मोदी सरकार : एक साल बेमिसाल, लेकिन मंजिल अभी दूर

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केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का 26 मई को एक साल पूरा होने के मद्देनजर सरकार को अब जनता की कसौटी पर परखने का समय है। हालांकि, किसी भी पांच साला सरकार के कामकाज को कसौटी पर कसने के लिए एक साल की अवधि को पर्याप्त माना जाना उचित नहीं होता, क्योंकि इसके बाद भी उसके पास चार साल का लम्बा समय और होता है, जिसमे वह काफी कुछ कर सकती है।

भारत जैसे विशाल और राजनीतिक विविधता व मत अनेकता वाले देश में ऐसा आकलन किसी नाइंसाफी से कम नहीं है। लेकिन अगर सरकार साफ नीयत और स्पष्ट मंशा से अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही हो तो उसकी अनुकरणीय कार्यसंस्कृति से लोगों को रूबरू कराना जरूरी भी बन जाता है। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकलापों पर नजर डाली जाए तो सामने आता है कि सरकार काम कर रही है और ऐसे में आप अगर मोदी सरकार के आलोचक भी हैं तो भी मानेंगे कि अब यूपीए सरकार के दिनों वाले हालात नहीं रहे। मोदी सरकार ने पिछले साल 26 मई को कार्यभार संभाला था। उसके बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ये साफ कर दिया कि वे तो देश को विकास के रास्ते पर लेकर जाना चाहते है और देश को भ्रष्टाचार से मुख्त बनाना चाहते हैं।

मोदी सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा होने के मौके केन्द्र सरकार 'साल एक-शुरुआत अनेक' के नारे के साथ जनता के सामने रिपोर्ट कार्ड पेश करेगी। मोदी सरकार की तारीफ करते हुए नारों में कहा गया है कि 'वर्ष एक काम अनेक', 'मोदी सरकार काम लगातार'। राजग सरकार की एक साल की उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने विस्तृत तैयारी की है। इसके लिए एक ओर जहां सभी मंत्रियों को अधिक से अधिक प्रेस कांफ्रेंस करने और इंटरव्यू देने की सलाह दी गई है, वहीं मंत्रियों से सोशल मीडिया के भरपूर उपयोग के लिए फेसबुक और ट्विटर पर भी इंटरव्यू देने का अनुरोध किया है।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी इस सर्कुलर में कहा गया है कि एक अभियान चलाकर इस मौके पर सरकार की उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाया जाए। विभिन्न मंत्रालयों में काम करने वाले सूचना अधिकारियों को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने कहा है कि इस मौके पर संबंधित मंत्रियों के अधिक से अधिक प्रेस कांफ्रेंस, मीडिया ब्रीफिंग और विशेष साक्षात्कार आयोजित कराने की कोशिश होनी चाहिए। ये भी ध्यान रखा जाए कि इसमें न्यूज वेबसाइट्स को भी पर्याप्त अहमियत मिले।

पिछले एक साल के दौरान मोदी सरकार के खाते में कुछ उपलब्धियां हैं तो कुछ नाकामियां भी शामिल है। सरकार की कुछ योजनाओं को लेकर संसद में घमासान मचा रहा तो कुछ योजनाएं जनता को खूब पसंद आई। मोदी सरकार की कई योजनाओं ने खूब सुर्खियां बटोरीं और लोगों ने हाथोंहाथ भी लिया। लेकिन कई मामलों में मोदी सरकार की जमकर किरकिरी भी हुई। लैंड बिल के मामले पर मोदी सरकार को विपक्ष ने तो घेरा ही किसान भी नाखुश दिखे। आइए, नजर डालते हैं मोदी सरकार के साल साल के दौरान आई विभिन्न उपलब्धियों और खामियों पर, जिससे सरकार की छवि बनी और बिगड़ी...

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उपलब्धियां ...

