मंगल की सतह पर मिले पानी के और सबूत
वॉशिंगटन। मंगल की सतह पर पानी की मौजूदगी के एक बार फिर नए साक्ष्य मिले हैं। खगोल वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल को पृथ्वी पर उल्कापिं...
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वॉशिंगटन। मंगल की सतह पर पानी की मौजूदगी के एक बार फिर नए साक्ष्य मिले हैं। खगोल वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल को पृथ्वी पर उल्कापिंडों में ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि मंगल की सतह के निकट एक अलग और वैश्विक जलस्रोत या बर्फ का स्रोत है।
हालांकि इस पर विवाद रहा है कि मंगल पर पानी कहां पर और कितनी मात्रा में है। मगर ताजा खोज से यह सवाल सुलझाने में मदद मिल सकती है कि आखिर मंगल से गायब हुआ पानी कहां गया? रिसर्चरों ने बताया कि पानी के स्रोतों का वजूद जलवायु के इतिहास और मंगल पर जीवन की संभावना को समझने के लिए भी अहम साबित हो सकता है।
जापान में तोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के तोमोहीरो उसुई ने कहा कि मंगल के उल्कापिंडों (मीटियोराइट) की पिछली स्टडीज में तीसरे ग्रह से जुड़े जलस्रोत के संकेत मिलते रहे हैं लेकिन हमारे नए आंकड़ों के लिए पानी या बर्फ के स्रोत का अस्तित्व होना जरूरी है, उसमें भी मंगल से जुड़े नमूनों के सेट से बदलाव पता लगता है।
उसुई रिसर्च पेपर के लेखक हैं और नासा : लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टीट्यूट के पूर्व पोस्ट डॉक्टरल फेलो हैं। उसुई ने कहा कि इस स्टडी से पहले तक सतह पर इस जलस्रोत के अस्तित्व का या फिर मंगल की सतह से पृथ्वी पर आने वाली चट्टानों के साथ इस जलस्रोत के संपर्क का कोई प्रत्यक्ष सबूत मौजूद नहीं था।
प्राप्त नमूनों में हाइड्रोजन एटम्स से बना पानी दिखाया गया है, जिसमें इसके समरूपों का एक ऐसा अनुपात है, जो लाल ग्रह के मेंटल (आवरण) और मौजूदा वायुमंडल में पाए जाने वाले जल से अलग है। माउंट शार्प नामक क्षेत्र में क्यूरॉसिटी के आकलन से संकेत मिलते हैं कि मंगल ने एक अहम समय के भीतर धीमे-धीमे अपना पानी खो दिया। रिसर्च से जुड़े ये नतीजे अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स नामक मैगजीन में छपे हैं।
हालांकि इस पर विवाद रहा है कि मंगल पर पानी कहां पर और कितनी मात्रा में है। मगर ताजा खोज से यह सवाल सुलझाने में मदद मिल सकती है कि आखिर मंगल से गायब हुआ पानी कहां गया? रिसर्चरों ने बताया कि पानी के स्रोतों का वजूद जलवायु के इतिहास और मंगल पर जीवन की संभावना को समझने के लिए भी अहम साबित हो सकता है।
जापान में तोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के तोमोहीरो उसुई ने कहा कि मंगल के उल्कापिंडों (मीटियोराइट) की पिछली स्टडीज में तीसरे ग्रह से जुड़े जलस्रोत के संकेत मिलते रहे हैं लेकिन हमारे नए आंकड़ों के लिए पानी या बर्फ के स्रोत का अस्तित्व होना जरूरी है, उसमें भी मंगल से जुड़े नमूनों के सेट से बदलाव पता लगता है।
उसुई रिसर्च पेपर के लेखक हैं और नासा : लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टीट्यूट के पूर्व पोस्ट डॉक्टरल फेलो हैं। उसुई ने कहा कि इस स्टडी से पहले तक सतह पर इस जलस्रोत के अस्तित्व का या फिर मंगल की सतह से पृथ्वी पर आने वाली चट्टानों के साथ इस जलस्रोत के संपर्क का कोई प्रत्यक्ष सबूत मौजूद नहीं था।
प्राप्त नमूनों में हाइड्रोजन एटम्स से बना पानी दिखाया गया है, जिसमें इसके समरूपों का एक ऐसा अनुपात है, जो लाल ग्रह के मेंटल (आवरण) और मौजूदा वायुमंडल में पाए जाने वाले जल से अलग है। माउंट शार्प नामक क्षेत्र में क्यूरॉसिटी के आकलन से संकेत मिलते हैं कि मंगल ने एक अहम समय के भीतर धीमे-धीमे अपना पानी खो दिया। रिसर्च से जुड़े ये नतीजे अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स नामक मैगजीन में छपे हैं।