जयपुर में फिर सजा साहित्य का महाकुंभ, जेएलएफ-2017 का हुआ आगाज

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जयपुर। राजधानी जयपुर में आज से एक बार फिर साहित्य के महाकुंभ जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) का आगाज हो गया है। विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों का वार्षिक आयोजन पांच दिवसीय महोत्सव जेएलएफ का उद्घाटन गुरुवार को डिग्गी पैलेस में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने किया। लिटरेचर फेस्टिवल के 10वें संस्करण का आगाज गुरुवार को शब्दों के जादुगर गुलजार के शायराना अंदाज के साथ हुई। डिग्गी पैलेस में आयोजित हो रहे जेएलएफ में पहले दिन चलने वाले सेशंस में फ्रंट लॉन में आयोजित सेशन की शुरूआत गुलजार के शायराना अंदाज एवं कलामों के साथ हुई। वहीं इस अवसर पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मौजूद रहीं।

इस दौरान गुलजार ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कहा कि शहर को खूबसूरत बनाने के लिए एक रहनुमा की जरूरत थी और बेशक आपने रहनुमाई बहुत अच्छी की, जिसके बाद फ्रंट लॉन तालियों से गूंज उठा। वहीं सीएम राजे ने कहा कि यह लिटरेचर फेस्टिवल सभी लोगों के लिए एक खुला मंच है, जहां हर उम्र के लोगों को काफी कुछ सीखने को मिलता है। मुख्यमंत्री ने स्वागत भाषण में कहा कि लिस्ट्रेचर फेस्टिवल केवल फेस्टिवल नहीं है, बल्कि एक तरह की जंगल की आग है, जो लगातार फैल रही है।

वहीं मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जयपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम शुरू कर दिया है। इसी के साथ भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि करीब चार करोड़ लोग सीधे तौर पर फायदा ले रहे हैं। उनका कैशलैस इलाज बड़ेे अस्पतालों में हो रहा है। इसी के साथ डिजिटलीकरण की दिशा में प्रदेश में बड़े स्तर पर काम हो रहा है। सभी जिला कलक्टर को बच्चों की खुशी के लिए खिलौने, पुस्तक सहित दूसरी योजनाओं पर काम करने को कहा गया है।

इस मौके पर गीतकार-शायर गुलजार ने कहा कि मुझे सियासत नहीं आती, आम आदमी की तरह सियासत से प्रभावित जरूर हो जाता हूं। मैं उस ऊंची कुर्सी पर बैठने से घबराता हूं, जिस पर बैठकर पांव जमीन पर नहीं टिकते। उस ऊंची कुर्सी पर बैठकर घमंड और गुरूर आ गया और ऊपर उठ गए तो पांव जरूर मैले नहीं होंगे, पर कलम स्याही का स्वाद चखना बंद कर देगी। जमाने को बहलाना आसान नहीं है। आप किसी छोटे हलके को तो बहला लो, लेकिन पूरे समाज को नहीं बहला सकते।

गुलजार ने कहा, जब किसी बर्तन के भीतर उबाल आ रहा हो तो बर्तन का ढक्कन खडख़ड़ाने लगता है। उसकी यह भाप ही मेरी लिखाई है। मेरे अंदर का उबाल ही मेरी लिखाई है। उन्होंने कहा, हिंदुस्तान में त्योहारों के अलग ही मजे हैं। पतंग है तो उसका त्योहार है, रंग हैं तो रंगों का त्योहार है। अब किताबों का भी त्योहार है।



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