शारदीय नवरात्रा कल से, जानिए कैसे और कब करें घट स्थापना
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शारदीय नवरात्रा कल से शुरू हो रहे हैं और देशभर में कल घर-घर घटस्थापना किए जाने के साथ ही मां दुर्गा की उपासना शुरू हो जाएगी। इस बार दो प्रतिपदा 13-14 अक्टूबर को रहेगी, वहीं दुर्गाष्टमी 21 को मनाई जाएगी तथा अगले दिन रामनवमी एवं दशहरा एक ही दिन मनाया जाएगा।
इस बार महानवमी श्रवण नक्षत्रयुक्त होने से विजयदशमी पर्व भी इसी दिन मनाया जाएगा। दशहरा अक्सर श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है और इस बार यह नक्षत्र नवमी के दिन पड़ रहा है, जिसके कारण विजयदशमी 22 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। नवरात्र में 19 अक्टूबर को सूर्य संक्रांति का पुण्यकाल पड़ रहा है। इस दिन सूर्य अपनी नीच राशि तुला में प्रवेश कर रहा है। अभिजीत मुहूर्त 11.50 से 12.36 मिनट तक रहेगा।
सबसे पहले घट स्थापना के स्थान को शुद्ध जल से साफ करके वहां गंगाजल का छिड़काव करें, फिर अष्टदल बनाएं। उसके ऊपर एक लकड़ी का पाटा रखें और उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर अंकित चित्र की तरह पांच स्थानों पर थोड़े-थोड़े चावल रखें, जिन पर क्रमश गणेशजी, मातृका, लोकपाल, नवग्रह तथा वरुण देव को स्थान दे।
सर्वप्रथम थोड़े चावल रखकर श्रीगणेजी का स्मरण करते हुए स्थान ग्रहण करने का आग्रह करें। इसके बाद मातृका, लोकपाल, नवग्रह और वरुण देव को स्थापित करें और स्थान लेने का आह्वान करें। फिर गंगाजल से सभी को स्नान कराएं। स्नान के बाद तीन बार कलावा लपेटकर प्रत्येक देव को वस्त्र के रूप में अर्पित करें। अब हाथ जोड़कर देवों का आह्वान करें।
देवों को स्थान देने के बाद अब आप अपने कलश के अनुसार जौ मिली मिट्टी बिछाएं। कलश में जल भरें। अब कलश में थोड़ा और जल.गंगाजल डालते हुए 'ओम वरुणाय नम:' मंत्र का जाप करते हुए कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी-अशोक पल्लव डालें। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें।
कलश के ऊपर रोली से ओम या स्वास्तिक लिखें। मां भगवती का ध्यान करते हुए अब आप मां भगवती की तस्वीर या मूर्ति को स्थान दें। एक नंबर पर थोड़े से चावल डालें। दुर्गा मां की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अब यदि आप अखंड दीप अर्पित करना चाहते हैं, तो सूर्य देव का ध्यान करते हुए उन्हें अखंड ज्योति का गवाह रहने का निवेदन करते हुए जोत को प्रज्ज्वलित करें। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए।
इसके बाद पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करो। पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र 'ओउम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो, उसी से आराधना करें। संभव हो तो श्रृंगार का सामान और नारियल.चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
जानिए, क्यों मनाई जाती है नवरात्रि?
इस बार महानवमी श्रवण नक्षत्रयुक्त होने से विजयदशमी पर्व भी इसी दिन मनाया जाएगा। दशहरा अक्सर श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है और इस बार यह नक्षत्र नवमी के दिन पड़ रहा है, जिसके कारण विजयदशमी 22 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। नवरात्र में 19 अक्टूबर को सूर्य संक्रांति का पुण्यकाल पड़ रहा है। इस दिन सूर्य अपनी नीच राशि तुला में प्रवेश कर रहा है। अभिजीत मुहूर्त 11.50 से 12.36 मिनट तक रहेगा।
कैसे शुरू हुई नवरात्री की परंपरा और क्यों मनाई जाती है वर्ष में दो बार
सबसे पहले घट स्थापना के स्थान को शुद्ध जल से साफ करके वहां गंगाजल का छिड़काव करें, फिर अष्टदल बनाएं। उसके ऊपर एक लकड़ी का पाटा रखें और उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर अंकित चित्र की तरह पांच स्थानों पर थोड़े-थोड़े चावल रखें, जिन पर क्रमश गणेशजी, मातृका, लोकपाल, नवग्रह तथा वरुण देव को स्थान दे।
सर्वप्रथम थोड़े चावल रखकर श्रीगणेजी का स्मरण करते हुए स्थान ग्रहण करने का आग्रह करें। इसके बाद मातृका, लोकपाल, नवग्रह और वरुण देव को स्थापित करें और स्थान लेने का आह्वान करें। फिर गंगाजल से सभी को स्नान कराएं। स्नान के बाद तीन बार कलावा लपेटकर प्रत्येक देव को वस्त्र के रूप में अर्पित करें। अब हाथ जोड़कर देवों का आह्वान करें।
जानिए, आखिर क्या होता है 'उपवास'?
देवों को स्थान देने के बाद अब आप अपने कलश के अनुसार जौ मिली मिट्टी बिछाएं। कलश में जल भरें। अब कलश में थोड़ा और जल.गंगाजल डालते हुए 'ओम वरुणाय नम:' मंत्र का जाप करते हुए कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी-अशोक पल्लव डालें। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें।
कलश के ऊपर रोली से ओम या स्वास्तिक लिखें। मां भगवती का ध्यान करते हुए अब आप मां भगवती की तस्वीर या मूर्ति को स्थान दें। एक नंबर पर थोड़े से चावल डालें। दुर्गा मां की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अब यदि आप अखंड दीप अर्पित करना चाहते हैं, तो सूर्य देव का ध्यान करते हुए उन्हें अखंड ज्योति का गवाह रहने का निवेदन करते हुए जोत को प्रज्ज्वलित करें। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए।
वर्ष में दो बार क्यों मनाई जाती है नवरात्रि?
इसके बाद पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करो। पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र 'ओउम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो, उसी से आराधना करें। संभव हो तो श्रृंगार का सामान और नारियल.चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
ऐसे करें दुर्गा सप्तशती का पाठ.:
आप दुर्गा सप्तशती पाठ करते हैं, तो संकल्प लेकर पाठ आरंभ करें। सिर्फ कवच आदि का पाठ कर व्रत रखना चाहते हैं, तो माता के नौ रूपों का ध्यान करके कवच और स्तोत्र का पाठ करें, इसके बाद आरती करें। दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ एक दिन में नहीं करना चाहते हैं, तो दुर्गा सप्तशती में दिए श्रीदुर्गा सप्तश्लोकी का 11 बार पाठ करके अंतिम दिन 108 आहुति देकर नवरात्र में श्री नवचंडी जपकर माता का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।घटस्थाना के लिए शुभ मुहूर्त के समय :
- प्रात: 9.19 से 10.46 तक चर।
- प्रात: 10.46 से 12.13 तक रात्रि 7.33 .906 तक लाभ।
- दोपहर 12.13. से 1.40 तक रात्रि 12.13 से1.46 तक अमृत।
- रात्रि 10.40 से 12.13 तक शुभ।