कमलनाथ महादेव : यहां की जाती है शिव से पहले रावण की पूजा
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झीलों की नगरी उदयपुर से 80 किमी दूर झाड़ोल तहसील में स्थित इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं लंकापति रावण ने की थी। ये वह स्थान है, जहां भगवान शिव ने रावण की नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित किया था। साथ ही ऐसी मान्यता है कि यदि भगवान शिव की पूजा से पहले रावण की पूजा ना की जाये तो सारा कर्म काण्ड व्यर्थ जाता है अर्थात पूजा का कोई फल नहीं मिलता।
भगवान कमलनाथ महादेव के इस अद्भुत मंदिर से सम्बंधित एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा और तपस्या करने लगा, उसके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का वरदान मांग डाला।
भगवान शिव लिंग के रूप में उसके साथ जाने को तैयार हो गए, उन्होंने रावण को एक शिव लिंग दिया और यह शर्त रखी कि यदि लंका पहुंचने से पहले तुमने शिव लिंग को धरती पर कहीं भी रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। कैलाश पर्वत से लंका का रास्ता काफी लम्बा था, रास्ते में रावण को थकावट महसूस हुई और वह आराम करने के लिए एक स्थान पर रुक गया। और ना चाहते हुए भी शिव लिंग को धरती पर रखना पड़ा।
आराम करने के बाद रावण ने शिव लिंग उठाना चाहा, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ, तब रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप करने के लिए वह वहीं एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या करने लगा। तप करते-करते उसे साढ़े बारह साल बीत गए, इस दौरान रावण ने अपना शीश अग्नि कुण्ड में अर्पित कर दिया।
भगवान शिव रावण की इस कठोर भक्ति से फिर प्रसन्न हुए और वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी। साथ ही इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से घोषित कर दिया।
भगवान कमलनाथ महादेव के इस अद्भुत मंदिर से सम्बंधित एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा और तपस्या करने लगा, उसके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का वरदान मांग डाला।
भगवान शिव लिंग के रूप में उसके साथ जाने को तैयार हो गए, उन्होंने रावण को एक शिव लिंग दिया और यह शर्त रखी कि यदि लंका पहुंचने से पहले तुमने शिव लिंग को धरती पर कहीं भी रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। कैलाश पर्वत से लंका का रास्ता काफी लम्बा था, रास्ते में रावण को थकावट महसूस हुई और वह आराम करने के लिए एक स्थान पर रुक गया। और ना चाहते हुए भी शिव लिंग को धरती पर रखना पड़ा।
आराम करने के बाद रावण ने शिव लिंग उठाना चाहा, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ, तब रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप करने के लिए वह वहीं एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या करने लगा। तप करते-करते उसे साढ़े बारह साल बीत गए, इस दौरान रावण ने अपना शीश अग्नि कुण्ड में अर्पित कर दिया।
भगवान शिव रावण की इस कठोर भक्ति से फिर प्रसन्न हुए और वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी। साथ ही इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से घोषित कर दिया।