हद हो गई यार, सबसे पहले खबर चलाने के चक्कर में कुछ भी...
https://khabarrn1.blogspot.com/2016/04/TRP-race-of-news-channel-and-paper.html
जयपुर (पवन टेलर)। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर चीज 'फास्ट' होती जा रही है और साथ ही साथ इस 'फास्टीकरण' की दौड़ में सच्चाई भी कौसों दूर होती जा रही है। इसी तेज रफ्तार जिंदगी के बीच देश-प्रदेश की घटनाओं-दुर्घटनााओं को लोगों तक पहुंचाने वाला मीडिया भी कहीं पीछे नहीं रह गया है। मीडिया में जहां खबरों को लोगों तक सबसे पहले पहुंचाने की दौड़ इन दिनों दिखाई दे रही है, वहां सच्चाई, हकीकत, वास्तविकता और विश्वसनीयता के लिए कोई जगह नहीं रह गई है।
टीआरपी की दौड़ में आज कुछेक चैनल को छोड़कर लगभग सब, सबसे पहले खबर चलाने के चक्कर में और आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर कूछ भी चलाने लगे हैं। नतीजा ये है कि पाठक और दर्शक ये समझ ही नहीं पाता कि आखिर सच्चाई है क्या। और तो और, जिसके साथ किसी खबर में कोई वाक्या होना बताया जाता है, उस शख्स को भी उसके साथ हुए वाक्या के बारे में जानकारी तभी मिलती है, जब वह 'खुद से बेखबर' की तरह किसी अखबार या चैनल में वो खबर देखता है।
ऐसा ही एक वाक्या राजधानी जयपुर में आज पेश आया, जिसमें मीडिया ने शहर से 'एक' या फिर 'दो' युवकों के अपहरण की खबर चलाई। असल में किसी ने एक युवक का अपहरण होना बताया तो किसी ने दो युवकों का। दरअसल आज पिंकसिटी के जयपुर अस्पताल से दो लोगों का अपहरण होने की खबर चलाई गई थी, जिसमें आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर खबर चलाया जाना साफ दिखाई देता है। वहीं कुछ ने युवक के अपहरण के प्रयास की झूठी सूचना होना बताया, तो कुछ ने कार का नम्बर तक भी गलत चलाया।
असल में इस वाक्यें में दो नहीं सिर्फ एक युवक का अपहरण किए जाने की शंका के आधार पर पूलिस को सूचना दी गई थी। हालांकि इसमें सब कुछ मौजूदा परिस्थिति के कारण हुआ, इस कारण से पुलिस को दी गई सूचना में भी काफी हद तक सच्चाई थी। खबरों में जिस युवक का अपहरण किए जाने की बात की बात की जा रही है, उसके चाचाजी पिछले 4 दिनों से लापता थे, जिन्हें तलाशने के लिए वह युवक प्रयासरत था। इसी बीच चाचाजी के कुछ दोस्त भी उन्हें ढूंढने के लिए गांव से जयपुर आ गए थे और उन्होंने इस युवक को फोन कर उनसे मिलने के लिए कहा। इसके बाद जब उन्होंने इस युवक से मुलाकात की, तब उसके साथ एक और स्थानीय पत्रकार भी मौजूद था। युवक ने अपने पत्रकार मित्र से कुछ संदेह होने की बात कही, जिसके बाद वह अपने चाचाजी के दोस्तों से बात करने लग गया। उधर उसका पत्रकार साथी किसी काम से दूसरी जगह चला गया।
इसके कुछ देर बाद जब उस युवक के पत्रकार साथी ने उसे फोन करने का प्रयास किया तो उसका मोबाइल बंद आ रहा था, जिसके कारण पत्रकार को कुछ शंका हुई और उसने कंट्रोल रूम में फोन करके सारी जानकारी दे दी। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने जब उस युवक के नम्बर पर मिलाया और उससे बात की, तो वह युवक वहीं (जयपुर हॉस्पिटल) के वहीं मौजूद था, जिससे पुलिस ने पूरी जानकारी जुटाई।
युवक ने पुलिस को पूरा मामला बताया और कहा कि उसे उसके चाचाजी के दोस्तों पर पहले कुछ संदेह हुआ था, लेकिन उसने जब उनसे बात की तो वैसा कुछ भी नहीं था। असल में चाचाजी के दोस्त भी चाचाजी को ढूंढने में कुछ मदद करने के लिए आए थे।
