मैं साइकिल हूं …

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हाशिये पर पड़ी साइकिल लम्बे समय से चुपचाप चलते हुए दुनिया मे हो रहे पर्यावरण असंतुलन को देख रही थी। लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने प्रदुषण कम करने के लिए साइकिल का जिक्र किया तो साइकिल ने खुश होकर अपने दिल की बात कह डाली। वैसे तो गरीब, मजदुर और मेहनतकश का सहारा बनकर साइकिल खुशनसीब है, लेकिन जब एक सांसद साइकिल पर देश की सबसे बड़ी पंचायत पहुंचे तो साइकिल कीखुशी का ठिकाना न रहा और अपने दिल की बात कह ही डाली। पेश है साइकिल के दिल से निकली बात जो पहुंचनी है आपके दिल के द्वार तक …। आप भी पढ़िए साइकिल के दिल की बात

"गरीब की झोपड़ी से निकलकर फैक्ट्री तक दौड़ लगाती हूं, किसान के घर से रवाना होकर खेत तक जाती हूं, ना पेट्रोल पीती हूं ना डीज़ल, धुंए का तो मुझसे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। मुझे दौड़ाने वाले को पसीना जरूर आता है, लेकिन नये ज़माने की बात करू तो मै ईको फ्रेंड्ली हूं। मैं गरीब का सहारा बनकर खुश हूं।

मेरे खोते हुए वजूद को दोबारा पाने की सुगबुगाहट मुझे सुनाई दे रही है। देश के प्रधानमंत्री ने पर्यावरण की खातिर सप्ताह मे एक दिन मुझे चलाने की गुजारिश की तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। देश के माननीय सांसद महोदय ने अपना पसीना बहाकर मुझे संसद की चौखट तक पहुंचाया तो मै ख़ुशी के मारे  पागल हो गई। मोदी जी ने कहा था कि, "अच्छे दिन आएँगे, लगता है मेरे अच्छे दिनों की शुरूआत हो गई है।


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मुझे न कोई लोभ है ना कोई लालच। यकीन मानिए मेरे पुराने दिन लौटा दो, मैं पर्यावरण की रक्षा मे अहम् योगदान दे सकती हूं। मेरी आप से यही विनती है कि साइकिल चलाओ, स्वस्थ रहो और पर्यवरण बचाओ।"

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर और सांसद की पहल के बाद अगर आप और हम भी साइकिल के दिल से निकली उसकी इस गुजारिश को सही रूप से लेते हैं तो प्रकृति को बचाए रखने के लिए प्रकृति और आने वाली पीढ़िया हम सबका शुक्रिया अदा कर सकती है।
- प्रकाश शर्मा, जयपुर। 


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