जानिए, आखिर क्या होता है 'उपवास'?
उदयपुर (सतीश शर्मा)। उपवास : उप का अर्थ है निकट और वास का अर्थ है निवास। अर्थात ईश्वर से निकटता बढ़ाना। कुल मिलाकर यह माना जाता है कि उपवास...
हिन्दू धर्म में या (शास्त्रों के अनुसार) उपवास का सीधा-सा अर्थ है आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अपनी भौतिक आवश्यकताओं का परित्याग करना। सामान्यत: भाषा में बात करें .. तो भोजन (खाना) लेने से हमारी इंन्द्रियां तृप्त हो जाती हैं और मन पर तन्द्रा तारी होती है। कम मात्रा में भोजन करके या फलाहार करके हम इन्द्रियों को नियंत्रित करना सीखते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार भी जब आपका पेट भरा होता है तो आपकी बुद्धि सो जाती है, विवेक मौन हो जाता है।
वहीं आजकल आर्ट आॅफ लिविंग में भी यही बताया जाता है, कि उपवास रखने से हमारे तन-मन दोनों का शुद्धिकरण होता है, हमारा दिमाग पाचक अग्नि की तरफ नहीं जाता। ऊर्जा-संग्रहण से मन चैतन्य रहता है। उपवास से हम दूसरों के कष्ट का भी अहसास कर सकते हैं। यह शरीर और आत्मा को एकाकार करने का माध्यम तो है ही, इससे भागम-भाग वाली जीवनशैली से भी कुछ समय के लिए निजात पाया जा सकता है।
नवरात्री से मिलती सिख : हमारे किसी भी भेद से कष्ट मां भगवती को ही होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसने हमें इस पावन धरा पर आपसी प्रेम व भाईचारे का अनुपम संदेश हर जगह फैलाने के लिए भेजा है। यही संगठन साधना है और राष्ट्र साधना है। मनुष्य को सही मायने में मनुष्य बनाने के लिए किया गया सर्वोत्तम प्रयास है। नवरात्र में हम एक बार पुन: नव-ऊर्जा से परिपूरित होकर भारतीय जनमानस के लिए कुछ कर सकें, तो समाज का कल्याण निश्चित है। मां भगवती का दिव्य संदेश भी यही सिख प्रत्येक धर्म, समाज और क्षेत्र के लिए है।
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