अरावली की गोद में रखा एक रत्न है अजमेर

अरावली पर्वतमाला के मध्य में स्थित एक शहर, जो दुनियाभर में ख्वाजा नगरी के नाम से विख्यात है। यह शहर है अजमेर, जो राजस्थान का पांचवा बड़ा शहर है और प्रदेश की राजधानी जयपुर से 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहले इसे अजयमेरु के नाम से जाना जाता था। देश के सबसे पुराने पहाड़ी किलों में से एक तारागढ़ किला अजमेर शहर की रक्षा करता है। इस शहर की स्थापना अजयराज सिंह चौहान ने ईसा पश्चात 7वीं शताब्दी में की थी और चौहान राजवंश ने कई दशकों तक यहां राज किया, जिनमें से पृथ्वीराज चौहान सबसे अधिक प्रसिद्द शासक था। 

अजमेर ना सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहाँ स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह दुनियाभर के लिए आस्था का केन्द्र बनी हुई है, जहां दुनियाभर के अकीदतमंद आते हैं और ख्वाजा की बारगाह में अपना सर झुकाकर दुआ मांगते हैं। इस दर पर आने वालों के लिए मजहब नाम की कोई चीज मायने नहीं रखती, यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें कई बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियां और सुनहरे परदे पर चमकने वाले फिल्मी सितारे भी शामिल हैं। इस लिहाज से ख्वाजा नगरी के नाम से दुनिया के नक्शे पर मौजूद इस शहर को मजहबी एकता की मिसाल के रूप में भी जाना जाता है। 

इतिहास में अजमेर : 

ईसा पश्चात 1193 में मोहम्मद गोरी ने अजमेर पर विजय प्राप्त कर ली। हालांकि विजेता को भारी शुल्क देने के बाद चौहान शासकों को शासन करने की अनुमति प्रदान की गई। बाद में 1365 में अजमेर पर मेवाड़ के शासकों ने कब्जा कर लिया, जिस पर 1532 में मारवाड़ ने कब्जा किया था। सन 1553 में हिंदू शासक हेमचन्द्र विक्रमादित्य, जिसे हेमू के नाम से जाना जाता था, ने अजमेर पर विजय प्राप्त की, वह 1556 की पानीपत की दूसरी लड़ाई में मारा गया। सन 1559 में अजमेर मुगल बादशाह अकबर के नियंत्रण में आ गया और बाद में 18 वीं शताब्दी में मराठाओं के पास चला गया। 1818 में ब्रिटिशों (अंग्रेजों) ने मराठाओं को 50000 रूपये में अजमेर को उन्हें सौंप देने के लिए कहा और इसलिए अजमेर मेवाड़ प्रांत का एक हिस्सा बन गया। सन 1950 में यह अजमेर राज्य बना, जो 1 नवंबर 1956 को राजस्थान राज्य का हिस्सा बना। अजमेर राजधानी शहर जयपुर से 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तारागढ़ किला अजमेर शहर का एक प्रमुख किला है।

शानदार दृश्यों का चित्रीकरण : 

अजमेर शहर को दुनियाभर में मुख्य रूप से दरगाह शरीफ के लिए जाना जाता है, जो महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की कब्र है। तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ में सभी धर्र्मों और संप्रदायों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। शहर के उत्तर में एक सुंदर कृत्रिम झील है, जिसे आनासागर झील कहा जाता है। पैवेलियन या बारदारी इस झील को अधिक सुंदर बनाते हैं, जिसका निर्माण बादशाह शाहजहां ने करवाया था। स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए आनासागर झील पिकनिक के लिए उपयुक्त स्थान है। अजमेर संग्रहालय जो अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान उसका निवास हुआ करता था, आज वहां 6 वीं और 7 वीं शताब्दी की कई हिंदू मूर्तियां हैं। यहां पर्यटकों के लिए मुगल और राजपूत राजवंशों की कई मूर्तियों और हथियारों का प्रदर्शन किया गया है।

ढाई दिन का झोपड़ा :

एक मस्जिद है, जो कहा जाता है कि केवल ढाई दिन के समय में बनाई गई। यह मस्जिद भारतीय मुस्लिम वास्तुशैली का एक नायाब उदाहरण है। अजमेर के अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण नासिया (लाल) मंदिर, निम्बार्क पीठ और नारेली जैन मंदिर हैं। मेयो कॉलेज, जिसकी स्थापना पहले के अमीर भारतीय लोगों के लिए विशेष रूप से राजपूत लोगों के लिए की गई थी, आज देश के श्रेष्ठ स्कूलों में से एक है। अजमेर पवित्र शहर पुष्कर के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जो यहां से केवल 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पुष्कर ब्रह्मा मंदिर और पुष्कर झील के लिए प्रसिद्द है और यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते है।

