शिक्षक केवल वेतनभोगी बनने के बजाय पवित्र उद्देश्य के लिए कार्य करें

Vasudev Devnani, वासुदेव देवनानी, शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, विद्यालयों में नामांकन वृद्धि में शिक्षकों की भूमिका
जयपुर। जयपुर के मुरलीपुरा में स्थित राजकीय विद्यालय में गुरूवार को आयोजित ‘विद्यालयों में नामांकन वृद्धि में शिक्षकों की भूमिका’ विषय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने शिक्षक संघों का आह्वान किया है कि वे अपनी पूरी ताकत आंदलोनों की बजाय राजकीय विद्यालयों में नामांकन वृद्धि और गुणवत्ता सुधार में लगाएं। उन्होंने कहा कि हम सबकी प्राथमिकता राजस्थान को देश में अग्रणी शिक्षा  राज्य बनाने की होनी चाहिए।

उन्होंने पिछले 3-4 माह में शिक्षा क्षेत्र में हुए विशेष प्रयासों की चर्चा करते हुए कहा कि विकास के बीज हमने बो दिए हैं, तो अब परिणाम भी आएगा ही। उन्होंने नामांकन और गुणवत्ता को एक दूसरे का पूरक बताते हुए शिक्षकों को केवल वेतनभागी बनकर कार्य करने की बजाय शिक्षा के पवित्र उद्देश्य के लिए कार्य करने पर जोर दिया।

उन्होंने सभी को शैक्षिक विकास के राष्ट्रीय यज्ञ में आहूति प्रदान करने का आह्वान किया। उन्होंने सेवानिवृत अध्यापकों से भी अपील की कि कि वे अपने क्षेत्र के स्कूल में गुणवत्ता और नामांकन वृद्धि में अपना योगदान दे। उन्होंने कहा कि मास्टर शब्द की संधी विच्छेद करेंगे तो जो अर्थ आएगा, वह है मां का स्तर। क्या शिक्षक मां के बराबर स्नेह व अपनापा बच्चों को दे रहे है, इस पर भी विचारें।

उन्होंने कहा कि शिक्षक अभिभावक संपर्क योजना के अंतगत नामांकन वृद्धि के लिए गंभीर होकर प्रयास करे। व्यक्तिगत रूचि लेकर अपने विद्यालय के आस-पास के अभिभावकों को राजकीय विद्यालय में प्रवेश कराने के लिए प्रेरित करे। उन्होंने कहा कि नामांकन नहीं बढ़ेगा तो विद्यालय बंद होते चले जाएंगे। इससे बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अभी भी 13 हजार विद्यालय ऐसे हैं, जहां 25 से कम विद्यार्थी हैं। इनके लिए क्या किया जा सकता है, इस पर विचारें।

उन्होंने सवाल किया कि जब सरकारी विद्यालय में योग्य शिक्षक पदस्थापित हैं, उनका वेतन भी निजी के मुकाबले कईं गुना ज्यादा है, वहां सुविधाएं भी अधिक है, फिर ऐसी स्थितियां क्यों है कि लोग निजी विद्यालयों में अपने बालकों का प्रवेश कराना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि प्रयास इस तरह से हों कि लोग पहले राजकीय विद्यालय में अपने बच्चों को दाखिला कराएं और बाद में वहां स्थान नहीं होने पर वे निजी विद्यालयों का रूख करें। उन्होंने सरकारी स्कूलों के प्रति बने नकारात्मक भावों को दूर करने के लिए वातावरण बनाए जाने पर भी जोर दिया।

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