जयपुर समारोह : कवि सम्मेलन में गूंजी देशभक्ति रचनाएं
https://khabarrn1.blogspot.com/2015/10/patriotic-writings-rang-out-in-jaipur-festival-kavi-sammelan.html
जयपुर। जयपुर समारोह में आज देश के जाने-माने कवि शशांक प्रभाकर (आगरा), आसकरण अटल (जोधपुर), नीरज (अलीगढ), अब्दुल अयुब गौरी (जयपुर), सुरेन्द्र शर्मा (दिल्ली), हरिऔम पंवार (मेरठ), बनज कुमार बनज (जयपुर) एवं सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) ने वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष, चुनावों एवं मंहगाई पर कडे-कटाक्ष के साथ ही अपनी देशभक्ति रचनाएं सुनाई।
कवि सम्मेलन में शशांक प्रभाकर (आगरा) ने ‘‘...लब्जों के कांव से जादू चुराके लाया हूं और मोहब्बत की खुशबू चुराके ले आया हूं, आप कहते इसे फन वह असलियत है मेरी किसी की आंख से आंसू चुराके लाया हूं’’ सुनाई, जिस पर श्रोताओं ने जमकर लुत्फ़ उठाया।
प्रसिद्ध फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' के संवाद लेखक आसकरण अटल (जोधपुर) ने मीडिया पर कटाक्ष करते हुए सुनाया कि ‘‘गांव में संस्कार, शहर में रोजगार था, रोजगार के लिए गांव छूटा आंखो की शर्म रही जाती.... वहां पगडी उतारने में आती थी शर्म यहां कपडे़ उतारने मे नहीं आती’’ सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटौरी।
नीरज (अलीगढ) ने ‘‘...बत्तमीजी कर रहे हैं आज, फिर भौंरे चमन में साथियों आंधी उठाने का जमाना आ गया है’’, ... लग रहा आंसुओं पर टैक्स पीड़ा कुर्क होती ताजा खून खेतों में बुआया जा रहा है’’ सुनाकर तालियां बटोरी।
अब्दुल अयुब गौरी (जयपुर) ने वीर रस भरी कविता ‘‘पन्ना की परिपाटी को प्रण-प्राणों से दोहरा लेंगे, वक्त पड़ा तो अपने बेटों के भी सर कटवा लेंगे’’, ‘‘कर देना संकेत कभी वीरों की सांझ नहीं होती, जो बेटों की बलि देदे वो माता बांझ नहीं होती’’ सुनाकर वातावरण को भारत माता की जय नारों से गुंजायमान कर दिया।
हरिऔम पंवार (मेरठ) ने गरीबी की पीड़ा को राजनीति से जोड़ते हुए सुनाया ‘‘झोपडि़यों की पीड़ा को जो भी दरबार नहीं सुनता उसका भाषण लाल किला बारंबार नहीं सुनता’’ सुनाकर जोरदार तालियां बजवाई।
कवि सम्मेलन में शशांक प्रभाकर (आगरा) ने ‘‘...लब्जों के कांव से जादू चुराके लाया हूं और मोहब्बत की खुशबू चुराके ले आया हूं, आप कहते इसे फन वह असलियत है मेरी किसी की आंख से आंसू चुराके लाया हूं’’ सुनाई, जिस पर श्रोताओं ने जमकर लुत्फ़ उठाया।
प्रसिद्ध फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' के संवाद लेखक आसकरण अटल (जोधपुर) ने मीडिया पर कटाक्ष करते हुए सुनाया कि ‘‘गांव में संस्कार, शहर में रोजगार था, रोजगार के लिए गांव छूटा आंखो की शर्म रही जाती.... वहां पगडी उतारने में आती थी शर्म यहां कपडे़ उतारने मे नहीं आती’’ सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटौरी।
नीरज (अलीगढ) ने ‘‘...बत्तमीजी कर रहे हैं आज, फिर भौंरे चमन में साथियों आंधी उठाने का जमाना आ गया है’’, ... लग रहा आंसुओं पर टैक्स पीड़ा कुर्क होती ताजा खून खेतों में बुआया जा रहा है’’ सुनाकर तालियां बटोरी।
अब्दुल अयुब गौरी (जयपुर) ने वीर रस भरी कविता ‘‘पन्ना की परिपाटी को प्रण-प्राणों से दोहरा लेंगे, वक्त पड़ा तो अपने बेटों के भी सर कटवा लेंगे’’, ‘‘कर देना संकेत कभी वीरों की सांझ नहीं होती, जो बेटों की बलि देदे वो माता बांझ नहीं होती’’ सुनाकर वातावरण को भारत माता की जय नारों से गुंजायमान कर दिया।
हरिऔम पंवार (मेरठ) ने गरीबी की पीड़ा को राजनीति से जोड़ते हुए सुनाया ‘‘झोपडि़यों की पीड़ा को जो भी दरबार नहीं सुनता उसका भाषण लाल किला बारंबार नहीं सुनता’’ सुनाकर जोरदार तालियां बजवाई।