‘रोहतक की मर्दानियों’ के मामले ने खड़े किए कई सवाल
हरियाणा के रोहतक में एक बस में दो बहनों के साथ कथित छेड़खानी किए जाने के बाद दोनों बहनों (पूजा-आरती) के द्वारा लड़कों की जमकर धुनाई किए जान...
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हरियाणा के रोहतक में एक बस में दो बहनों के साथ कथित छेड़खानी किए जाने के बाद दोनों बहनों (पूजा-आरती) के द्वारा लड़कों की जमकर धुनाई किए जाने के बाद इन लड़कियों की बहादुरी के चर्चे देशभर में हुए और इन्हें सुर्खियों में जगह मिली। इसके ठीक दो दिन बाद इन्हीं लड़कियों का पिछले महिने में ही ठीक इसी प्रकार का एक ओर वीडियो सामने आया, जिसमें ये लड़कियां एक पार्क में एक लड़के की धुनाई करती हुई नजर आ रही हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद अब ये लड़कियां खुद सवालों के घेरे में हैं। हालांकि, इस बात से इन्कार नहीं किया नहीं जा सकता कि लड़कियों के साथ की जाने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं के लिहाज से इन लड़कियों ने छेड़छाड़ करने वाले उन लड़कों (अगर वास्तव में उनके साथ छेड़छाड़ की है तो) को बढ़िया सबक सिखाया है। लेकिन, इस मामले में एक ओर जहां इन दोनों लडकियों को सवालों में खड़ा किया है, वहीं दूसरी ओर इस मामले के मुख्य सूत्रदार माना जा रहा देश का मीडिया और कानून व्यवस्था भी कई तरह के सवालों में आ गए हैं। इनमें से कुछ मुख्य सवाल इस प्रकार है :
सवाल 1 : क्या कानून व्यवस्था मीडिया के आधार पर चलने लगी है, जो पुलिस के द्वारा बिना किसी तरह की कोई पूछताछ और पड़ताल किए ही लड़कों को आरोपी मानते हुए थाने ले जाया गया। कानून के नजरिए से देखा जाए तो, बस में मारपीट के मामले में अगर इन लड़कियों की जगह अगर कोई लड़के होते तो, जाहिर सी बात है पुलिस वाले दोनों पक्षों से ही पूछताछ कर जांच के बाद ही किसी को आरोपी मानते और कार्रवाई करते। लेकिन यहां मामला लड़कियों का था, सो पुलिस वालों ने केवल एक पक्ष को ही आरोपी माना और थाने तक ले गई। क्या यह कानून के हिसाब से सही है?
सवाल 2 : अगर इन लड़कियों के साथ उन लड़कों ने वास्तव में किसी तरह की कोई छेड़खानी की होती तो क्या बस में बैठी इतनी सवारियों (जिनमें कुछ महिलाएं भी थी) में से कोई भी इन लड़कियों का पक्ष नहीं लेता। तो क्या बस में कोई और सवारियां नहीं थी?
सवाल 3 : लड़कियों के द्वारा इस घटना से पहले का भी एक वीडियो सामने आया, जिसमें ये दोनों लड़कियां एक पार्क में बैठे लड़के की धुनाई करती नजर आ रही है। दोनों वीडियो में बहुत कुछ समानताएं है कि, दोनों वीडियों में ये नहीं दिखाया गया है कि लड़कों ने आखिर उनके साथ छेड़खानी की क्या थी। इसके अलावा दोनों ही वीडियो प्रीसेट तरीके से शूट किए हुए लगते हैं।
सवाल 4 : दोनों ही वीडियो में यह लड़कियां लड़कों की धुनाई करते नजर आ रही है, जिसका मतलब है वीडियो शूट करने वाला/वाली कोई और है। जबकि इस मामले में वीडियो शूट करने वाले का बयान ही सबसे अहम है तो फिर वीडियो शूट करने वाले उस शख्स और उसके बयान को सामने क्यों नहीं लाया गया?
सवाल 5 : बकौल, बस के कंडक्टर, बस में मारपीट चाहे किसी भी बात पर शुरू हुई और मारपीट को बढ़ता हुआ देखकर बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने झगड़ा नहीं करने और पुलिस बुलाने की बात कही थी, जिस पर इन लड़कियों ने पुलिस को बुलाने से इन्कार कर दिया। तो क्या वजह थी कि इन लड़कियों ने पुलिस को बुलाने से इन्कार कर दिया और खुद ही धुनाई शुरू कर दी?
