जानिए 1 अप्रैल से क्या-क्या चीजें हो रही है सस्ती
सरकार ने पीपीएफ और किसान विकास पत्र सहित कुछ टर्म डिपॉजिट्स के लिए ब्याज दरें 60-130 बेसिस पॉइंट्स घटाई हैं। इनकी तिमाही समीक्षा होगी और इससे ये करंट मार्कीट रेट्स से कहीं ज्यादा करीब से जुड़ी रहेंगी और इसके चलते बैंकों को करंट मनी मार्कीट रेट्स के अनुसार अपनी ब्याज दरें रखने में मदद मिलेगी। ऐसा वित्त मंत्रालय ने 18 मार्च को कहा था।
वरदराजन के मुताबिक, इस स्ट्रक्चर में 3 बातें हैं, पब्लिक सेविंग्स रेट्स को मार्कीट के अनुसार रखना, मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग और लिक्विडिटी फ्रेमवर्क में बदलाव। आर.बी.आई. ने बैंकों को निर्देश दिया है कि रुपए में दिए जाने वाले हर लोन की प्राइसिंग मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स-बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) के अनुसार होनी चाहिए।
बैंक अब तक मुख्य रूप से डिपॉजिट की औसत लागत का फार्म्युला अपनाते रहे हैं लेकिन ब्याज दरों में गिरावट के चरण में MCLR से डिपॉजिट की लागत तेजी से कम होती है। इससे बैंकों को लेंडिंग रेट्स कम करने का रास्ता मिलता है।
आर.बी.आई. ने पिछले 15 महीनों में रेपो रेट को 125 बेसिस पॉइंट्स घटाकर 6.75 फीसदी पर ला दिया है। बैंकों ने हालांकि 60-70 बेसिस पॉइंट्स का फायदा ही कस्टमर्स को दिया है। आर.बी.आई. की मॉनिटरी पॉलिसी मीटिंग 5 अप्रैल को होनी है।
एस.बी.आई. के मैनेजिंग डायरेक्टर रजनीश कुमार ने कहा, 'स्वाभाविक है कि लेंडिंग रेट कट से पहले डिपॉजिट रेट कट होगा। फॉर्म्युले के अनुसार जब तक डिपॉजिट की मार्जिनल कॉस्ट तय न हो, लेंडिंग रेट की मार्जिनल कॉस्ट तय नहीं की जा सकती है।'
बैंकरों ने कहा कि ज्यादातर बैंकों में अभी MCLR फॉर्म्युले से जुड़ा कैलकुलेशन पूरा नहीं हुआ है। चीफ इकनॉमिक अडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यम ने जो इकनॉमिक सर्वे तैयार किया था, उसमें कहा गया था कि बैंक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जमा दरें घटाने से कस्टमर स्मॉल सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट्स में शिफ्ट हो सकते हैं।