बहरहाल, इस मामले में एक बात तो साफ हो गई कि सबसे पहले खबर चलाने के चक्कर में आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर चलाई गई खबरों पर विश्वास करना अब समझ से परे होने लगा है। ख़ास बात ये है कि इस खबर को भी उसी शख्स ने आप तक पहुंचाया है, जिसका मीडिया ने अपनी खबरों में कथित तौर पर अपहरण तक करवा डाला।
टीआरपी की दौड़ में आज कुछेक चैनल को छोड़कर लगभग सब, सबसे पहले खबर चलाने के चक्कर में और आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर कूछ भी चलाने लगे हैं। नतीजा ये है कि पाठक और दर्शक ये समझ ही नहीं पाता कि आखिर सच्चाई है क्या। और तो और, जिसके साथ किसी खबर में कोई वाक्या होना बताया जाता है, उस शख्स को भी उसके साथ हुए वाक्या के बारे में जानकारी तभी मिलती है, जब वह 'खुद से बेखबर' की तरह किसी अखबार या चैनल में वो खबर देखता है।
ऐसा ही एक वाक्या राजधानी जयपुर में आज पेश आया, जिसमें मीडिया ने शहर से 'एक' या फिर 'दो' युवकों के अपहरण की खबर चलाई। असल में किसी ने एक युवक का अपहरण होना बताया तो किसी ने दो युवकों का। दरअसल आज पिंकसिटी के जयपुर अस्पताल से दो लोगों का अपहरण होने की खबर चलाई गई थी, जिसमें आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर खबर चलाया जाना साफ दिखाई देता है। वहीं कुछ ने युवक के अपहरण के प्रयास की झूठी सूचना होना बताया, तो कुछ ने कार का नम्बर तक भी गलत चलाया।
असल में इस वाक्यें में दो नहीं सिर्फ एक युवक का अपहरण किए जाने की शंका के आधार पर पूलिस को सूचना दी गई थी। हालांकि इसमें सब कुछ मौजूदा परिस्थिति के कारण हुआ, इस कारण से पुलिस को दी गई सूचना में भी काफी हद तक सच्चाई थी। खबरों में जिस युवक का अपहरण किए जाने की बात की बात की जा रही है, उसके चाचाजी पिछले 4 दिनों से लापता थे, जिन्हें तलाशने के लिए वह युवक प्रयासरत था। इसी बीच चाचाजी के कुछ दोस्त भी उन्हें ढूंढने के लिए गांव से जयपुर आ गए थे और उन्होंने इस युवक को फोन कर उनसे मिलने के लिए कहा। इसके बाद जब उन्होंने इस युवक से मुलाकात की, तब उसके साथ एक और स्थानीय पत्रकार भी मौजूद था। युवक ने अपने पत्रकार मित्र से कुछ संदेह होने की बात कही, जिसके बाद वह अपने चाचाजी के दोस्तों से बात करने लग गया। उधर उसका पत्रकार साथी किसी काम से दूसरी जगह चला गया।
इसके कुछ देर बाद जब उस युवक के पत्रकार साथी ने उसे फोन करने का प्रयास किया तो उसका मोबाइल बंद आ रहा था, जिसके कारण पत्रकार को कुछ शंका हुई और उसने कंट्रोल रूम में फोन करके सारी जानकारी दे दी। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने जब उस युवक के नम्बर पर मिलाया और उससे बात की, तो वह युवक वहीं (जयपुर हॉस्पिटल) के वहीं मौजूद था, जिससे पुलिस ने पूरी जानकारी जुटाई।
युवक ने पुलिस को पूरा मामला बताया और कहा कि उसे उसके चाचाजी के दोस्तों पर पहले कुछ संदेह हुआ था, लेकिन उसने जब उनसे बात की तो वैसा कुछ भी नहीं था। असल में चाचाजी के दोस्त भी चाचाजी को ढूंढने में कुछ मदद करने के लिए आए थे।
बहरहाल, इस मामले में एक बात तो साफ हो गई कि सबसे पहले खबर चलाने के चक्कर में आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर चलाई गई खबरों पर विश्वास करना अब समझ से परे होने लगा है। ख़ास बात ये है कि इस खबर को भी उसी शख्स ने आप तक पहुंचाया है, जिसका मीडिया ने अपनी खबरों में कथित तौर पर अपहरण तक करवा डाला।