यज्ञ शब्द संस्कृत की यज् धातू से बनता है - शास्त्री
आर्यवीर के संध्या सत्र में 35 आर्यवीरों ने यज्ञ में हुए यजमान बालोतरा। पचपदरा रोड पर धोरानाडी के प्रांगण में चल रहे आर्यवीर दल राजस्थान के...
बालोतरा। पचपदरा रोड पर धोरानाडी के प्रांगण में चल रहे आर्यवीर दल राजस्थान के प्रांतीय प्रशिक्षण शिविर के संध्या सत्र में 35 आर्यवीरों ने परम पवित्र यज्ञोपवीत धारण किया।
यज्ञ के सामने आर्यवीरों ने दुर्गूण एवं दुव्र्यसनों को त्यागकर सद्गुणों को धारण करने की प्रतिज्ञाएं की। यज्ञ के पुरोहित विमल शास्त्री ने आर्यवीरों से कहा कि जनेऊ के तीन धागे पितृऋण, देवऋण और ऋषिऋण से मुक्त होकर सभी कर्तव्यकर्मों को करने की प्रेरणा देते हैं। यज्ञोपवीत परम पवित्र सूत्र है। अत: यह जीवन को परम पवित्र बनाने की प्रेरणा भी देते है। यज्ञ की व्याख्या करते हुए संगठन के कार्यकारी संचालक आचार्य देवेंद्र शास्त्री ने कहा कि वैदिक संस्कृति यज्ञ प्रधान है। यज्ञ शब्द संस्कृत की यज धातू से बनता है। जिसका अर्थ देवपूजा, संगतीकरण और दान हे। प्रत्येक श्रेठ कर्म को भी यज्ञ कहा गया है। अपने स्वार्थ का परित्याग करके परोपकार के लिए के अपनी प्रिय वस्तु का समर्पण करना यज्ञ है। यज्ञ से व्यक्ति में दिव्य गुणों की वृद्धि होकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
सायं सत्र को संबोधित करते हुए प्रांतीय मंत्री आचार्य भवदेन शास्त्री ने कहा कि इस शिविर के बाद आपके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आना चाहिए। क्योकि आज आपने यज्ञ की पवित्र अग्नि के सामने व्रत लिया है कि हम अपने जीवन को प्रत्येक क्षेत्र में श्रेष्ठ बनाएंगे। यतींद्र शास्त्री, पंकज आर्य, सुषील आर्य, भागचंद आर्य, दिनेष, राजमल आर्य के समूह ने ऋषि ऋण को चुकाना है। आर्य राष्ट्र बनाना है। देश के कोने-कोने में संदेश सुनाना है। गीत का सामूहिक अभ्यास कराया। प्रधान शिक्षक भैरोंसिंह आर्य की अगुवाई में लाठी, भाला, तलवार, योगासन, दंड बैठक, मलखंब, सैनिक शिक्षा आदि का अभ्यास किया गया। आर्यवीरों की शारीरिक तथा बौद्धिक परीक्षांए भी हुई। आर्य समाज बालोतरा के प्रधान बृजमनोहर पिथाणी ने बताया कि शिविर में कल मंगलवार को आर्य समाज शास्त्री चौक बालोतरा के सामने होने वाले समापन समारोह की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। इसके अंतर्गत आर्यवीर भव्य व्यायाम प्रदर्शन व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का जमकर अभ्यास कर रहे हैं।