नगर निगम एक्सईएन और सीईओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज
जयपुर। एसीबी के द्वारा रक्षाबंधन के दिन ठेकेदारों से अवैध वसूली मामले में 15 लाख रुपए और निगम की फाइलों के साथ गिरफ्तार किए गए जयपुर नगर ...
https://khabarrn1.blogspot.com/2014/08/FIR-against-XEN-and-CEO-of-jaipur-nagar-nigam.html
जयपुर। एसीबी के द्वारा रक्षाबंधन के दिन ठेकेदारों से अवैध वसूली मामले में 15 लाख रुपए और निगम की फाइलों के साथ गिरफ्तार किए गए जयपुर नगर निगम में एक्सईएन पुरूषोत्तम जेसवानी तथा निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लालचंद असवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की महानिरीक्षक स्मिता श्रीवास्तव ने बताया कि ब्यूरो के द्वारा अधिशाषी अभियंता पुरूषोत्तम जेसवानी के न्यू सांगानेर रोड़ स्थित एसबीबीजे बैंक लॉकर में से करीब 160 ग्राम सोना व 18 हजार रुपए होना पाया गया। तलाशी के बाद ब्यूरो द्वारा लॉकर सीज कर दिया गया है।
इसके अलावा ब्यूरो द्वारा नगर निगम जयपुर मुख्यालय की लेखा एवं भुगतान शाखा के रिकॉर्ड की छानबीन कर कुछ रिकॉर्ड सीज किए गए है। ब्यूरो द्वारा अधिशाषी अभियंता को न्यायालय में पेश किया गया था, जिस पर न्यायालय ने उसे 14 अगस्त तक पुलिस रिमाण्ड़ में भेजने के आदेश दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि नगर निगम जयपुर के अधिशाषी अभियंता पुरूषोत्तम जेसवानी को ब्यूरो द्वारा रक्षाबंधन वाले दिन 15 लाख रुपए के साथ गिरफ्तार किया गया था। यह राशि जेसवानी ने विभिन्न ठेकेदारों से सिविल कार्यो के कायार्देश जारी करने की एवज में अवैध तरीके से वसूल की थी।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की महानिरीक्षक स्मिता श्रीवास्तव ने बताया कि ब्यूरो के द्वारा अधिशाषी अभियंता पुरूषोत्तम जेसवानी के न्यू सांगानेर रोड़ स्थित एसबीबीजे बैंक लॉकर में से करीब 160 ग्राम सोना व 18 हजार रुपए होना पाया गया। तलाशी के बाद ब्यूरो द्वारा लॉकर सीज कर दिया गया है।
इसके अलावा ब्यूरो द्वारा नगर निगम जयपुर मुख्यालय की लेखा एवं भुगतान शाखा के रिकॉर्ड की छानबीन कर कुछ रिकॉर्ड सीज किए गए है। ब्यूरो द्वारा अधिशाषी अभियंता को न्यायालय में पेश किया गया था, जिस पर न्यायालय ने उसे 14 अगस्त तक पुलिस रिमाण्ड़ में भेजने के आदेश दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि नगर निगम जयपुर के अधिशाषी अभियंता पुरूषोत्तम जेसवानी को ब्यूरो द्वारा रक्षाबंधन वाले दिन 15 लाख रुपए के साथ गिरफ्तार किया गया था। यह राशि जेसवानी ने विभिन्न ठेकेदारों से सिविल कार्यो के कायार्देश जारी करने की एवज में अवैध तरीके से वसूल की थी।