प्यार की हसरत में नाखूनों से खुदाई कर बना डाली झील...
अरावली की हसीन वादियों में दफन एक अनोखी प्रेम गाथा माउंट आबू। कहते है कि प्रेम दिमाग की एक रूमानी उड़ान है और इसी रूमानी उड़ान की गिरफ्त के...
अरावली की हसीन वादियों में दफन एक अनोखी प्रेम गाथा
माउंट आबू। कहते है कि प्रेम दिमाग की एक रूमानी उड़ान है और इसी रूमानी उड़ान की गिरफ्त के चलते प्रेम ग्रंथों में कई प्रेमी जोड़ों के नाम इतिहास में दर्ज हो गए। किसी ने इसे रास्ते का पत्थर बनाया तो किसी ने उल्फत का मंदिर। प्यार मगरूर भी है और सुरूर भी। कहते है मांउट आबू की हसीन वादियों में प्रेमी जोड़े ‘रसिया बालम’ ने अपने प्यार की खातिर नाखूनों से ही झील को खोद डाली। माउंट आबू का सौंदर्य जितना खूबसूरत है उससे कहीं ज्यादा मार्मिक है। इन वादियों में दफन ‘रसिया बालम’ और कुंवारी कन्या की प्रेम गाथा की गवाही देता हुआ प्रतीत होता है। इस प्रेम गाथा को आज भी मारवाड़ के हर इलाके में घर-घर गाया जाता है।
माउंट आबू के विख्यात देलवाड़ा मंदिर के पीछे एक मंदिर में रसिया बालम और कुंवारी कन्या की मूर्ति आज भी मौजूद है। मंदिर के बाहर पत्थरों के ढ़ेर के नीचे दफन है, इस प्रेम कहानी की खलनायिका कुंवारी कन्या की मां मूर्ति, जिसे रसिया बालम ने श्राप देकर पत्थर बना दिया था।
प्रेम गाथा का इतिहास : रसिया बालम माउंट आबू में मजदूरी करने के लिए आया था और उसने वहां पर कुंवारी कन्या को देखा और उसे देखते ही ‘लव एट फर्स्ट साइट’ वाला प्यार हो गया। कुछ ऐसा ही हाल कुंवारी कन्या का भी हुआ। धीरे-धीरे ये प्यार परवान चढ़ने लगा।
बताया जाता है कि एक दिन रसिया बालम ने कुंवारी कन्या के पिता के सामने उसकी बेटी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। कुंवारी कन्या के पिता ने प्रस्ताव तो स्वीकार कर लिया, लेकिन इसके बदले में एक शर्त रसिया बालम के सामने रख दी। कुंवारी कन्या के पिता ने उस शर्त में कहा कि अगर वो भोर (सूर्योदय) होने से पहले एक झील को अपने नाखूनों से खोदकर उसके पास आएगा तो वह अपनी बेटी की शादी रसिया बालम से कर देगा। रसिया बालम ने हंसते-हंसते शर्त को स्वीकार कर दिया और मांउट आबू स्थित मां अबुर्दा देवी को नमन कर जी-जान से झील को अपने नाखूनों से खोदना शुरू कर दिया।
इधर, कुंवारी कन्या की मां को यह विवाह प्रस्ताव किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। कुंवारी कन्या की मां ने इस शर्त को पूरा होने से रोकने के लिए छल-कपट का सहारा लिया। रसिया बालम भोर होने से पहले झील की खुदाई कर जैसे ही कुंवारी कन्या के पिता के पास जाने के लिए निकला, वैसे ही कुंवारी कन्या की मां ने मुर्गे का रूप धारण कर कूकडू-कू की बांग दे दी। रसिया बालम ने इस मुर्गे की बांग को भोर की घोषणा मान ली और निराश होकर वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन मरते-मरते वो कुंवारी कन्या की मां के मायाजाल को समझ गया और उसे श्राप दे दिया। श्राप देते ही कुंवारी कन्या की मां भी उसी जगह पर पत्थर की मूर्ति बन गई।
इस धार्मिक प्रेम कहानी का अंत जितना दर्दनाक है, उससे कहीं ज्यादा तकलीफदेह है इसका ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित होना। अगर इस प्रेम कहानी का दस्तावेजीकरण कर दिया जाए तो इस अमर प्रेम गाथा को इतिहास में उचित स्थान मिल जाएगा और यह अमर प्रेमगाथा पूरे मारवाड़, गोड़वाड़, आदिवासी इलाके में विशेष रूप से राजस्थानी गीतों के माध्यम से लोकगीतों से बाहर निकलकर शायद विश्व की ऐतिहासिक प्रेमगाथाओं में अपना स्थान बना लें।
आज भी मारते है पत्थर : मांउट आबू की हसीन वादियों में पिकनिक मनाने के लिए देश-विदेश के कौने-कौने से सैकड़ों लोग आते हैं। इस दौरान प्रेमी जोड़े व अन्य लोग आज भी विश्व के प्रख्यात देलवाड़ा मंदिर के पीछे स्थित रसिया बालम के मंदिर पर जाकर वहां मौजूद कुंवारी कन्या की मां की मूर्ति पर पत्थर मारते हं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिस कारण यह मूर्ति पत्थरों के अंबार के नीचे आज भी विद्यमान है।
‘नक्की झील’ के नाम से है प्रसिद्ध : रसिया बालम द्वारा खोदी गई झील आज नक्की झील के नाम से प्रसिद्ध है। माउंट आबू में आने वाला हर कोई शख्स इस नक्की झील में बोट की सवारी का आंनद लेना नहीं भूलता। आज नक्की झील मांउट आबू की अमूल्य धरोहर है, लंबी चौड़ी यह झील पानी से हर वक्त भरी हुई रहती है और यहा आने वाला प्रत्येक पर्यटक अपनी यादें संजोकर जाता है।
दर्शन को आते हैं श्रद्धालु : माउंट आबू स्थित कात्यायीनी शक्तिपीठ मां अबुर्दा देवी का मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की रेलमपेल से भरा रहता है। इस शक्तिपीठ पर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शक करने के लिए आते हैं। माउंट आबू आने वाला हर पर्यटक माता के दर्शन करना नहीं भूलता। मां अबुर्दा देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को पहाड़ी के अंदर बने मंदिर में जाना पड़ता है उससे पूर्व उनकों पहाड़ी के नीचे झुकना पड़ता है तभी अंदर जा पाते हैं।