत्यवती के भरोसे से आयुर्वेद हेल्थ सेंटर श्रीनगर के सीनियर आयुर्वेद डॉक्टर वी. सुसीला भी इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने कहा कि गधे का दूध नवजात शिशुओं को अस्थमा, टीबी और गले के इन्फेक्शन से दूर रखने में सक्षम है।
विशाखापटनम जिले में डिपार्टमेंट ऑफ ऐनिमल हज्बंड्री के जॉइंट डायरेक्टर वेंकटेश्वर राव ने गधे के दूध की मेडिकल उपयोगिता के बारे में बताया कि यह पूरी तरह से ह्यूमन ब्रेस्ट दूध की तरह है। दोनों में तुलना किया जाए तो गधे का दूध फैट और प्रोटीन के मामले में ह्यूमन ब्रेस्ट दूध के मुकाबले कमजोर है, लेकिन लैक्टोस के मामले में इसका मुकाबला नहीं।
गधे के दूध का इस्तेमाल प्राचीन काल में 6 से 8 महीने तक के बच्चों को अस्थमा और सांस संबंधी अलर्जी से बचाने के लिए किया जाता था। इस दूध की मांग बेंगलुरु और चेन्नै में भी है। इसके दूध का इस्तेमाल स्किन की चमक और कोमलता बनाए रखने में भी किया जाता है। कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स में भी गधे के दूध का इस्तेमाल किया जाता है।
वेंकटेश्वर राव ने कहा कि यह महज संयोग नहीं है कि क्लियोपेट्रा हर दिन नहाने के लिए 700 गधों के दूध का इस्तेमाल करती थीं। राव के मुताबिक गधे का दूध यूरोपीय देशों में बेहद पॉप्युलर है। दुनिया के सबसे कीमती डेयरी प्रॉडक्ट्स और चीज बनाने में गधे के दूध का इस्तेमाल होता है।