जनधन योजना : केंद्र सरकार के 100 दिन पूरे होने पर प्रधानमंत्री जन-धन योजना 28 अगस्त 2014 को शुरू की गई। इसका उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया। प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत 13.2 करोड़ बैंक खाते खोले गए। लोगों ने इसके तहत 11 हजार करोड़ रुपए बैंकों में जमा कराए। सरकार ने यह लक्ष्य छह महीने में हासिल कर लिया।

स्वच्छ भारत अभियान : पीएम मोदी के इस अभियान की पूरे देश में चर्चा हुई। पूरे देश को 'स्वच्छ भारत मिशन' अभियान के तहत अक्टूबर 2019 तक जोडऩे का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही स्वच्छ विद्यालय मिशन के अंतर्गत 15 अगस्त 2015 तक सभी स्कूलों को इससे जोड़ा जाएगा। पीएम की इस पहल में हर तबके ने साथ दिया। अभियान से बड़ी फिल्मी और खेल जगत की हस्तियां भी जुड़ीं। सभी सांसदों से अपील की गई कि वे सासंद निधि का कम से कम 50 फीसदी धन स्वच्छ भारत मिशन अभियान पर खर्च करें।

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना : 9 मई को नरेंद्र मोदी ने कोलकाता में तीन बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का शुभारंभ किया। इस मौके पर उनके साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। इनमें एक योजना पेंशन क्षेत्र की और दो बीमा योजनाएं हैं। सभी बैंक खाता धारकों के लिए ये तीनों योजनाएं हैं।  प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना 18 से 50 साल के लोगों के लिए है। इस योजना के लिए सालाना 330 रुपये का प्रीमियम देना होगा, जबकि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के लिए सलाना 12 रुपये का प्रीमियम देना होगा। दुर्घटना में अपाहिज होने पर भी पीड़ित को 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा मिलेगा।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना : शिशु लिंग अनुपात में लगातार कमी रोकने के लिए सरकार ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना शुरू की। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत हरियाणा में की थी। इसका मुख्य लक्ष्य है कन्या भू्रण हत्या रोकना और बेटियों को पढ़ाना। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के लिए 100 करोड़ की शुरुआती राशि की घोषणा की। इसके तहत सुकन्या समृद्धि योजना की शुरुआत की गई।

मेक इन इंडिया : 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के तहत भारत को उत्पादन का केंद्र बनाने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। इसके लिए मोदी ने देश के उद्योगपतियों के अलावा विदेशी दौरे के दौरान निवेशकों को भी लुभाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर 2015 को इसका ऐलान किया। अपनी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का आरंभ करते हुए मोदी ने वादा किया कि वह सुगम और प्रभावी सरकार देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि देश उच्च आर्थिक वृद्धि प्राप्त कर सके और रोजगार के अवसर बढ़ सकें।

विदेश नीति : सत्ता संभालने ही नरेंद्र मोदी का विदेश नीति पर खासा जोर रहा। मोदी ने ताबड़तोड़ विदेशी दौरे कर मजबूत रिश्ते की नींव को और मजबूत करने की कोशिश की। मोदी ने ना सिर्फ अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी जैसे बड़े देशों पर ध्यान दिया बल्कि पड़ोसी छोटे देशों को भी तवज्जो दी। इसी के तहत उन्होंने अपना पहला दौरा भूटान का किया। फिर नेपाल भी पहुंचे। इसके बाद मोदी ने बड़े देशों का दौरा किया।

नमामि गंगे : गंगा की सफाई के लिए मोदी सरकार ने खाका तैयार किया। इसके लिए 2000 करोड़ रुपए का बजट भी रखा गया। मोदी सरकार बजट में गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए 'नमामि गंगेÓ मिशन के तहत 2037 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया।

कश्मीरी पंडितों की वापसी : कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के लिए मोदी सरकार ने 500 करोड़ का पैकेज रखा। सरकार ने अप्रैल में अपनी मंशा साफ कर दी कि वो घाटी में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर गंभीर है। हालांकि इस पहल का घाटी में जोरदार विरोध हुआ और अलगाववादियों ने इसके खिलाफ बंद का ऐलान किया। जगह-जगह धरना-प्रदर्शन शुरू हुआ। 1989 के शुरू में आतंकी हिंसा में तेजी ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी का त्याग करने पर मजबूर कर दिया। सरकारी आंकड़ों के बकौल, पिछले 25 सालों में 59 हजार परिवारों के तकरीबन 3 लाख सदस्यों ने कश्मीर को छोड़ दिया था।

