सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र 150 फीट गहरी घाटी में गिरता झरना भीलवाड़ा-चित्तौडगढ़ सीमा पर नेशनल हाईवे 27 के समीप स्थित पर्यटन स्थल मेना...
सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र 150 फीट गहरी घाटी में गिरता झरना
भीलवाड़ा-चित्तौडगढ़ सीमा पर नेशनल हाईवे 27 के समीप स्थित पर्यटन स्थल मेनाल अपने अलौकिक,नैसर्गिक वैभव, 150 फीट से गिरते जल प्रपात और बेजोड़ शिल्प कला से निर्मित महानालेश्वर शिवालय के कारण वर्षों से देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। चारों ओर घने वनों से आच्छादित मेनाल इतिहास,पुरातत्व, पर्यटन और धार्मिक आस्था का संगम स्थल है।


वैसे तो मेनाल में बारहों महिने पर्यटकों की आवाजाही रहती है, लेकिन बरसात के मौसम में आस-पास के जिलों के अलावा सीमावर्ती मध्यप्रदेश व राजस्थान के दूर-दराज क्षेत्रों से आने वाले पर्यटक प्राकृतिक सुषमा से युक्त यहां के खुशनुमा वातावरण में पिकनिक का लुत्फ उठाने के लिए बड़ी संख्या में पंहुचते है। संभवत: प्रदेश के सबसे बड़े जल प्रपात के रूप में 150 फीट गहरी घाटी में बड़े वेग से गिरने वाली जल धारा नयनाभिराम दृश्य का निर्माण करती है। पर्यटक इस अद्भुत छटा को देख कर अभिभूत हो जाते है। जिस रमणीक घाटी में यह झरना गिरता है, उसकी छटा और भी निराली है। हरे-भरे वूक्षों व घनी झाड़ियों से आच्छादित लगभग तीन किलोमीटर लंबी ‘वी’ आकार की घाटी प्रकृति के बहुविध सौंदर्य को बार-बार अपनी अनुभूतियों की निधी में समेटने को जी चाहता है।

मेनाल में स्थित देवालयों की अद़भुत शिल्प कला भी सैलानियों का मन मोह लेती है। यहां का महानालेश्वर शिवालय उत्कृष्ट स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1253 में किया गया था। धरातल से 4-5 फीट ऊंचे चबुतरे पर निर्मित पश्चिमाभिमुख इस मंदिर के अग्रभाग में द्वार, मण्डप, मध्य में सभाकक्ष एवं अंत में गर्भगृह है, जिसमें तीन फीट नीचे भगवान शिवलिंग रूप में विराजमान है। मंदिर के सभाकक्ष में कई खण्डों में विभाजित छत पर दक्ष शिल्पियों ने विभिन्न पौराणिक प्रसंगों का चित्रण किया है। महानालेश्वर मंदिर की बाहरी दीवारों पर उत्कीर्ण देव-देवांगनाएं, अप्सराएं, यक्ष-किन्नर, द्वारपाल तथ नर-नारियों के युग्म शिल्प कला के अद़भुत उदाहरण है।

मेनाल कभी नाथ सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र हुआ करता था। नाथ सम्प्रदाय के योगियों के निवास एवं योग साधना हेतु सम्राट पूथ्वीराज द्वितीय के शासन काल में भावब्रह्म नाम के एक प्रसिद्ध योगी ने यहां एक मठ का निर्माण करवाया था। यह मठ इस मंदिर से थोड़ी दूर स्थित है। घाटी के ऊपर पश्चिम की ओर बने रूठी रानी के महल अब खण्डहर हो चुके है। इन महलों के पास बने विद्यालय का निर्माण चौहान राजा पृथ्वीराज की रानी सुहावा देवी ने करवाया था।

राजस्थान में सुहावा देवी को रूठी रानी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि, 1671 के अंत में चित्तौड़गढ़ के सेनापति नरहरिदास जो कि महाराणा शक्ति सिंह के पौत्र अचलदास जी के पुत्र थे, इनका इस स्थान पर शाहजादा खुर्रम के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। इन्होंने अपने पराक्रम से म्लेच्छ सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। इस युद्ध में नरहरिदास वीर गति को प्राप्त हुए उनकी स्मृति में इस स्थान पर 12 खंभों की छतरी बनी हुई है।
मेनाल को सरकार ने 1956 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था। वर्तमान में यहां की देखरेख पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है। पर्यटकों की सुविधा के लिए विभाग द्वारा यहां एक होटल भी खोली गई हेै।
- जगदीश सोनी, बिजौलियां (भीलवाड़ा)
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