जमियत उलेमाऐ हिन्द के बयान पर अजमेर दरगाह दीवान ने स्पष्ट किया अपना रुख

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अजमेर।सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने स्पष्ट किया कि जमियत उलेमाऐ हिन्द से उनका जुड़ाव समाज के शैक्षणिक उत्थान और आतंकवाद का विरोध करने के लिये देशभर के सज्जादान मुस्लिम धर्म गुरूओं को एक जाजम लाने का जमियत के प्रयास के लिये था, न कि किसी राजनीतिक दल के विरोध के लिये। उन्होंने कहा कि जमियत उलेमाऐ हिन्द के किसी राजनीतिक बयान पर उनका कोई सर्मथन नहीं था और न है।

दरगाह दीवान ने बुधवार को एक संवावादाता सम्मेलन में यह साफ किया कि गरीब नवाज युनिवर्सिटी की स्थापना के संदर्भ में जमियत उलेमाऐ हिन्द के हवाले से जो खबरे छपी है, उसके लिये दरगाह दीवान या उनके किसी प्रतिनिधी की जमियत के नेताओं से कोई आधिकारिक बातचीत नहीं हुई है और न ही किसी प्रकार की भूमि देने का काई करार हुआ है।

उन्होने कहा कि उनकी खुद यह इच्छा है कि गरीब नवाज के नाम से एक विश्वविद्यालय की स्थापना हो, जिससे सूफी शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाए, लेकिन ऐसा कोई भी विश्वविद्यालय उनके अपने खर्च एवं स्वसम्पत्ति पर उनके द्वारा संचालित ख्वाजा मोईनुद्दीन एज्युकेशनल ट्रस्ट के अधीन स्थापित किया जाएगा। उन्होने कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना मेरे जीवनकाल में पूरी हो जाती है तो सही वर्ना मैं अपने (उत्तराधिकारी) को सह वसियत करूंगा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना करे, क्योंकि यह न सिर्फ उनकी बल्की उनके पिता दीवान इल्मुद्दीन साहब की खवाहिश थी। 


दरगाह दीवान ने जमियत के राजस्थान महासचिव अब्दुल वहिद खत्री के मंगलवार को छपे बयान पर कहा कि ऐसे राजनीतिक बयान से उनका कोई वास्ता नहीं है। वह खुद किसी राजनीतिक दल के विरोधी नहीं हैं, क्योंकि वह धर्मगुरू है और राजनीतिक रूप से कभी विचार व्यक्त नहीं करते हैं। इसलिये यह जमियत के नेताओं के अपने नीजि विचार है।


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