समय की पाबंदी : मोदी सरकार में मंत्रालय और सरकारी विभागों के वर्क कल्चर में बदलाव दिखा। समय की पाबंदी पर जोर रहा। सख्ती बरती गई। अधिकतर ऑफिसों में बायोमैट्रिट अटेंडेंस सिस्टम दुरुस्त किया गया। इससे खासा असर पड़ा और सरकारी दफ्तरों में कर्मचारी समय पर पहुंचने लगे।

बुलेट ट्रेन : रेल बजट में बुलेट ट्रेन की घोषणा हुई। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में मुंबई-अहमदाबाद रूट पर इसे चलाने का ऐलान किया। 60 हजार करोड़ के इस प्रोजेक्ट पर हालांकि सवाल भी उठे पर पहली बार भारत में इसे चलाने की चर्चा ने जरूर जोर पकड़ा। चीन और जापान ने इसमें मदद की पेशकश भी की।

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कमजोर कड़ियां...

लैंड बिल : लैंड बिल पर संसद के बाहर और अंदर संग्राम मचा रहा। विपक्ष ने संसद में इस मुद्दे पर सरकार की जमकर आलोचना की। लोकसभा में तो बिल पास हो गया पर सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हो सका। विपक्ष आए दिन इसे लेकर सरकार पर हमला बोलता रहा। इसे लेकर संसद के बाहर मार्च भी निकाला गया। तमाम सर्वे में लोग इस बिल के खिलाफ ही नजर आए।

काला धन मामला : मोदी सरकार ने सरकार संभालते ही काले धन के मुद्दे पर एसआईटी का गठन कर खूब वाहवाही लूटी। लेकिन ये दौर ज्यादा नहीं चला। काले धन रखने वालों का नाम सार्वजनिक न करने की मजबूरी गिना रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली की खूब किरकिरी हुई। अंत में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को इनके नाम बताए। उधर, विपक्ष बार-बार नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेता रहा और हर किसी को 15 लाख देने के वादे पर तंज कसता रहा।

महंगाई का मुद्दा : महंगाई के मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन मिलाजुला लेकिन कुछ खास नहीं रहा। महंगाई रोकने का वादा करने वाली मोदी सरकार को इसमें खास सफलता हाथ नहीं लगी। चीजों के दाम बढ़ते रहे हालांकि इतने बेकाबू नहीं हुए कि स्थिति जनविरोध तक पहुंच जाए। हां, इस दौरान सब्जियों के दाम काबू में रहे। सरकार की असली परीक्षा आने वाले दिनों में होगी।

किसानों का कलेश : किसानों के मुद्दे पर भी मोदी सरकार की जमकर किरकिरी हुई। फरवरी-मार्च में हुई जोरदार बारिश और ओलावृष्टि से पूरे उत्तर भारत में फसल बर्बाद हुई। सैकड़ों किसानों ने आत्महत्या की। मुआवजे के नाम पर किसानों के साथ मजाक हुआ और कहीं-कहीं तो उन्हें 100-100 रुपये के चेक भी थमाए गए। सरकारी मशीनरी पूरी तरह फेल नजर आई। किसानों का हालचाल लेने सरकारी नुमाइंदे नहीं पहुंचे।

पेट्रोल-डीजल की मार : मोदी सरकार के एक वर्ष के दौरान पेट्रोल-डीजल के दाम में शुरुआत में खासी कमी आई। लेकिन हाल ही में 15 दिन के भीतर दूसरी बार दामों में भारी बढ़ोतरी हुई। 15 मई को ही पेट्रोल के दाम 3 रुपये और डीजल के दाम में 2 रुपये की बढ़ोतरी हुई। 15 दिनों के भीतर ही पेट्रोल 7 रुपया और डीजल 5 रुपया महंगा हुआ।

