साथ-साथ चला एक पिता और बेटी का तालीमी सफर

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जयपुर। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और बेटी को सुनहरा भविष्य देने का संदेश आज परिवेश में गूंज रहा है। लेकिन एक पिता ऐसे भी हैं, जो बेटी के लिए सिर्फ आदर्श पिता ही नहीं गुरु, मार्गदर्शक और मित्र होने के साथ-साथ सहपाठी के रूप में भी अपनी बेमिसाल पहचान बना चुके हैं। मरुधरा की सरजमीं को गौरव देने वाले यह शख्स हैं, जैसलमेर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर पारेवर गांव के रहने वाले चन्दनसिंह भाटी।

पन्द्रह जुलाई 1968 के दिन माता कवरो कंवर की कोख से जन्मे चन्दनसिंह पारेवर और जैसलमेर के सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते हुए वर्ष 1992 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान से 10+2 परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद घरेलू परिस्थितियों के कारण पढ़ाई छोड़ कर सरकारी सेवा में आ गए व गृहस्थी बसा ली। 9 अक्टूबर, 1993 के दिन उनके घर एक बिटिया का जन्म हुआ, जिसे पुष्पा कंवर नाम मिला।

चन्दनसिंह भाटी व पूरे परिवार ने पुष्पा को लक्ष्मी का रूप मानकर पल्लवित किया और पढ़ाया। साल 2013 में पुष्पा कंवर ने 75 प्रतिशत अंकों के साथ सीनियर सैकण्डरी परीक्षा उत्तीर्ण कर कॉलेज पढ़ने की इच्छा जाहिर की। बिटिया के मन मेंं उच्च शिक्षा पाने का ज़ज़्बा देख कर पिता चन्दनसिंह ने भी अपनी आगे की पढ़ाई शुरू करने की ठान ली। अब बेटी और पिता दोनों अपनी पारिवारिक भूमिकाओं के साथ शिक्षार्थी के रूप में सामने आए। दोनों सहपाठी के रूप में साथ में पढ़ने लगे।

आपस में सवाल-जवाब की संवाद शैली अपनाकर एक-दूसरे को विषयों का ज्ञान समझाते, चर्चा करते और जो समझ में नहीं आता उसके बारे में किसी गुरुजन से समाधान पाकर परस्पर ज्ञानार्जन करते रहे। इससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी पैदा हुई और पढ़ाई के अनुकूल माहौल भी बना। कुल 22 साल पहले छोड़ी गई पढ़ाई को 45 साल की उम्र में सिर्फ और सिर्फ अपनी बिटिया के लिए फिर से शुरू करना अपने आप में आश्चर्य से कम नहीं था।

बाप-बेटी की यह संयुक्त शैक्षिक यात्रा कभी नहीं रुकी और लगातार तीन साल तक पढ़ाई करते हुए दोनों ही ने गत सत्र में बीए की डिग्री पा ली। अपने संकल्प को साकार करने वाले चन्दनसिंह आज बेहद खुश हैं। वे कहते हैं कि पढ़ाई का माहौल बनाकर घर के सभी लोगों को पढ़ना चाहिए। इसका भी अपना अलग आनंद है और साझे में पढ़ाई से सफलता और अधिक आसान हो जाती है। बेटियों की शिक्षा के प्रति लापरवाह रहने वाले माता-पिताओं को वे यह संदेश देना चाहते हैं कि बेटियों को भी पढ़ाएं और खुद भी पढ़ें, कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश करें। वे कहते हैं कि बेटी पढ़ लेगी तो कई परिवारों का कल्याण अपने आप होने लगेगा।

चन्दनसिंह ने अपना जीवन बेटी पढ़ाओ अभियान के लिए समर्पित कर दिया है। इसके लिए जहां मौका मिलता है, वे बेटियों को पढ़ाने के लिए अभिभावकों को प्रेरित करते रहे हैं। उनका मानना है कि केन्द्र और राजस्थान सरकार की खूब योजनाएं हैं, जिनका लाभ लेकर बालिका शिक्षा और उत्थान पर ध्यान दें। लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि माता-पिता खुद पढ़े-लिखें और घर-परिवार में पढ़ाई का अनुकूल वातावरण मिले।

पिता और बेटी का साथ-साथ चला यह तालीमी सफर मरु क्षेत्र भर में चर्चित रहा और उन्हें खूब सराहना मिली, जिससे उन्हें अपने बेटी पढ़ाओ मिशन को खासा सम्बल प्राप्त हुआ। मरुभूमि में तालीम का तराना सुनाने वाले चन्दनसिंह भाटी का गजब का ज़ज़्बा, त्याग और परिश्रम 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की भगीरथी का प्रवाह तीव्र करने मे अनुकरणीय पहल साबित हो रहा है।



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