वर्ष में दो बार क्यों मनाई जाती है नवरात्रि?
उदयपुर (सतीश शर्मा)। नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाया जाने वाला इकलौता उत्सव है- एक नवरात्रि गर्मी की शुरूआत पर चैत्र में, तो दूसरा शीत की ...
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उदयपुर (सतीश शर्मा)। नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाया जाने वाला इकलौता उत्सव है- एक नवरात्रि गर्मी की शुरूआत पर चैत्र में, तो दूसरा शीत की शुरूआत पर आश्विन माह में। गर्मी और जाड़े के मौसम में सौर-ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है। क्योंकि फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने, ठंड से राहत देने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य इस दौरान संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है।
प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं। इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। एक बार इसे सत्य और धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी बार इसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुल मिलकर नवरात्री का का पर्व वास्तव में मातृशक्ति की साधना का पर्व है, नवजागरण का पर्व है।
मातृशक्ति का भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च महत्व है। जीवन का प्रवाह, हमारी प्राणशक्ति का स्नोत मातृशक्ति ही है। ब्रह्मांड के हर तत्व में निहित व हर तत्व की सृजनकर्ता मातृशक्ति ही है। इसलिए हिंदू धर्म के अनुसार मातृशक्ति को सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप भी कहा गया है। इसके बिना किसी भी ईश्वरीय तत्व का उद्भव ही संभव नहीं है। मातृशक्ति को आद्यशक्ति भी कहा गया है।
मां भगवती के नवस्वरूप की अर्चना साधना का पर्व है, मां भगवती का हर स्वरूप अध्यात्म के मूल तत्वों- ज्ञान,सेवा, पराक्रम, समृद्धि, परमानंद, त्याग, ध्यान और सृजन शक्ति का अवतरण है। मातृशक्ति के चार स्वरूप-गीता, गंगा, गायत्री और गौ माता हैं। आद्यशक्ति मां भगवती की साधना को जीवन में धारण कर मनुष्य अपनी क्षुद्रताओं से परे जाकर अपने इष्ट के देवत्व से एकाकार कर सकता है।
मनुष्य की कोई भी सोच जो समाज में भेद पैदा करे, मनुष्य को मनुष्य से दूर करे चाहे वह भाषावाद, प्रांतवाद और जातिवाद की ही बात क्यों न हो, उसे पनपने नहीं देना चाहिए। हम सभी आद्यशक्ति मां भगवती की संतान हैं। हम सभी में एक ही चेतना है, एक ही प्राण हैं।
(इस लेख में 3 ज्योतिषों और धर्म गुरुओं के विचार शामिल है)
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प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं। इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। एक बार इसे सत्य और धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी बार इसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुल मिलकर नवरात्री का का पर्व वास्तव में मातृशक्ति की साधना का पर्व है, नवजागरण का पर्व है।
मातृशक्ति का भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च महत्व है। जीवन का प्रवाह, हमारी प्राणशक्ति का स्नोत मातृशक्ति ही है। ब्रह्मांड के हर तत्व में निहित व हर तत्व की सृजनकर्ता मातृशक्ति ही है। इसलिए हिंदू धर्म के अनुसार मातृशक्ति को सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप भी कहा गया है। इसके बिना किसी भी ईश्वरीय तत्व का उद्भव ही संभव नहीं है। मातृशक्ति को आद्यशक्ति भी कहा गया है।
मां भगवती के नवस्वरूप की अर्चना साधना का पर्व है, मां भगवती का हर स्वरूप अध्यात्म के मूल तत्वों- ज्ञान,सेवा, पराक्रम, समृद्धि, परमानंद, त्याग, ध्यान और सृजन शक्ति का अवतरण है। मातृशक्ति के चार स्वरूप-गीता, गंगा, गायत्री और गौ माता हैं। आद्यशक्ति मां भगवती की साधना को जीवन में धारण कर मनुष्य अपनी क्षुद्रताओं से परे जाकर अपने इष्ट के देवत्व से एकाकार कर सकता है।
मनुष्य की कोई भी सोच जो समाज में भेद पैदा करे, मनुष्य को मनुष्य से दूर करे चाहे वह भाषावाद, प्रांतवाद और जातिवाद की ही बात क्यों न हो, उसे पनपने नहीं देना चाहिए। हम सभी आद्यशक्ति मां भगवती की संतान हैं। हम सभी में एक ही चेतना है, एक ही प्राण हैं।
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