दर्शनीय स्थल

पुष्कर : अजमेर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हजारों हिन्दु लोग इस मेले में आते हैं व अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं। इस समय यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है। इसे देखने के लिए विदेशी सैलानी बडी संख्या में पहुंचते हैं, यहां दुनिया के एक मात्र जगतपिता ब्रह्मामंदिर ओर प्रजापति मन्दिर समेत कई छोटे बडे मंदिर हैं।

 ख्वाजा गरीब नवाज : 

ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से विश्वविख्यात अजमेर दरगाह का भारत ही नहीं अपितु दुनियाभर में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि यहां हर धर्र्म के लोगों का विश्वास है। यहां आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने जरूर आते हैं। यह स्टेशन से 2 किमी दूर घनी आबादी के बीच स्थित है। अंदर सफेद संगमरमरी शाहजहांनी मस्जिद, बारीक कारीगरी युक्त बेगमी दालान, जन्नती दरवाजा, बुलंद दरवाजा ओर 2 अकबरकालीन देग हैं। इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बांटा जाता है।

आनासागर झील : 

शहर के बीच बनी यह सुंदर कृत्रिम झील यहां का सबसे रमणीक स्थल है। इस झील का निर्माण राजा अरणोराज ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। राजा अरणोराज सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। बाद में मुग़ल शासक ने इसके किनारे एक शाही बाग बनवाया, जिसे दौलत बाग व सुभाष उद्यान के नम से जाना जाता है। साथ ही यहां शाहजहां ने झील की पाल पर संगमरमर की सुंदर बारहदरी का निर्माण करवाकर इस झील की सुन्दरता में चार चांद लगा दिए। यहां मनोरंजन के लिए बच्चों के लिए झूले, मिनी ट्रेन और बोटिंग अदि की सुविधा है।

तारागढ़ किला : 

इस किले का निर्माण 11वीं सदी में सम्राट अजयपाल चौहान ने मुगलों के आक्रमणों से रक्षा करने के उद्देश्य से करवाया था। यह किला दरगाह के पीछे की पहाड़ी पर स्थित है। मुगलकाल में यह किला सामरिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण था मगर अब यह सिर्फ नाम का किला ही रह गया है। यहां सिर्फ जर्जर बुर्ज, दरवाजे और खंडहर ही शेष बचे हैं। किले में एक प्रसिद्ध दरगाह और 7 पानी के झालरे भी बने हुए हैं। यहां एक मीठे नीम का पेड़ भी है। कहा जाता है, जिन लोगों को संतान नही होती यदि वो इसका फल खा लें तो उनकी यह तमन्ना पूरी हो जाती है।
 

ढाई दिन का झोपडा : यह दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एंव हिन्दु मुस्लिम कारीगरी के 70 खंबे बने हुए हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगरी की गई है।
 

सोनी जी की नसियां : करोली के लाल पत्थरों से बना यह खूबसूरत दिगंबर मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ का मंदिर है। लाल पत्थरों से बना होने के कारण इसे लाल मंदिर भी कहा जाता है। इसमें एक स्वर्ण नगरी भी है, जिसमें जैन धर्म से सम्बंधित पोराणिक द्रश्य, अयोध्या नगरी, प्रयागराज के द्रश्य अंकित हैं। यह स्वर्ण नगरी अपनी बारीक कारीगिरी और पिच्चीकारी के लिए प्रसिद्द है।
 

अकबर का किला (राजकीय संग्रहालय) : शहर के नया बाजार में स्थित इस स्थान पर प्राचीन मूर्तियां, सिक्के, पेंटिंग्स, कवच आदि रखे हुए हैं। अंग्रेजों ने यहीं से जनवरी 1616 में मुगल बादशाह जहांगीर से भारत में व्यापार करने की इजाजत मांगी थी। 

मेयो कोलेज : इस कॉलेज की स्थापना रियासतों के राजकुमारों को अंग्रेजी शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए की गई थी। आज भी यहां कई बड़े घरानों  के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसकी भव्य इमारत सफेद संगमरमर से निर्मित है ओर कारीगरी का भी शानदार नमूना है।


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