...तो इसलिए दाह संस्कार की बजाय दफनाया गया था जयललिता को
https://khabarrn1.blogspot.com/2016/12/so-thats-the-reason-of-buried-jaylalithaa.html
नई दिल्ली। तमितनाडु की मुख्यमंत्री का कल निधन हो जाने के बाद आज राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि कर दी गई है। 'अम्मा' के नाम से देशभर में विख्यात जयललिता को उनकी अंत्येष्टि में दाह संस्कार की बजाय दफनाया गया है, जिसे लेकर देशभर में कई लोगों के दिमाग में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर उनका दाह संस्कार किए जाने के बजाय उन्हें दफनाया क्यों गया।
इस सवाल के जवाब में बताया जा रहा है कि जयललिता के अंतिम संस्कार को लेकर एआईएडीएमके नेताओं में भ्रम की स्थिति थी, जिसके बाद पार्टी के उच्च पदाधिकारियों ने तय किया कि जयललिता के शव को पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामाचंद्रन की ही तरह दफनाया जाएगा। उनकी समाधि ठीक उनके बगल में होगी। वहीं जयललिता के करीबी लोगों का मानना है कि 'अम्मा' किसी जाति और धार्मिक पहचान से परे थीं, इसलिए पेरियार, अन्ना दुरई और एमजीआर जैसे ज्यादातर बड़े द्रविड़ नेताओं की तरह उनके पार्थिव शरीर को भी दफनाए जाने का फैसला किया गया।
जयललिता एक आयंगर ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं, जहां दाह संस्कार की ही परंपरा है। इसके बावजूद उनकी पार्थिव देह का दाह संस्कार नहीं किया जाकर दफनाया गया। अंतिम संस्कार से जुड़े एक वरिष्ठ सरकारी सचिव के मुताबिक, वह हमारे लिए आयंगर नहीं थीं। वह किसी जाति और धार्मिक पहचान से परे थीं। यहां तक कि पेरियार, अन्ना दुरई और एमजीआर जैसे ज्यादातर द्रविड़ नेता दफनाए गए थे और हमारे पास उनके शरीर का दाह-संस्कार करने की कोई मिसाल नहीं है। तो, हम उन्हें चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाते हैं।
पूर्व नेताओं को दफनाए जाने से समर्थकों को एक स्मारक के तौर पर उन्हें याद रखने में सहायता होती है। द्रविड़ आंदोलन के नेता नास्तिक होते हैं, जो कि सैद्धांतिक रूप से ईश्वर और समान प्रतीकों को नहीं मानते। लेकिन यह दिलचस्प है कि ईश्वर के अस्तित्व से पैदा हुई कमी को मूर्तियों और स्मारकों से भर दिया जाता है। फैंस और समर्थकों को विश्वास है कि वे अभी भी मरीना बीच पर एमजीआर की घड़ी के टिक-टिक करने की आवाज सुन सकते हैं।
वहीं दूसरी ओर, कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि दफनाए जाने के और भी कारण हो सकते हैं। दाह संस्कार के लिए एक सगे रिश्तेदार का होना जरूरी है। जयललिता की सगी सिर्फ उनकी भतीजी दीपा जयाकुमार हैं जो उनके स्वर्गवासी भाई की बेटी हैं, पर शशिकला के रहते हुए अंतिम संस्कार में दीपा का शामिल होना बेहद मुश्किल था क्योंकि इससे शशिकला को चुनौती मिलती।
इस सवाल के जवाब में बताया जा रहा है कि जयललिता के अंतिम संस्कार को लेकर एआईएडीएमके नेताओं में भ्रम की स्थिति थी, जिसके बाद पार्टी के उच्च पदाधिकारियों ने तय किया कि जयललिता के शव को पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामाचंद्रन की ही तरह दफनाया जाएगा। उनकी समाधि ठीक उनके बगल में होगी। वहीं जयललिता के करीबी लोगों का मानना है कि 'अम्मा' किसी जाति और धार्मिक पहचान से परे थीं, इसलिए पेरियार, अन्ना दुरई और एमजीआर जैसे ज्यादातर बड़े द्रविड़ नेताओं की तरह उनके पार्थिव शरीर को भी दफनाए जाने का फैसला किया गया।
जयललिता एक आयंगर ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं, जहां दाह संस्कार की ही परंपरा है। इसके बावजूद उनकी पार्थिव देह का दाह संस्कार नहीं किया जाकर दफनाया गया। अंतिम संस्कार से जुड़े एक वरिष्ठ सरकारी सचिव के मुताबिक, वह हमारे लिए आयंगर नहीं थीं। वह किसी जाति और धार्मिक पहचान से परे थीं। यहां तक कि पेरियार, अन्ना दुरई और एमजीआर जैसे ज्यादातर द्रविड़ नेता दफनाए गए थे और हमारे पास उनके शरीर का दाह-संस्कार करने की कोई मिसाल नहीं है। तो, हम उन्हें चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाते हैं।
पूर्व नेताओं को दफनाए जाने से समर्थकों को एक स्मारक के तौर पर उन्हें याद रखने में सहायता होती है। द्रविड़ आंदोलन के नेता नास्तिक होते हैं, जो कि सैद्धांतिक रूप से ईश्वर और समान प्रतीकों को नहीं मानते। लेकिन यह दिलचस्प है कि ईश्वर के अस्तित्व से पैदा हुई कमी को मूर्तियों और स्मारकों से भर दिया जाता है। फैंस और समर्थकों को विश्वास है कि वे अभी भी मरीना बीच पर एमजीआर की घड़ी के टिक-टिक करने की आवाज सुन सकते हैं।
वहीं दूसरी ओर, कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि दफनाए जाने के और भी कारण हो सकते हैं। दाह संस्कार के लिए एक सगे रिश्तेदार का होना जरूरी है। जयललिता की सगी सिर्फ उनकी भतीजी दीपा जयाकुमार हैं जो उनके स्वर्गवासी भाई की बेटी हैं, पर शशिकला के रहते हुए अंतिम संस्कार में दीपा का शामिल होना बेहद मुश्किल था क्योंकि इससे शशिकला को चुनौती मिलती।