नवरात्री और माता के नौ रूप

नवरात्रि पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। इनमे एक हिन्दू वर्ष के आरम्भ में अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस चैत्र नवरात्रि आते हैं जबकि शीत ऋतु बीत चुकी होती है और ग्रीष्म ऋतु आरम्भ होने वाली होती है। प्रचलित अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार ये समय साधारणतः मार्च-अप्रैल के महीनों के दौरान आते हैं।

इसके अतिरिक्त दूसरे नवरात्रि जिन्हें शारदीय नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है, वर्षा ऋतु बीत जाने के बाद तथा शीत ऋतु के आगमन से पहले अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से मनाए जाते हैं। अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार शारदीय नावरात्रि सामान्यतया सितम्बर-अक्टूबर के दौरान आते हैं और इसे नवरात्री पर्व के रूप में मनाया जाता है।

यह नौ दिन वर्ष के सर्वाधिक शुद्ध एवं पवित्र दिवस माने गए हैं। वर्ष के इन नौ और नौ अर्थात् 18 दिनों का भारतीय धर्म एवं दर्शन में विशेष ऐतिहासिक महत्व है और इन्हीं दिनों में बहुत सी दिव्य घटनाओं के घटने की जानकारी हिन्दू पौराणिक ग्रन्थों में मिलती है।

चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में आदि शक्ति दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है, जिन्होंने सृष्टि के आरम्भ से लेकर अभी तक इस पृथ्वी लोक पर विभिन्न लीलाएँ की थीं। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे क्रमशः इस प्रकार हैं : पहला शैलपुत्री,, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा, कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

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