हाईकोर्ट का फैसला निराशाजनक, सुप्रीम कोर्ट में करेंगे अपील
https://khabarrn1.blogspot.com/2015/08/decision-of-rajasthan-high-court-on-jat-reservation.html
जयपुर। मूवमेंट फॉर सोशल जस्टिस ने जाट आरक्षण संबंधी राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए ओबीसी आरक्षण में शामिल जातियों के रिव्यू के आदेश का स्वागत करते हुए इसे एतिहासिक फैसला बताया है।
मूवमेंट की कोर कमेटी सदस्य सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने अपने बयान में कहा कि हालांकि कोर्ट का फैसला हमारी आशाओं के अनुरुप नहीं है, फिर भी क्योंकि कि हमें न्याय-पालिका पर भरोसा है अैार इस फैसले का अध्ययन करने के बाद हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेंगे।
शेखावत ने बताया है कि हाईकार्ट के द्वारा ओबीसी आरक्षण में शामिल जातियों के रिव्यू करने का फैसला एतिहासिक है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कई बार ओबीसी में शामिल जातियों का प्रत्येक दस वर्ष में रिव्यू करने के लिए कह चुका है। बावजूद इसके सरकार ने कभी रिव्यू कराने का काम नही किया। उम्मीद है कि हाइकोर्ट के इस फैसले से ओबीसी में शामिल जातियों के सरकारी सेवाओं में और राजनीतिक पदों पर प्रतिनिधित्व का वास्तविक आंकड़ा सामने आ पायेगा।
मूवमेंट फॉर सोशल जस्टिस के प्रवक्ता यशर्वद्वन सिंह ने कहा है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयेाग से इंद्रा साहनी फैसले के मापदंडों के अनुरुप रिव्यू कराने का प्रयास करेंगे। उन्होने कहा कि हालांकि यह निराशाजनक है कि सरकार के द्वारा नवगठित राज्य पिछड़ा वर्ग आयेाग में एक भी सदस्य मूल ओबीसी वर्ग का नहीं है और कमीशन के सदस्य सचिव पद पर नियुक्त व्यक्ति पर अपने न्यायिक सेवा काल के दौरान जातिगत पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे व्यक्ति के भरोसे न्याय की उमीद भी मुश्किल है।
उन्होने कहा कि इस निर्णय का पूरी तरह से अध्ययन करने के पश्चात मूवमेंट केस्टेट कोर कमेटी की बैठक बुलाकर आगामी रणनीति तय की जायेगी।
मूवमेंट की कोर कमेटी सदस्य सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने अपने बयान में कहा कि हालांकि कोर्ट का फैसला हमारी आशाओं के अनुरुप नहीं है, फिर भी क्योंकि कि हमें न्याय-पालिका पर भरोसा है अैार इस फैसले का अध्ययन करने के बाद हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेंगे।
शेखावत ने बताया है कि हाईकार्ट के द्वारा ओबीसी आरक्षण में शामिल जातियों के रिव्यू करने का फैसला एतिहासिक है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कई बार ओबीसी में शामिल जातियों का प्रत्येक दस वर्ष में रिव्यू करने के लिए कह चुका है। बावजूद इसके सरकार ने कभी रिव्यू कराने का काम नही किया। उम्मीद है कि हाइकोर्ट के इस फैसले से ओबीसी में शामिल जातियों के सरकारी सेवाओं में और राजनीतिक पदों पर प्रतिनिधित्व का वास्तविक आंकड़ा सामने आ पायेगा।
मूवमेंट फॉर सोशल जस्टिस के प्रवक्ता यशर्वद्वन सिंह ने कहा है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयेाग से इंद्रा साहनी फैसले के मापदंडों के अनुरुप रिव्यू कराने का प्रयास करेंगे। उन्होने कहा कि हालांकि यह निराशाजनक है कि सरकार के द्वारा नवगठित राज्य पिछड़ा वर्ग आयेाग में एक भी सदस्य मूल ओबीसी वर्ग का नहीं है और कमीशन के सदस्य सचिव पद पर नियुक्त व्यक्ति पर अपने न्यायिक सेवा काल के दौरान जातिगत पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे व्यक्ति के भरोसे न्याय की उमीद भी मुश्किल है।
उन्होने कहा कि इस निर्णय का पूरी तरह से अध्ययन करने के पश्चात मूवमेंट केस्टेट कोर कमेटी की बैठक बुलाकर आगामी रणनीति तय की जायेगी।