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मोदी सरकार के कुछ विशेष दिन एवं आयोजन :


  • 26 मई, 2014 : नरेन्द्र मोदी और उनकी कैबिनेट को राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई गई। 
  • 27 मई, 2014 : मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात की। दोनों के बीच आपसी संबंधों को सुधारने के सवाल पर बात हुई। 
  • 14 जून, 2014 : प्रधानमंत्री ने देश के सबसे बड़े युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य को देश को समर्पित किया। अगले ही दिन वे भूटान की यात्रा पर गए। उनका वह प्रधानमंत्री के रूप में पहला देश से बाहर का दौरा था। 
  • 14 जुलाई, 2014 : मोदी ने ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति जिशिनपिंग और रूप के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की। 
  • 3 अगस्त, 2014 : मोदी नेपाल के दौरे पर चले गए। वहां पर उन्होंने भारत-नेपाल संबंधों को और मजबूत बनाने की दिशा में बातचीत की। 
  • 15 अगस्त को मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश को लाल किले की प्राचीर से स्वाधीनता दिवस के अवसर पर संबोधित किया। उन्होंने उस मौके पर स्वच्छ भारत अभियान का आगाज किया। 
  • 28 सितंबर, 2014 : को मोदी ने अमेरिका में अपना जलवा बिखेरा। उन्होंने न्यूयार्क के मैडिसन चौक पर अपार जनसमूह को संबोधित किया। वे अमेरिका के राष्ट्रपति से भी मिले। इस तरह से मोदी सरकार के लिए एक साल में बहुत से दिन खासमखास रहे।

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हालिया सर्वे में सामने आए आंकड़े बयां करते हैं कि मोदी सरकार से लोगों ने बहुत उम्मीदें की थीं, जिन पर सरकार को अभी आगे बढऩा है। सर्वे के मुताबिक मोदी सरकार के 'स्वच्छ भारत मिशन' को लोगों के बीच खासा पसंद किया गया है। इसके अलावा 'जन-धन योजना', 'मेक इन इंडिया' जैसी मुहिम ने सरकार की मजबूत छवि लोगों के बीच पेश की है। सर्वे के अनुसार, करीब तीन चौथाई लोग मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं। वहीं, मेट्रो शहरों के 82 फीसदी और गैर मेट्रो के 74 फीसदी लोगों ने माना कि आर्थिक विकास के मोर्चे पर भी सरकार सही दिशा में बढ़ रही है। पिछले एक साल में भ्रष्टाचार का कोई हाईप्रोफाइल मामला नहीं आने के कारण भी लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति सकारात्मक धारणा बनी है। वहीं, स्वच्छता के मुद्दे पर मेट्रो शहरों के 86 फीसदी लोगों ने सरकार को पूरे नंबर दिए।

एक सर्वे में कुल 12,481 लोगों से बातचीत की गई। कोई भी वैश्विक नेता इस बात पर खुश हो सकता है कि हर चार में से तीन मतदाता उसके कामकाज को पसंद कर रहे हैं, पर यह पिछले साल अगस्त में किए गए सर्वेक्षण से थोड़ा कम है। तब इसी संस्था के सर्वे में 82 फीसदी लोगों ने मोदी सरकार के कामकाज को पसंद किया था। दूसरी ओर देखें तो राज्यसभा में भाजपा के लिए विपक्षी दल लगातार मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। वहीं निवेशक इस बात से नाराज हो सकते हैं कि सरकार कर संबंधी उलझनों को दूर करने के लिए अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर रही है। महानगरों के 82 फीसदी लोग और गैर महानगरों के 67 फीसदी लोगों ने मोदी सरकार के कामकाज पर अपनी मुहर लगाई है। वहीं महानगरों के 82 फीसदी और गैर महानगरों के 74 फीसदी लोगों ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को सही ठहराया है।

