हॉकी के इस महान जादुगर ने हिटलर को भी बनाया था अपना दिवाना
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महज 14 वर्ष की आयु में हॉकी स्टिक थामने वाले मेजर ध्यानचंद जिनकी वजह से भारत को हॉकी में तीन बार गोल्ड मेडल हासिल हुआ और भारतीय हॉकी ने उस दौर में दुनिया पर अपना दबदबा बनाया जब जर्मनी जैसे देशों का बोलबाला था। मेजर ध्यानचंद जिनकी हॉकी स्टिक पर एक बार रिसर्च तक की बात विदेशी देशों ने कर डाली थी।
उन्होंने देश में हॉकी को उस मुकाम तक पहुंचाया, जो आज शायद इस खेल के लिए सिर्फ एक सपना बनकर रह गया। तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले मेजर ध्यानंद ने तीनों बार देश को हॉकी का गोल्ड मेडल दिलाया था। हॉकी के जादू ध्यानचंद की वजह से भारत को वर्ष 1928 में एम्स्टरडम ओलंपिक, वर्ष 1932 में एंजिल्स ओलंपिक और वर्ष 1936 में बर्लिन ओलंपिक 1936 में देश को गोल्ड मेडल दिलाया था।
हिटलर को भी कर दिया था इंकार
सिर्फ सोलह वर्ष की उम्र में भारतीय सेना का गौरव बनने वाले मेजर ध्यानचंद का हॉकी से लगाव किस कदर था, इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है। मेजर ध्यानचंद और हॉकी से जुड़े यूं तो तमाम किस्से आपको सुनने को मिलेंगे लेकिन एक किस्सा ऐसा है जो न सिर्फ इस खेल के लिए उनके प्रेम को साबित करता है बल्कि देश के लिए उनके समर्पण भाव को भी बताता है।
यह किस्सा वर्ष 1936 के बर्लिन ओलंपिक का है, जहां हॉकी के फाइनल में 15 अगस्त 1936 को भारत और जर्मनी आमने-सामने थे। भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया था। उस समय एडोल्फ हिटलर जर्मनी पर शासन कर रहे थे। कई लोग मान बैठे थे कि हिटलर के शहर बर्लिन में जर्मनी को हराना भारत के लिए असंभव है। भारत की निडर जीत ने हिटलर को भी हैरान कर दिया था। उस समय भारतीय टीम के पास स्पाइक वाले जूते भी नहीं थे और रबड़ के जूतों में खेलने वाले भारतीय खिलाड़ी लगातार फिसल रहे थे।
तब मेजर ध्यानचंद ने एक तरीका खोजा और नंगे पैर खेलना शुरू किया। बस फिर क्या था, जो भारतीय टीम फस्र्ट हाफ में जर्मनी से पिछड़ रही थी, वह सेकेंड हाफ में जर्मनी पर हावी होने लगी। जर्मनी की बुरी हालत देख हिटलर मैदान छोड़कर चले गए। अगले दिन जब हिटलर ने भारतीय कप्तन ध्यानचंद को मिलने के लिए बुलाया तो वे काफी डर गए कि आखिर तानाशाह ने उन्हें क्यों बुलाया है।
लंच करते हुए हिटलर ने उनसे पूछा कि वे भारत में क्या करते हैं? ध्यानचंद ने बताया कि वे भारतीय सेना में मेजर हैं। इस बात को सुनकर हिटलर बहुत खुश हुए और उन्होंने ध्यानचंद के सामने जर्मनी की सेना से जुडऩे का प्रस्ताव रख दिया। ध्यानचंद अचानक से मिले इस प्रस्ताव से हैरान थे। उन्होंने अपनी भावनाओं को चेहरे पर नहीं आने दिया और विनम्रता से हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में 43 वर्ष की उम्र में हॉकी को अलविदा कह दिया था, लेकिन आज भी लोग उन्हें और उनके खेल का जिक्र हरपल करते हैं तथा मेजर ध्यानचंद को हॉकी के महान जादुगर के रूप में पहचाना जाता है।
उन्होंने देश में हॉकी को उस मुकाम तक पहुंचाया, जो आज शायद इस खेल के लिए सिर्फ एक सपना बनकर रह गया। तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले मेजर ध्यानंद ने तीनों बार देश को हॉकी का गोल्ड मेडल दिलाया था। हॉकी के जादू ध्यानचंद की वजह से भारत को वर्ष 1928 में एम्स्टरडम ओलंपिक, वर्ष 1932 में एंजिल्स ओलंपिक और वर्ष 1936 में बर्लिन ओलंपिक 1936 में देश को गोल्ड मेडल दिलाया था।
हिटलर को भी कर दिया था इंकार
सिर्फ सोलह वर्ष की उम्र में भारतीय सेना का गौरव बनने वाले मेजर ध्यानचंद का हॉकी से लगाव किस कदर था, इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है। मेजर ध्यानचंद और हॉकी से जुड़े यूं तो तमाम किस्से आपको सुनने को मिलेंगे लेकिन एक किस्सा ऐसा है जो न सिर्फ इस खेल के लिए उनके प्रेम को साबित करता है बल्कि देश के लिए उनके समर्पण भाव को भी बताता है।
यह किस्सा वर्ष 1936 के बर्लिन ओलंपिक का है, जहां हॉकी के फाइनल में 15 अगस्त 1936 को भारत और जर्मनी आमने-सामने थे। भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया था। उस समय एडोल्फ हिटलर जर्मनी पर शासन कर रहे थे। कई लोग मान बैठे थे कि हिटलर के शहर बर्लिन में जर्मनी को हराना भारत के लिए असंभव है। भारत की निडर जीत ने हिटलर को भी हैरान कर दिया था। उस समय भारतीय टीम के पास स्पाइक वाले जूते भी नहीं थे और रबड़ के जूतों में खेलने वाले भारतीय खिलाड़ी लगातार फिसल रहे थे।
तब मेजर ध्यानचंद ने एक तरीका खोजा और नंगे पैर खेलना शुरू किया। बस फिर क्या था, जो भारतीय टीम फस्र्ट हाफ में जर्मनी से पिछड़ रही थी, वह सेकेंड हाफ में जर्मनी पर हावी होने लगी। जर्मनी की बुरी हालत देख हिटलर मैदान छोड़कर चले गए। अगले दिन जब हिटलर ने भारतीय कप्तन ध्यानचंद को मिलने के लिए बुलाया तो वे काफी डर गए कि आखिर तानाशाह ने उन्हें क्यों बुलाया है।
लंच करते हुए हिटलर ने उनसे पूछा कि वे भारत में क्या करते हैं? ध्यानचंद ने बताया कि वे भारतीय सेना में मेजर हैं। इस बात को सुनकर हिटलर बहुत खुश हुए और उन्होंने ध्यानचंद के सामने जर्मनी की सेना से जुडऩे का प्रस्ताव रख दिया। ध्यानचंद अचानक से मिले इस प्रस्ताव से हैरान थे। उन्होंने अपनी भावनाओं को चेहरे पर नहीं आने दिया और विनम्रता से हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में 43 वर्ष की उम्र में हॉकी को अलविदा कह दिया था, लेकिन आज भी लोग उन्हें और उनके खेल का जिक्र हरपल करते हैं तथा मेजर ध्यानचंद को हॉकी के महान जादुगर के रूप में पहचाना जाता है।
