'पीके' की सफलता के पीछे कहीं कोई कारस्तानी तो नहीं?
क्या इन सब घटनाओं से ऐसा नहीं लगता कि इन सब विरोध की घटनाओं को बढ़ावा देने में कहीं ना कहीं फिल्म के निर्माताओं का योगदान हो सकमा है? क्योकि ऐसा करने से पीके फिल्म का बढ़-चढ़कर प्रचार हो रहा है और इसका फायदा निश्चित रूप से पीके फिल्म के निर्माताओं को मिल रहा है। अत: इससे यह भी शंका होती है कि यह सारी कारस्तानी कहीं फिल्म वालों ने की हो? पीके फिल्म का पक्ष लेते हुए सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन ने कहा कि फिल्म को रिलीज किया जा चुका है, हरेक फिल्म किसी ना किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकती है। इस पर हम दृश्य हटाकर किसी की रचनात्मकता को खत्म नहीं कर सकते। सैमसन द्वारा इस प्रकार का गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य कहना यह सिद्ध करता है कि सेंसर बोर्ड फिल्म के निर्माता, निर्देशक और फिल्म के कलाकारों के व्यक्तित्व से हमेशा की तरह प्रभावित रहा है।
फिल्म के निर्माताओं के बारे में कहा जा रहा है कि फिल्म के माध्यम से वे हिन्दू धर्म की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर हिन्दुत्व की धार्मिक आस्थाओं को ठेस पंहुचा रहे हैं और हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित कर रहे हैं। बाबा रामदेव ने भी इनका समर्थन करते हुए कहा कि इसाई या मुस्लिम धर्म के बारे में कुछ भी कहना हो या कुछ भी दिखाना हो लोग सौ बार सोचते हैं लेकिन हिन्दू धर्म के बारे में बिना सोचे समझे जो मन में आता है वो कह और दिखा दिया जाता है। यह शर्मनाक है, ऐसी फिल्म और फिल्म से जुड़े लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिये। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भी कहा है कि हिन्दू धर्म की आस्थाओं पर अंग्रेजों के समय से ही चोट होती आ रही है एवं देश के आजाद होने के बाद भी यह जारी है और लेकिन हद तब हो गई जब सुदर्शन चैनल पर पीके फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन किया गया तब सुदर्शन चैनल के सुरेश चव्हाण को फिल्म वालों की तरफ से धमकी वाले मैसेज दिये गये।
आमिर खान की पीके फिल्म को लेकर सुब्रह्यण्यम स्वामी, बाबा रामदेव के अलावा हिन्दू धर्म के तमाम संगठनों जैसे विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू एकता मंच, बंजरग दल के कार्यकर्ता पीके फिल्म में कथित विवादित दृश्यों को लेकर बहिस्कार कर रहे हैं और इसके खिलाफ प्रदशर्न कर रहे हंै। दिल्ली, ठाणे, हैदराबाद, जयपुर इत्यादी कई जगह में हिन्दू धर्म के समर्थकों ने पुलिस थानों और कोर्ट में फिल्म के खिलाफ मुकदमे और शिकायतें मिली है। फिल्म का प्रदर्शन रोकने के लिये फिल्म का विरोध करना, फिल्म के पोस्टर फाड़ना, सिनेमाघरों में तोड़फोड़ करने वाले व्यवहार को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
आॅल इंड़िया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद राशिद फिरंगी और इमाम काउंसिल के मकसूद कासमी भी पीके फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग का समर्थन कर रहे हैं। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी जो कि संघ से जुड़े हुए हैं, उन्होंने पीके फिल्म की प्रसंशा की है और हमारे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बिहार सरकार ने तो सभी विरोध एवं आन्दोलनों को दरकिनार करते हुए इससे एक कदम आगे बढ़कर पीके फिल्म को प्रोत्साहन देते हुए इसे टैक्स फ्री तक कर दिया। जब फिल्म को प्रदर्शित करने वाले सिनेमाघरों में तोड़फोड़ की जा रही है, तो ऐसे समय में उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा अपने राज्य में पीके फिल्म को टैक्स फ्री करने का आदेश देने का क्या अर्थ हो सकता है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आखिर कौनसी सियासी चाल हो सकती है।
पीके फिल्म के निर्माण को लेकर भाजपा नेता सुब्रह्यण्यम स्वामी ने ट्विट कर बताया कि आमिर खान की फिल्म पीके में दुबई और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का पैसा लगा है, इसकी जांच करवानी चाहिए। लोगों के मन में इस फिल्म को देखने का उत्साह है, वहीं तमाम हिन्दू संगठनों द्वारा इस फिल्म का विरोध किया जा रहा है।
भारत के आम नागरिक को सच जानने का अधिकार है और यह तभी जाना जा सकता है, जब इस फिल्म से संबधित जिम्मेदार लोगों को एक मंच पर बुलाया जाये, मंच के एक तरफ फिल्म का विरोध कर रहे संगठन के नेताओं को बैठाया जाये, मंच के दूसरी ओर हिन्दू धर्म के साथ अन्य धर्म के विद्वानों को बैठाया जाये और मंच के तीसरी ओर फिल्म के निर्माताओं को बैठाकर पूरी फिल्म दिखाई जाये। फिल्म के विरोधियों द्वारा फिल्म के जिस अंश पर ऐतराज जताया जाता है और यदि इसकी पुष्ठि धर्मिक विद्वानों द्वारा भी की जाती है, तो फिल्म के उन अशों को फिल्म से निकालने के लिये उसी समय फिल्म निर्माता एंव निर्देशक को निर्देश देकर उन दृश्यों एंव संवादों को फिल्म से
निकालवाया जाये एवं सर्वमान्य फिल्म को ही रिलीज किया जाये। यदि फिल्म के निर्देशक निर्माता इसके लिये तैयार नहीं होते हैं तो फिल्म के प्रदर्शन पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए ताकि हमारे समाज का माहौल ना बिगडे। इस प्रकार की कार्यवाही पीके फिल्म पर ही नहीं बल्कि प्रत्येक उस फिल्म के साथ होनी चाहिए, जिसके प्रदर्शित होने पर विवाद हो, जिससे समाज का माहौल बिगड़ने का मौका ही नहीं मिले।