मेरे अपने-हुतूतू के बीच से झांकता एक धवल और गुलजार कलाकार
18 अगस्त गुलजार साहब के जन्मदिवस पर विशेष हिन्दी सिनेमा में फिल्मकार-गीतकार-संवाद लेखक और साहित्यकार गुलजार जैसा व्यक्तित्व रखने वाले अं...
18 अगस्त गुलजार साहब के जन्मदिवस पर विशेष
हिन्दी सिनेमा में फिल्मकार-गीतकार-संवाद लेखक और साहित्यकार गुलजार जैसा व्यक्तित्व रखने वाले अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं। सफेद झक कुरता और पायजामा। चेहरे पर मुस्कान और मृदुभाषी। हिन्दी और उर्दू के साफ उच्चारण, जिसमें कहीं से पंजाबीपन की झलक तक नहीं दिखती। गुलजार से मिलो तो ऐसा लगता है कि मिलते रहो। बातों का सिलसिला कभी खत्म न होने पाए, ऐसी इच्छा होती है। गुलजार भले ही शख्स के रूप में एक हों, लेकिन उनके हजारों चेहरे हैं और उन्होंने अपने हजारों चेहरों से लाखों प्रशंसक-दर्शकों को अपने से जोड़ा है। आइए, उनके अनछुए पहलुओं के पन्ने पलटते हुए नजर डालते हैं उनकी जिंदगी के कुछ रौचक तथ्यों पर :दिल्ली की सब्जी मंडी : झेलम जिले के दीना गांव में 18 अगस्त 1936 को जन्मे गुलजार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं। मां उन्हें तब छोड़कर चली गई जब वे दूध पीते बच्चे थे। मां के आंचल की छांव और पिता का दुलार भी नहीं मिला। उनका बचपन दिल्ली की सब्जी मंडी में ऐसे बीता, जैसे वे खुद एक सब्जी बन गए हों।
पेट्रोल पम्प पर शायरी : नौ भाई-बहन में चौथे नंबर वाले गुलजार को पिता और बड़े भाई ने पढ़ाने से मना किया तो उन्होंने पेट्रोल पंप पर काम कर पढ़ाई का खर्चा निकाला। पेट्रोल की हवा में लहराती तेज खुशबू के साथ उन्होंने अपनी शायरी को कागज पर उतारना शुरू किया। उर्दू-पर्सियन, बंगाली के बाद उन्होंने हिन्दी सीखी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर और शरत बाबू की रचनाओं के उर्दू अनुवाद चारों तरफ पसंद किए गए। यही वजह है कि गुलजार की फिल्मों में सीन के संयोजन पर बांग्ला प्रभाव साफ दिखाई देता है।
मोरा गोरा अंग लई ले... : दिल्ली से मुंबई आने के बाद गुलजार को शायरों-साहित्यकारों-नाटककारों का मजमा आसानी से मिल गया। इन सबकी मदद से वे गीतकार शैलेन्द्र और संगीतकार सचिनदेव बर्मन तक पहुंचे। उन दिनों वे फिल्म 'बंदिनी’ के गीतों को सुरबद्ध कर रहे थे। शैलेन्द्र की सिफारिश पर सचिन दा ने गुलजार को एक गीत लिखने को कहा। गुलजार ने पांच दिनों में गीत लिखकर दिया। 'मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे...’ सचिन दा को गीत पसंद आया। उन्होंने अपनी आवाज में गाकर बिमल राय को सुनाया। गीत ओके हो गया। गुलजार के बांग्ला ज्ञान को समझते हुए बिमल राय उन्हें अपने होम प्रोडक्शन में स्थायी रखना चाहते थे, लेकिन गुलजार को गीतकार होकर रह जाना मंजूर नहीं था।
