देश की एकता के लिए बाबा साहब के विचार आज भी प्रासंगिक : मेघवाल
अजमेर। विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि देश में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक समरसता तथा देश की एकता के लिए संविधान निर्मा...
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अजमेर। विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि देश में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक समरसता तथा देश की एकता के लिए संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। देश के विकास के लिए हमें बाबा साहब के विचारों का अधिक से अधिक प्रचार करना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 14 अप्रेल को डॉ. अम्बेडकर के विचारों पर अमल की सीख के साथ ही अब इन सुधारों की शुरूआत हो गई है।
मेघवाल ने आज महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में डॉ. बी.आर.अम्बेडकर शोध पीठ की संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में यह विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी का विषय डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का राष्ट्र निर्माण में योगदान रखा गया था। मेघवाल ने कहा कि संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर भारत को एकता के सूत्र में पिरोने तथा इसे तरक्की के पथ पर आगे बढ़ाने की सोच रखते थे।
उन्होंने कहा कि लम्बे समय तक संविधान को उसके मूल स्वरूप में लागू नहीं किया जा सका। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डॉ. अम्बेडकर के विचारों के प्रचार-प्रसार एवं उनके बताए रास्ते पर चलकर शासन करने प्रतिबद्धता जाहिर करने से निश्चित तौर पर परिवर्तन आएगा। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी विद्यालयों में संविधान पढ़ाए जाने के जो आदेश दिए हैं वे बड़ा सकारात्मक परिवर्तन लाएंगे।
मेघवाल ने कहा कि धारा 370 का विरोध हो या अन्य विषय, डॉ. अम्बेडकर ने देश को एक रखने के लिए हमेशा पुरजोर वकालत की। उनके विचारों को आगे बढ़ाने के लिए एक वैचारिक आंदोलन खड़ा करना होगा। तभी समाज के सभी वर्गों, विशेषकर पिछड़े व दलित समुदायों को उनका वास्तविक अधिकार मिल सकेगा। इन्हीं विचारों से समाज की विसंगतियां भी दूर होंगी।
राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष ललित के पंवार ने कहा कि संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर का समाज को सबसे बड़ा योगदान मातृशक्ति को उनके अधिकार दिलाना एवं दलित समुदाय का सशक्तिकरण है। बाबा साहब बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उनके व्यक्तित्व को किसी एक पहलू से नहीं आंका जा सकता।
पंवार ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीय वर्ण व्यवस्था जो कि कर्म आधारित थी और विकृत होकर जन्म आधारित हो गई। यह व्यवस्था समाज के लिए सबसे अधिक विभाजनकारी है। यहां तक कि व्यक्ति के नाम में भी यह विसंगतियां दिखाई पड़ती है। डॉ. अम्बेडकर ने इन विसंगतियों का दंश स्वयं भोगा और इनके निराकरण के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया।
कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने जानकारी दी कि विश्वविद्यालय की डॉ. बी.आर.अम्बेडकर शोध पीठ के लिए एक करोड़ रूपए दिए गए हैं। इस राशि से मिलने वाले ब्याज से शोध पीठ का कार्य चलता रहेगा। विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय शिक्षा योजना में चयन किए जाने के पश्चात 5 करोड़ रूपए मिले हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, पूर्व कुलपति, अधिकारी, अतिथि एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
मेघवाल ने आज महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में डॉ. बी.आर.अम्बेडकर शोध पीठ की संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में यह विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी का विषय डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का राष्ट्र निर्माण में योगदान रखा गया था। मेघवाल ने कहा कि संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर भारत को एकता के सूत्र में पिरोने तथा इसे तरक्की के पथ पर आगे बढ़ाने की सोच रखते थे।
उन्होंने कहा कि लम्बे समय तक संविधान को उसके मूल स्वरूप में लागू नहीं किया जा सका। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डॉ. अम्बेडकर के विचारों के प्रचार-प्रसार एवं उनके बताए रास्ते पर चलकर शासन करने प्रतिबद्धता जाहिर करने से निश्चित तौर पर परिवर्तन आएगा। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी विद्यालयों में संविधान पढ़ाए जाने के जो आदेश दिए हैं वे बड़ा सकारात्मक परिवर्तन लाएंगे।
मेघवाल ने कहा कि धारा 370 का विरोध हो या अन्य विषय, डॉ. अम्बेडकर ने देश को एक रखने के लिए हमेशा पुरजोर वकालत की। उनके विचारों को आगे बढ़ाने के लिए एक वैचारिक आंदोलन खड़ा करना होगा। तभी समाज के सभी वर्गों, विशेषकर पिछड़े व दलित समुदायों को उनका वास्तविक अधिकार मिल सकेगा। इन्हीं विचारों से समाज की विसंगतियां भी दूर होंगी।
राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष ललित के पंवार ने कहा कि संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर का समाज को सबसे बड़ा योगदान मातृशक्ति को उनके अधिकार दिलाना एवं दलित समुदाय का सशक्तिकरण है। बाबा साहब बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उनके व्यक्तित्व को किसी एक पहलू से नहीं आंका जा सकता।
पंवार ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीय वर्ण व्यवस्था जो कि कर्म आधारित थी और विकृत होकर जन्म आधारित हो गई। यह व्यवस्था समाज के लिए सबसे अधिक विभाजनकारी है। यहां तक कि व्यक्ति के नाम में भी यह विसंगतियां दिखाई पड़ती है। डॉ. अम्बेडकर ने इन विसंगतियों का दंश स्वयं भोगा और इनके निराकरण के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया।
कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने जानकारी दी कि विश्वविद्यालय की डॉ. बी.आर.अम्बेडकर शोध पीठ के लिए एक करोड़ रूपए दिए गए हैं। इस राशि से मिलने वाले ब्याज से शोध पीठ का कार्य चलता रहेगा। विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय शिक्षा योजना में चयन किए जाने के पश्चात 5 करोड़ रूपए मिले हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, पूर्व कुलपति, अधिकारी, अतिथि एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
