नशामुक्ति के लिए तमिलनाडु के उच्च पुलिस अधिकारी की पहल

बाड़मेर (दुर्गसिंह राजपुरोहित)। एक कहावत आपने जरूर सुनी होगी कि ‘पुलिस वालों की ना दोस्ती भली ना दुश्मनी भली’ और पुलिस के बारे में यह धारण...

बाड़मेर (दुर्गसिंह राजपुरोहित)। एक कहावत आपने जरूर सुनी होगी कि ‘पुलिस वालों की ना दोस्ती भली ना दुश्मनी भली’ और पुलिस के बारे में यह धारणा आमतौर पर जनमानस में देखी भी जाती है। पुलिस महकमे को हमेशा एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता है। यह बातें कुछ हद तक सही भी हैं, इसी विभाग के कुछ अधिकारियों, कर्मचारियों की कारगुजारियों के चलते इस अति महत्वपूर्ण विभाग को लज्जित होना पड़ता है। लेकिन देशभक्ति-जनसेवा यह शब्द केवल पुलिस थानों में ही लिखे देखे जाते हैं।

देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले इस विभाग में अभी भी बहुत से अधिकारी, कर्मचारी अपनी लगन और मेहनत की बदौलत विभाग का विश्वास जनता में बनाये रखने में सफल हुए हैं। यही कारण है कि बड़े-बड़े अपराधी जनता के सहयोग से पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं और सद्भावना, भाईचारे का वातावरण प्रदूषित होने से बच जाता है।

राजस्थान के सीमावर्ती इलाके बाड़मेर में इन दिनों तमिलनाडु पुलिस विभाग के एक बड़े अधिकारी द्वारा किये जा रहे कार्यों की चर्चाएं जोरों पर है। तमिलनाडु पुलिस के विजिलेंस अतिरिक्त महानिदेशक यानी एडीजी सांगाराम जांगिड़ अपने पद की धाक छोड़कर आम जनता से रूबरू होकर जनता के बीच पुलिस का एक नया चेहरा प्रस्तुत कर रहे हैं।

इसी क्रम में सबसे ज्यादा मामले उनके सामने नशाखोरी के आए। उनको पता चला कि बुजुर्ग तो बुजुर्ग कम उम्र के नौजवान नशे की गिरफ्त में हैं और नशे के कारण परिवार उजड़ रहा है। तब उन्हें लगा कि यह समस्या अब बाड़मेर में ज्यादा गंभीर बनती जा रही है, क्योंकि नशे का आदी व्यक्ति तो जीवनभर लुटता रहता है। परिवार भी बर्बाद हो जाता है। सुरसा के मुंह के समान बढ़ रही इस समस्या को एडीजी सांगाराम जांगिड़ ने गंभीरता से लिया।

जांगिड़ बाड़मेर अपने घर आये तो थे सप्ताहभर के लिए, लेकिन उन्होंने जब नशे में डूबे लोगों की डोडा पोस्त के लिए कतारें देखी तो उन्होंने अपना अवकाश सात दिन और बढ़ा दिया। उन्होंने कवास समेत दर्जनभर गांवों में लोगों के साथ एक योजनानुसार नशामुक्त अभियान छेड़ दिया और शिविर लगाए गए। नशामुक्ति शिविर की सफलता तो रजिस्ट्रेशनों की संख्या बताती है। पहली बार इस शिविर मेंं 400 से ज्यादा लोगों ने नशे से मुक्ति पाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। इनमें कई लोग ऐसे थे, जो करीब चालीस वर्षों से नशे की गिरफ्त में थे। मगर पुलिस के प्रयासों से इन्हें इस नशे से कैसे मुक्ति मिले, इस सबके लिए योगा, वेद मंत्र, गीत-संगीत व प्रवचनों के माध्यम से उनमें नई जनचेतना जगाने का कार्य किया गया।

आने वाले समय में अतिरिक्त महानिदेशक का यह अभियान कितना सफल होगा कि नहीं होगा, यह विचार का प्रश्न नहीं है। मगर पुलिस का विश्वास जनता में जरूर जागेगा। ऐसे अभियान अगर पूरे प्रदेश में चलाए गए तो पुलिसिया छवि में निखार जरूर आएगा, और हम कह सकेंगे कि पुलिस से दोस्ती भी अच्छी है और रिश्तेदारी भी अच्छी है। तभी देशभक्ति जनसेवा का यह नारा सार्थक होगा।

दरअसल, सीमावर्ती बाड़मेर जिले में पुरानी के साथ नईपीढ़ी भी नशे के जाल में फंस रही है। डोडा पोस्त की किल्लत ने सारे नशेडियों को सड़क पर ला दिया। कतारें लगाए खड़े इन नशेबाजों को किसी भी सूरत में डोडा पोस्त चाहिए। ग्रामीणो की माने तो यह पहल बेहद सफल साबित होगी इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं हैं। बाड़मेर में सबसे ज्यादा अफीम और डोडा पोस्त का सेवन करने वाले लोगो की भरमार हैं। ऐसे हजारो युवा और वृद्ध हैं जिनकी सुबह नशे के साथ शुरू होती हैं। हालाँकि अफीम का सेवन वैध नहीं है, लेकिन जिले में अफीमची हर गांव में पचास- सौ है।

सरकारी रिकार्ड में डोडा पोस्त के 2810 ही लाइसेसधारक हैं लेकिन एक अनुमान के अनुसार अवैध तरीके से एक लाख के करीब लोग डोडा पोस्त का सेवन जिले में कर रहे हैं। अतिरिक्त महानिदेशक तमिलनाडु पुलिस सांगाराम जांगिड़ के मुताबिक उन्हें उम्मीद हैं कि यह अभियान सफल जरूर होगा।

जब बाड़मेर में डोडा पोस्त की कमी की खबरें सामने आई तो राज्य सरकार के रिपोर्ट तलब करने पर इंतजाम के लिए अधिकारी और जनप्रतिनिधि दौड़ने लगे लेकिन ताज्जुब है कि कोई व्यक्ति नशे की लत से छुटकारा पाना चाहे तो कोई भी स्थान नहीं है। न ही जागरूकता को लेकर विशेष कार्यक्रम हो रहा है। ऐसे में नशेडियों की तादाद दिन बद दिन बढ़ती जा रही है। और सांगा राम जांगिड़ का प्रयास कितना सफल होता हैं यह देखना होगा।


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