जहां ईश्वर का वास होता है, वहीं कथा संत्सग होता है - शास्त्री
श्रीराम कथा के सातवे दिन हुआ श्रीराम-भरत मिलन बालोतरा। मनुष्य जीवन में गुरू बिन ज्ञान संभव नहीं है, गुरू के माध्यम से ही जीवन को नई दिश...
बालोतरा। मनुष्य जीवन में गुरू बिन ज्ञान संभव नहीं है, गुरू के माध्यम से ही जीवन को नई दिशा मिलती है, अज्ञानता ही दुख का कारण है और ज्ञान से ही परमात्मा की प्राप्ती होती है, जहां ईश्वर का वास होता है वहीं कथा संत्सग होता है। ये उद्बोधन स्थानीय बाबू भवन में आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन रविवार को संत रामस्वरुप शास्त्री ने व्यक्त किए। महाराज ने कथा के दौरान कहा कि परमात्मा कोई अलग नहीं है, उसे कहीं ढुढऩे की आवश्यकता नहीं है। वह तो सर्वव्यापक है, बस बिना बुद्धि को दोड़ाए उससे मिलने की आवश्यकता है, संसार की सभी चीजें नाशवान है, इसलिए व्यक्ति को कभी भी संतान, धन, रूप आदि के च्रक में नहीं फसना चाहिए, इसमें फसने पर उसके जीवन का उद्धार नहीं हो पाता। संसार में वास्तविक धन ईश्वर नाम ही है, जिसके पास यह धन होता है, वह प्राणी संसार का सबसे सुखी व्यक्ति होता है। वहीं बाकि के लोग मोह व माया में फंसकर दुरवमय जीवन जीते हैं। कथा से पूर्व कथा स्थल पर भगवान शनिदेव की तस्वीर के समक्ष पुष्प मालाएं अर्पित की। कथा वाचक महाराज का सरदारमल सिंहल, गोपाराम माली आदि भक्तजनों ने पुष्पहार पहनाकर स्वागत किया। कथा के दौरान धर्म के रंग में सरोबार थी। कथा में बड़ी संख्या में भक्तगण मौजूद थे। भक्तगणों ने रोम-रोम में जैसे राम की रंगत नजर आ रही थी। उत्सव व आनंद से सरोबार लोगों के बीच भरत-मिलाप प्रसंग झांकियां राम, लक्ष्मण, भरत, सीता, केवट ऋषि का मंचन तो माहौल जयकारों से गूंज उठा तथा पुष्पों की बौछार हुई, जिससे तमाम माहौल रंगीन व खुश्बू में डूब गया। कथा के दौरान भरत-मिलाप प्रसंग झांकी आकर्षक का केंद्र रही तथा कथा के दौरान भजनों पर भक्तगण झूमने व थिरकने के लिए मजबूर हो गए। कथा वाचक महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में विचार व विश्वास जीवन के दो पहिए, इनके बीच संतुलन साधने वाली धुरी का नाम विवेक है, इसके बिना कुछ नहीं। नृत्य विवेकपूर्ण हो, स्वाध्याय विवेकपूर्ण, श्रावक के तन में विवेक हो, वाचक की दृष्टि में विवेक हो, वचन में विवेक हो, आंख से निकले आंसू, गाय के थन से निकला दूध और मुख से निकला शब्द वापस नहीं लौटता है। इसलिए विवेक की प्रधानता जरूरी है।
प्रेम में सात्विकता, विश्वास -
महाराज ने वर्तमान में प्रेम की विकृत रूप का जिक्र करते हुए कहा कि इस रूप में प्यार भीषणता, बदला लेने की भावना और अपराध को साकार करता हुआ बढ़ता है, इसे सत्य व विश्वास के प्रगतीकरण से परिवर्तन किया जा सकता है। जीवन में जितनी मात्रा में सत्य अक्षुण्ण है। यहीं प्रेम को उत्पन्न करने की कुंजी है। प्रेम की उजागर करें, काम व लोभ प्रेम के बाधक तत्व नहीं है, बल्कि प्रेम आने से तो ये स्वयं ही हट जाते हैं। श्रीराम के जीवन प्रसंगों पर चर्चा कर महाराज ने कहा कि उपाधि और समाधि में राम है। कथा के सातवे दिन माली महेंद्रकुमार पुत्र बंशीलाल गहलोत परिवार की ओर से प्रसादी का भोग लगाकर प्रसादी वितरित की गई। इस दौरान भवानीशंकर गौड़, शारदा चौधरी, आशा अग्रवाल पार्षद, भंवरलाल वैष्णव, मोहनलाल खंडेलवाल, सोहनलाल खारवाल, पृथ्वीराज माहेश्वरी आदि प्रबुद्धजनों ने आरती का लाभ लिया।
सुंदर कांठ पाठ का आयोजन -
मंडल प्रवक्ता दौलत प्रजापत ने बताया कि पूर्व रात्रि में कथा स्थल बाबू भवन प्रांगण में विश्व हिंदू परिषद की ओर से संगीतमय सुंदर कांठ पाठ का आयोजन हुआ। सुंदर कांठ पाठ के दौरान भजनों की प्रस्तुतियां दी गई, जिसमें भजन बालाजी ने लाड लडावे माता अंजनी ..., सहित अनेक भजनों की प्रस्तुतियां दी। जिसमें देर रात्र तक श्रद्धालुओं ने आनंद लिया। पाठ के दौरान सेवा के लाभार्थी परिवार तुलसीदास व कमलेशकुमार की ओर से प्रसादी वितरित की गई। कार्यक्रम में पुरूषोतम अग्रवाल, ओमप्रकाश पालीवाल, नेमीचंद सोनी, विकास जिंदल, मंगलाराम सोलंकी, जोगाराम भाटी, हिरालाल प्रजापत, खीमराज प्रजापत, सुरेश राजपुरोहित आदि भक्तजनों ने अपनी सेवाएं दी।