हां, यह सही है कि कृषि संकट पर केंद्र सरकार के कामकाज को महानगरों या गैर महानगरों के लोग यथोचित नहीं मानते। पर भाजपा अब भी सबसे लोकप्रिय पार्टी है। महानगरों में 82 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने 2014 में पार्टी को वोट दिया था, वहीं इनमें से 70 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अब भी इसी पार्टी को अपना वोट देंगे। वहीं गैर महानगरों में 64 फीसदी लोगों ने भाजपा को वोट दिया था, इनमें से 62 फीसदी लोग अब भी पार्टी के साथ हैं। एक साल में कोई हाई प्रोफाइल भ्रष्टाचार का मामला नहीं आया है, इसलिए भाजपा के सामने संतुष्ट होने का कारण है। आने वाले समय में कमजोर मानसून के भी संकेत हैं, इसके बावजूद सरकार लोगों से मिल रही सकारात्मक प्रतिक्रिया से खुश हो सकती है।

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क्या कहते हैं सर्वे :

आर्थिक विकास : आर्थिक विकास के मोर्चे पर भी बड़ी संख्या में लोग मोदी सरकार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। शहरी क्षेत्र के 82 फीसदी लोग मानते हैं कि मोदी सरकार आर्थिक विकास के मुद्दे पर देश को सही दिशा में लेकर आगे बढ़ रही है। वहीं महज 13 फीसदी लोग सरकार की आर्थिक नीतियों के साथ अपनी सहमति नहीं रखते। इस मामले में 5 फीसदी लोगों का विचार तटस्थ है। अगर गैर शहरी क्षेत्र से सर्वे में शामिल लोगों के विचारों की बात करें तो यहां भी 74 फीसदी लोग मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को सही ठहरा रहे हैं। यहां पर 17 फीसदी लोग सरकार के खिलाफ हैं, जबकि महज 9 फीसदी लोग इस मामले में अपना कोई विचार नहीं रखना चाहते।

किसानों का मुद्दा : केंद्र सरकार के सामने कजज़् में डूबे किसानों के मुद्दे को सुलझाना अहम है। कुछ महीने पहले हुई ओलावृष्टि और आंधी-तूफान से देश के कई हिस्सों में फसल बरबाद भी हुई है। देश के किसानों की समस्याओं पर बात करें तो शहरी क्षेत्र के 64 फीसदी लोग मानते हैं कि इस मुद्दे को केंद्र की मोदी सरकार ने सही तरीके से उठाया है और किसानों की समस्याओं को हल करने को लेकर सरकार गंभीरता से काम कर रही है। वहीं 24 फीसदी लोग मानते हैं कि सरकार किसानों के जख्म पर मरहम लगाने में असफल रही है। उधर 12 फीसदी लोग इस मामले में कोई विचार नहीं दे सके। हालांकि छोटे शहरों के उत्तर देने वालों लोगों में 52 फीसदी लोग ही मानते हैं कि मोदी सरकार किसानों की हमदर्द है। वहीं गैर महानगर के 32 फीसदी लोग मानते हैं कि केंद्र सरकार किसानों के मुद्दों पर गंभीर नहीं है। उधर, 16 फीसदी लोग इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहना चाहते।

स्वच्छता अभियान : मोदी सरकार ने गांधी जयंती के मौके पर देशभर में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। जिस तरह से सफाई और स्वच्छता के मुद्दे पर केंद्र सरकार काम कर रही है, इस पर शहरी क्षेत्र के 86 फीसदी लोग सहमत हैं। उनका कहना था कि सरकार ने इस मुद्दे को उठा कर अच्छा काम किया है। वहीं 10 फीसदी लोग इससे सहमत नहीं हैं, जबकि 5 फीसदी लोग इस मुद्दे पर तटस्थ हैं। गैर महानगर क्षेत्र के लोगों की राय की बात करें तो 78 फीसदी लोग सरकार के स्वच्छता अभियान के साथ वहां भी अपनी सहमति जता रहे हैं। वहीं महज 16 फीसदी लोग इस तरह के अभियान के खिलाफ हैं। महज 6 फीसदी लोग इस मामले में अपना कोई विचार नहीं रखना चाहते।


मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल के बारे में आपका क्या सोचना है? नीचे दिए गए कॉमेंट बॉक्स में अपने विचार जरूर लिखें....।


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