सवाल 6 : इस मामले में मीडिया भी सवालों से घिरा है। घटना के बाद मीडिया ने बस में इन लड़कियों के द्वारा की गई मारपीट को बहादुरी बताते हुए लड़कियों की तो बाइट ले ली, लेकिन बस में सफर करने वाली अन्य सवारियों और सबसे अहम तो इस वीडियो को शूट करने वाले शख्स की बाइट क्यों नहीं ली। क्या मीडिया का ये दायित्व नहीं बनता कि किसी भी घटना से संबंधित दोनों पक्षों की बात को जनता के सामने रखा जाकर वास्तविकता बताई जाए। मीडिया धर्म के नजरिए से देखा जाए तो, बेहतर होता कि मर्द-औरत की भावना से आहत होने के बजाय इस घटना को भी अन्य खबरों की तरह लिया जाता और दोनों पक्षों के समेत प्रत्यक्षदर्शियों की बात भी सबके सामने रखी जाती।
बहरहाल, ऐसे में टीआरपी दौड़ में सबसे तेज बनने की चाहत में मीडिया के द्वारा भावनाओं से आहत होकर अपने कर्तव्य से विमुख होना ही वर्तमान समय में मीडिया के लिए अभिशाप बनता जा रहा है और मीडिया जैसे कर्तव्यपरायण क्षेत्र की छवि धूमिल हो रही है।
बस में हुई मारपीट का वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें
पार्क में हुई मारपीट का वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें
सवाल 1 : क्या कानून व्यवस्था मीडिया के आधार पर चलने लगी है, जो पुलिस के द्वारा बिना किसी तरह की कोई पूछताछ और पड़ताल किए ही लड़कों को आरोपी मानते हुए थाने ले जाया गया। कानून के नजरिए से देखा जाए तो, बस में मारपीट के मामले में अगर इन लड़कियों की जगह अगर कोई लड़के होते तो, जाहिर सी बात है पुलिस वाले दोनों पक्षों से ही पूछताछ कर जांच के बाद ही किसी को आरोपी मानते और कार्रवाई करते। लेकिन यहां मामला लड़कियों का था, सो पुलिस वालों ने केवल एक पक्ष को ही आरोपी माना और थाने तक ले गई। क्या यह कानून के हिसाब से सही है?
सवाल 2 : अगर इन लड़कियों के साथ उन लड़कों ने वास्तव में किसी तरह की कोई छेड़खानी की होती तो क्या बस में बैठी इतनी सवारियों (जिनमें कुछ महिलाएं भी थी) में से कोई भी इन लड़कियों का पक्ष नहीं लेता। तो क्या बस में कोई और सवारियां नहीं थी?
सवाल 3 : लड़कियों के द्वारा इस घटना से पहले का भी एक वीडियो सामने आया, जिसमें ये दोनों लड़कियां एक पार्क में बैठे लड़के की धुनाई करती नजर आ रही है। दोनों वीडियो में बहुत कुछ समानताएं है कि, दोनों वीडियों में ये नहीं दिखाया गया है कि लड़कों ने आखिर उनके साथ छेड़खानी की क्या थी। इसके अलावा दोनों ही वीडियो प्रीसेट तरीके से शूट किए हुए लगते हैं।
सवाल 4 : दोनों ही वीडियो में यह लड़कियां लड़कों की धुनाई करते नजर आ रही है, जिसका मतलब है वीडियो शूट करने वाला/वाली कोई और है। जबकि इस मामले में वीडियो शूट करने वाले का बयान ही सबसे अहम है तो फिर वीडियो शूट करने वाले उस शख्स और उसके बयान को सामने क्यों नहीं लाया गया?
सवाल 5 : बकौल, बस के कंडक्टर, बस में मारपीट चाहे किसी भी बात पर शुरू हुई और मारपीट को बढ़ता हुआ देखकर बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने झगड़ा नहीं करने और पुलिस बुलाने की बात कही थी, जिस पर इन लड़कियों ने पुलिस को बुलाने से इन्कार कर दिया। तो क्या वजह थी कि इन लड़कियों ने पुलिस को बुलाने से इन्कार कर दिया और खुद ही धुनाई शुरू कर दी?
सवाल 6 : इस मामले में मीडिया भी सवालों से घिरा है। घटना के बाद मीडिया ने बस में इन लड़कियों के द्वारा की गई मारपीट को बहादुरी बताते हुए लड़कियों की तो बाइट ले ली, लेकिन बस में सफर करने वाली अन्य सवारियों और सबसे अहम तो इस वीडियो को शूट करने वाले शख्स की बाइट क्यों नहीं ली। क्या मीडिया का ये दायित्व नहीं बनता कि किसी भी घटना से संबंधित दोनों पक्षों की बात को जनता के सामने रखा जाकर वास्तविकता बताई जाए। मीडिया धर्म के नजरिए से देखा जाए तो, बेहतर होता कि मर्द-औरत की भावना से आहत होने के बजाय इस घटना को भी अन्य खबरों की तरह लिया जाता और दोनों पक्षों के समेत प्रत्यक्षदर्शियों की बात भी सबके सामने रखी जाती।
बहरहाल, ऐसे में टीआरपी दौड़ में सबसे तेज बनने की चाहत में मीडिया के द्वारा भावनाओं से आहत होकर अपने कर्तव्य से विमुख होना ही वर्तमान समय में मीडिया के लिए अभिशाप बनता जा रहा है और मीडिया जैसे कर्तव्यपरायण क्षेत्र की छवि धूमिल हो रही है।
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