ऋषि दा का आशीर्वाद : बिमल राय की मौत के बाद संगीतकार हेमंत कुमार ने सबसे अच्छा काम यह किया कि उनकी यूनिट के अधिकांश सदस्यों को अपने प्रोडक्शन में नौकरी पर रख लिया। गुलजार ने हेमंत कुमार की फिल्म ‘बीवी और मकान;, ‘राहगीर’ तथा खामोशी के लिए गीत लिखे। ऋषिकेश मुखर्जी ने बिमल राय की फिल्म का सम्पादन और सह-निर्देशन किया था। वे भी स्वतंत्र फिल्म निर्देशक बन गए और आशीर्वाद फिल्म के संवाद के साथ-साथ गीत भी गुलजार को ही लिखना पड़े, क्योंकि शैलेन्द्र के पास समय नहीं था। इस तरह गुलजार को बिमल दा के स्कूल के बाद ऋषि दा के स्कूल में काम करने का मौका मिला। गुलजार ने उनके साथ आनंद, गुड्डी, बावर्ची और नमक हराम जैसी सफल फिल्मों में काम किया। साथ ही निमार्ता एन.सी. सिप्पी से ऐसे सम्बन्ध बने कि आगे चलकर सिप्पी-गुलजार ने अनेक फिल्में बनाईं और दर्शकों का खूब मनोरंजन किया।
मीना का साया, गुलजार की माया : मीना कुमारी और गुलजार के रिश्ते भावनाओं से भरे हुए रहे हैं। मीना ने मौत से पहले अपनी तमाम डायरी और शायरी की कापियां गुलजार को सौंप दी थीं। गुलजार ने उन्हें संपादित कर बाद में प्रकाशित भी कराया था। मीना-गुलजार की भेंट फिल्म ‘बेनजीर’ के सेट पर हुई थी। बिमल राय निर्देशक थे और गुलजार सहायक थे। शॉट रेडी होने पर स्टार को कैमरे तक लाने की जिम्मेदारी उनकी थी। यहीं से दोस्ती में अपनापन पनपता चला गया। बाद में गुलजार जब स्वतंत्र फिल्म निर्देशक बने तो फिल्म मेरे अपने की मुख्य भूमिका गुलजार ने मीना को सौंपी। 1972 में मीना चल बसीं। मेरे अपने कुछ समय बाद प्रदर्शित हुई और गुलजार स्वतंत्र फिल्म निर्देशक बन गए। आज भी गुलजार के आॅफिस में दीवार पर ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी का चित्र बोलता-सा नजर आता है।
सफलता की आवाजें : गुलजार ने मेरे अपने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक अलग-अलग विषयों पर लीक से हटकर वे फिल्में बनाते रहे। कोशिश फिल्म में गूंगे-बहरे माता-पिता की इच्छा है कि उनका बेटा उन जैसा नहीं हो। आंधी फिल्म में इंदिरा गांधी के जीवन की एक झलक है। मौसम, किनारा, खुशबू, अंगूर, नमकीन, इजाजत, लेकिन, लिबास और माचिस जैसी फिल्मों में उन्होंने इंद्रधनुषी रंग बिखेरे हैं। उनकी फिल्मों की विशेषताओं में फिल्म में परफेक्शन, भावुक और संवेदनाओं से भरे पात्र, स्त्री-पुरुष संबंधों की बारीकियां, फिल्मों के गीत कथानक के तानेबाने में बुने होना जैसी विशेषताएं शामिल हैं।
गुलजार के गीत : गुलजार ने कई फिल्मों में गीत लिखे हैं। उनके गीत लिखने का अंदाज आम गीतकारों से जुदा है। संगीतकार आरडी बर्मन और गुलजार की जुगलबंदी ने अनेक हिट गीतों को जन्म दिया जो आज भी चाव से सुने जाते हैं। इस समय गुलजार एक गीतकार के रूप में सक्रिय हैं।
गुलजार फिल्मोग्राफी (बतौर निर्देशक) : मेरे अपने (1971), परिचय (1972), कोशिश (1972), अचानक (1973), खुशबू (1974), आंधी (1975), मौसम (1975), किनारा (1977), किताब (1978), अंगूर (1980), नमकीन (1981), मीरा (1981), इजाजत (1986), लेकिन (1990), लिबास (1993), माचिस (1996), हु तू तू (1999)।
टीवी सीरियल : मिर्जा गालिब (1988), किरदार (1993)
प्रमुख किताबें : चौरस रात (लघु कथाएं, 1962), जानम (कविता संग्रह, 1963), एक बूंद चांद (कविताएं, 1972), रावी पार (कथा संग्रह, 1997), रात, चांद और मैं (2002), रात पश्मीने की, खराशें (2003)।
प्रमुख एलबम : दिल पड़ोसी है (आरडी बर्मन, आशा, 1987), मरासिम (जगजीत सिंह, 1999), विसाल (गुलाम अली, 2001), आबिदा सिंग्स कबीर (2003)।