दुनियाभर में फैला है किडनी का गोरखधंधा, भारत में हुआ भंडाफोड़
https://khabarrn1.blogspot.com/2016/07/kidney-forgery-spreads-worldwide-busted-in-india.html
नई दिल्ली। अंगों के गैर-कानूनी भारतीय व्यापार की असुखद हकीकत जून 2016 में उस वक्त हमारे चेहरे को घूर रही थी, जब दिल्ली पुलिस ने किडनी के एक गोरखधंधे का पर्दाफाश किया था। पांच गिरफ्तार व्यक्तियों में से दो व्यक्ति इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्तपाल में, एक सीनियर डॉक्टर के निजी सहायक और बाकी के तीन अभिकथित दलाल थे। इनकी गिरफ्तारियों के बाद, अस्पताल में कई डाक्टरों और कर्मचारियों से पूछताछ और उनकी भूमिका की छानबीन की गई थी। लेकिन अब गोरखधंधे के अभिकथित मुख्य किरदार, टी. राजकुमार राव की गिरफ्तारी के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि यह गोरखधंधा अपोलो अस्पताल से भी आगे तक फैला हुआ है।
माना जाता है कि राव भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और इंडोनेशिया सहित अनेक देशों में यह गोरखधंधा चला रहा था। भारत में, वह अभिकथित रूप से लगभग प्रत्येक बड़े राज्य इस गैर-कानूनी व्यापार का संचालन कर रहा था। यह बताया गया है कि उसने 75 करोड़ रुपये कीमत के कारोबार का निर्माण करने के लिए कम से कम 15,000 गरीब लोगों को ठगा है, जिसकी बदौलत वह अनेक बड़े शहरों में संपत्तियां खरीद पाया है। यह पूरा गोरखधंधा अपोलो से कहीं बड़ा है और खुद राजकुमार ने देश में 15 दूसरे अस्पतालों को किडनी सप्लाई करने की बात कबूल की है।
हाल ही में, यूगांडा के एक व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि बेंगलूरू में फोर्टिस हेल्थकेयर द्वारा संचालित एक अस्पताल ने उसकी सहमति के बिना उसकी किडनी निकाल ली थी। इस साल में पहले, गुजरात में किडनी के एक गोरखधंधे का भंडाफोड़ हुआ था और छानबीन में पाया गया था कि अनेक मरीजों को अंगों के गैर-कानूनी दान के लिए श्रीलंका ले जाया गया था। 2015 में एक छानबीन ने इस गैर-कानूनी व्यापार की वैश्विक शिकंजे को दिखाया था। यह गैर-कानूनी व्यापार बिचैलियों, डाक्टरों एवं वकीलों के निजी कर्मचारियों और गरीब सामाजिक-आर्थिक हालातों वाले लोगों के बीच, जो इस व्यापार का शिकार बनते हैं, सांठ-गांठ से चलता है।
छानबीन ने अभी तक दर्शाया है कि ठग लोग नकली दस्तावेज बनाकर अंग प्रत्यारोपण के कानूनों से बचने में सफल हुए थे और यह राष्ट प्रशासन में भ्रष्टाचार से उत्पन्न होता है। मसलन, श्रीलंका से एक गैन-कानूनी दाता के नकली पासपोर्ट की विषयगत अस्पताल द्वारा जांच नहीं की जा सकती है, इसे इसके स्रोत पर ही, पासपोर्ट आॅफिस में ही रोकना होगा, जहां नकली पासपोर्ट बनाया जाता है।
उसके अलावा, वहां नीति में गंभीर कमियां हैं। मसलन, 2011 का मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम मरीजों से संबंध नहीं रखने वाले व्यक्तियों को “स्नेह और लगाव“ के कारण अंग दान करने की अनुमति देता है। इसे गैर-कानूनी व्यापारियों ने पैसों की एवज में मरीजों में गैर-कानूनी दाताओं से अंगों का प्रत्यारोपण करवाने के लिए इस्तेमाल किया है।
मौजूदा हालात तक में, किडनी का गोरखधंधा पूरे देश में फैला है और इसमें पड़ोसी देश तक शामिल हैं। श्रीलंका ने एक पुलिस दल अंतर्राष्ट्रीय किडनी गोरखधंधे की छानबीन करने के लिए भारत आया था, जिसका पहले इस साल में नलगोंडा पुलिस ने पर्दाफाश किया था। छानबीन के अनुसार, पुलिस ने पहचान की थी कि कोलोम्बो स्थित चार अस्तपतालों ने भारतीय ग्राहियों के लिए लगभग 60 गैर-कानूनी प्रत्यारोपण किए हैं।
