अपने फेसबुक अकाउंट के होमपेज का मुआयना करते हुए आज अनायास ही एक एफबी फ्रेंड और पत्रकार साथी Seet Mishra के द्वारा शेयर की गई पंकज कुमा...
अपने फेसबुक अकाउंट के होमपेज का मुआयना करते हुए आज अनायास ही एक एफबी फ्रेंड और पत्रकार साथी
Seet Mishra के द्वारा शेयर की गई
पंकज कुमार झा की एक पोस्ट, जिसमे उन्होंने भी
Sidharath Jha के द्वारा लिखे गए स्टेट्स अपडेट का हवाला दिया था, तक पहुंचने के साथ ही मेरी नजर और कंप्यूटर के माउस का करसर वहीं पर रुक गया। दोनों का रुकना लाजमी भी था, क्योंकि वह पोस्ट थी ही कुछ ऐसी, जिस पर लिखा था' "Sidharath Jha जी का एक जरुरी पोस्ट।" जरुरी लिखा देखकर खुद को पूरी पोस्ट पढ़ने से रोक नहीं पाया और पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद भी खुद को इस बारे में कुछ लिखने से रोक नहीं पाया।
सबसे पहले आप भी Sidharath Jha की उस पोस्ट को पढ़ें, ताकि पूरे वाकिये को भली-भांति समझने में कोई दिक्कत ना हो... :
"कल एक फेसबुक मित्र से हाय हैलो हुयी. पहले वो रियल4न्यूज मे काम करती थीं. उसके बाद कल हालचाल पूछा तो पता चला कि जिया न्यूज में है. मैंने पूछा किस स्टोरी पर क़ाम चल रहा है तो बोलीं- फिलहाल रेस्ट पर हूं. मैंने कहा- कब तक. बोलीं- पता नही. मजाक में मैंने कहा- आफिसियल हालीडे. वो बोलीं- नो. मैंने कहा- शादी या प्रेग्नेन्सी. बोलीं- नहीं. फिर दिलचस्पी ली. एक और कयास लगाया की शूट के दौरान घायल? उसने कहा- हां.
मैंने कहा कब तक बेड रेस्ट. बोलीं- उम्र भर. माथा ठनका और सीरियसली पूछा तो पता चला की मेहसाना (अहमदाबाद) में ट्रेन पर शूट के दौरान पटरियों पर गिर गयीं थीं और दोनों टांगें कट गयी. चार महीने से घर पर हैं. सात-आठ लाख रुपये खर्च हो चुके हैं मगर आज तक आफिस ने एक रुपया नहीं दिया. रेलवे प्रशासन भी टाल मटोल कर रहा है. मां-बाप की इकलौती सहारा हैं इसलिये कुछ लिख पढ़ करकाम चला रही हैं.
समाचार चैनल से पंगा नही ले रहीं कि शायद उन चैनल वालों का दिल पसीज जाय. रातों को दर्द के मारे सो नहीं पातीं. ये खबर क्या किसी ने किसी समाचार पत्र या चैनल में पढ़ा / सुना है? क्या दूसरों के लिये न्याय का भोंपू बजाने वाला हमारा किन्नर समाज इस दिशा में कुछ कर सकता है?
युवा पत्रकार की उम्र महज 27 साल है और नाम उसकी सहमति से उजागर कर रहा हूं. उनका नाम है Snehal Vaghela . मित्रों, अगर कुछ मदद हो सकती है, हक की लडाई में तो साथ जरूर दें. मैं आर्थिक मदद की अपील करके अपने धंधे को और उनके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता."
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद, अब आप खुद भी सोचिए और बताइए कि, क्या ऐसे हालातों में यह कहना गलत होगा कि " मीडिया से उम्मीद व्यर्थ है।' जबकि इसी मीडिया के पास लोग उम्मीद लेकर तब आते हैं जब वे दूसरी जगहों से हार-थक जाते हैं।
snehal के साथ हुई इस घटना से क्या उन मीडिया संस्थानों को सीख नहीं लेनी चाहिए जो अपने रिपोर्टर की कड़ी मेहनत से बनाई जाने वाली किसी स्टोरी के बूते पर ही खुद को नंबर वन और टॉप मीडिया की श्रेणी में पहुंचाने में सफल हो पाते हैं। लेकिन वहां पहुंचने के बाद भी उस रिपोर्टर की पीठ तक भी नहीं थपथाते।
Sidharath जी की तरह ही हम भी आर्थिक मदद की अपील करके मीडिया जैसे महान कार्यक्षेत्र को और Snehal के स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते। बस इतना प्रयास है कि जिस स्टोरी के खातिर उन्होंने अपने पांव गंवाए उस स्टोरी का उन्हें उनके चैनल से कम से कम उतना सिला तो मिले जितनी कीमत उन्होंने चुकाई है। इसके अतिरिक्त ये दुर्घटना ट्रेन से हुई है। इसलिए अनुकंपा के आधार पर स्नेहल को रेलवे में एक सम्मानजनक नौकरी देने की मांग तो की ही जा सकती है।
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