कैसे शुरू हुई नवरात्री की परंपरा और क्यों मनाई जाती है वर्ष में दो बार

उदयपुर (सतीश शर्मा)। नवरात्री, यानि एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ साधारणतया ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के वि...

उदयपुर (सतीश शर्मा)। नवरात्री, यानि एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ साधारणतया ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के विशेष दिन, जब माता के भक्त नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखकर मां की भक्ति में लीन हो जाते हैं और जगह-जगह माता के जयकारों की गूंज सुनाई पड़ने लग जाती है। नवरात्र का पावन पर्व आद्यशक्ति मां भगवती का पर्व है। मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर अधर्म का नाश करके धर्म की संस्थापना कर सद्शक्तियों का संरक्षण व संगठन किया था। मातृशक्ति की इस दिव्यलीला का आध्यात्मिक उत्सव होता है नवरात्र या नवरात्रि।

‘नवरात्री’ संस्कृत का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है- नौ रातें। इन नौ रातों को लेकर ही हिन्दू मतावलंबी इसे शक्ति-पर्व के रूप में मनाते हैं। यह एकमात्र पर्व है, जो साल में दो बार मनाया जाता है, एक बार इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है, जो वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद आता है यानि दीपावली से पूर्व और दूसरा चैत्र नवरात्रा जो शीत ऋतु की समाप्ति के बाद आता है। नवरात्रि के दौरान तीन हिन्दू देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती देवी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन्हें ही नवदुर्गा भी कहा भी जाता है।

शक्ति की उपासना के इस पर्व पर चैत्र और शरद की प्रतिपदा से नवमी तक नौ तिथियों,  नौ नक्षत्रों और नौ शक्तियों की उपासना के पर्व के रूप में सनातन काल से इसे मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचन्द्रजी ने शारदीय नवरात्रि की पूजा की शुरूआत समुद्र तट पर की थी और उसके बाद दसवें दिन लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रस्थान किया था और राम ने रावण पर विजय हासिल की थी। तब से असत्य और अधर्म पर सत्य और धर्म की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा पर्व हर वर्ष मनाया जाता है।

आदि शक्ति के हर रूप की नवरात्रि के नौ दिनों में क्रमश: अलग-अलग पूजा की जाती है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। दस रूपों में काली ही प्रमुख और प्रथम हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएं अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता,  राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा के लिए लालायित रहते हैं।

अगले लेख में पढ़ें क्यों मनाई जाती है नवरात्रि?


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