अधिकांश मामलों में, इन गोरखधंधों के कारण नामीगिरामी अस्तपालों और डाक्टरों की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची है। ज्यादातर बार, यह देखा गया है कि इन गोरखधंधों का मुख्य किरदार मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स होते हैं, जिनका अस्तपाल प्रशासन और डाक्टरों के साथ करीबी संबंधी होता है जो अस्पताल और संभावित किडनी दाता का भरोसा जीतने तथा अंग व्यापार के गोरखधंधे को जारी रखने में उनकी मदद करता है।
माना जाता है कि राव भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और इंडोनेशिया सहित अनेक देशों में यह गोरखधंधा चला रहा था। भारत में, वह अभिकथित रूप से लगभग प्रत्येक बड़े राज्य इस गैर-कानूनी व्यापार का संचालन कर रहा था। यह बताया गया है कि उसने 75 करोड़ रुपये कीमत के कारोबार का निर्माण करने के लिए कम से कम 15,000 गरीब लोगों को ठगा है, जिसकी बदौलत वह अनेक बड़े शहरों में संपत्तियां खरीद पाया है। यह पूरा गोरखधंधा अपोलो से कहीं बड़ा है और खुद राजकुमार ने देश में 15 दूसरे अस्पतालों को किडनी सप्लाई करने की बात कबूल की है।
हाल ही में, यूगांडा के एक व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि बेंगलूरू में फोर्टिस हेल्थकेयर द्वारा संचालित एक अस्पताल ने उसकी सहमति के बिना उसकी किडनी निकाल ली थी। इस साल में पहले, गुजरात में किडनी के एक गोरखधंधे का भंडाफोड़ हुआ था और छानबीन में पाया गया था कि अनेक मरीजों को अंगों के गैर-कानूनी दान के लिए श्रीलंका ले जाया गया था। 2015 में एक छानबीन ने इस गैर-कानूनी व्यापार की वैश्विक शिकंजे को दिखाया था। यह गैर-कानूनी व्यापार बिचैलियों, डाक्टरों एवं वकीलों के निजी कर्मचारियों और गरीब सामाजिक-आर्थिक हालातों वाले लोगों के बीच, जो इस व्यापार का शिकार बनते हैं, सांठ-गांठ से चलता है।
छानबीन ने अभी तक दर्शाया है कि ठग लोग नकली दस्तावेज बनाकर अंग प्रत्यारोपण के कानूनों से बचने में सफल हुए थे और यह राष्ट प्रशासन में भ्रष्टाचार से उत्पन्न होता है। मसलन, श्रीलंका से एक गैन-कानूनी दाता के नकली पासपोर्ट की विषयगत अस्पताल द्वारा जांच नहीं की जा सकती है, इसे इसके स्रोत पर ही, पासपोर्ट आॅफिस में ही रोकना होगा, जहां नकली पासपोर्ट बनाया जाता है।
उसके अलावा, वहां नीति में गंभीर कमियां हैं। मसलन, 2011 का मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम मरीजों से संबंध नहीं रखने वाले व्यक्तियों को “स्नेह और लगाव“ के कारण अंग दान करने की अनुमति देता है। इसे गैर-कानूनी व्यापारियों ने पैसों की एवज में मरीजों में गैर-कानूनी दाताओं से अंगों का प्रत्यारोपण करवाने के लिए इस्तेमाल किया है।
मौजूदा हालात तक में, किडनी का गोरखधंधा पूरे देश में फैला है और इसमें पड़ोसी देश तक शामिल हैं। श्रीलंका ने एक पुलिस दल अंतर्राष्ट्रीय किडनी गोरखधंधे की छानबीन करने के लिए भारत आया था, जिसका पहले इस साल में नलगोंडा पुलिस ने पर्दाफाश किया था। छानबीन के अनुसार, पुलिस ने पहचान की थी कि कोलोम्बो स्थित चार अस्तपतालों ने भारतीय ग्राहियों के लिए लगभग 60 गैर-कानूनी प्रत्यारोपण किए हैं।
अधिकांश मामलों में, इन गोरखधंधों के कारण नामीगिरामी अस्तपालों और डाक्टरों की प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची है। ज्यादातर बार, यह देखा गया है कि इन गोरखधंधों का मुख्य किरदार मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स होते हैं, जिनका अस्तपाल प्रशासन और डाक्टरों के साथ करीबी संबंधी होता है जो अस्पताल और संभावित किडनी दाता का भरोसा जीतने तथा अंग व्यापार के गोरखधंधे को जारी रखने में उनकी मदद करता है।
