आरटीई एक्ट का उड़ रहा मखौल
कोटपूतली (अनिल कुमार शर्मा)। सरकार के शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अनिवार्य व नि:शुल्क शिक्षा प्रदान...
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कोटपूतली (अनिल कुमार शर्मा)। सरकार के शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अनिवार्य व नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने का दावा शिक्षा विभाग के अधिकारियों की अनदेखी के चलते दिखावा साबित हो रहा है।
शिक्षा का शत प्रतिशत लक्ष्य हांसिल करने के लिए हर वर्ष राज्य सरकार द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को पाठशाला से जोड़ने के लिए शिक्षा विभाग को आदेश जारी कर प्रत्येक गांव में शिक्षा से वंचित बच्चों का सर्वे भी करवाती है तथा कोई भी बच्चा आऊट आफ स्कूल न हो इसके लिए कड़े निर्देश भी जारी किए हुए है। लेकिन सर्वे का काम करने वाले अध्यापक शिक्षा से वंचित कुछ बच्चों का नाम रजिस्टर में तो अंकित कर देते है। लेकिन ऐसे बच्चों को अक्षर ज्ञान प्रदान करने के लिए विद्यालय की राह दिखाने की कोशिश ही नही की जाती है।
हकीकत तो यह है कि आज भी क्षेत्र में शिक्षा से वंचित बच्चों का सारा दिन गाय, भैंस व भेड़-बकरियां चराने में ही बीत रहा है। जिस उम्र में बच्चों के हाथ में कलम व किताब एवं पीठ पर बस्ता होना चाहिये उसी उम्र में गरीबी में जीवनयापन कर रहे सैकड़ों बच्चे हाथ में कटोरा लेकर दिनभर बाजारों में गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगते नजर आते हैं या कचरे के ढ़ेर में प्लास्टिक बीनने का कार्य करने, सिर पर भारी वजन रखकर उसे ढोने को मजबूर है।
इसे अधिकारियों की लापरवाही कहे या पापी पेट का सवाल कहें जो अधिकारियों की नजर ऐसे बच्चों पर पड़ने के बावजूद भी इन्हे स्कूलों से नही जोड़ा जाता, जिससे इन बच्चों का भविष्य अंधकार की ओर तो अग्रसर हो ही रहा है, वहीँ शिक्षा के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने पर भी राज्य सरकार का अनिवार्य शिक्षा व सब पढ़े-आगे बढ़े का सपना साकार नही हो पा रहा है।
ये है सुविधा : प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक तबके के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए अनेक सरकारी सुविधाए भी मुहैया करवाई जा रही है। सरकार द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आठवी कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा, मुफ्त पोशाक, अनूसूचित एवं बीपीएल परिवार के बच्चों को प्रोत्साहन राशी, मध्याह्न भोजन की व्यवस्था, अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राओं को भी प्रोत्साहन राशी की सुविधा, सभी स्कूलों में डीटीएच के माध्यम से विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा तथा सीडब्ल्यूएसएन छात्र-छात्राओं के लिए नि:शुल्क शारीरिक चैकअप एवं शौचालय की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है। जिन पर सरकार का प्रति वर्ष करोड़ों रूपए खर्च हो रहा है। लेकिन अधिकारियों व कुछ अध्यापकों की लापरवाही के कारण सरकार की इन तमाम सुविधाओं का मोह भी क्षेत्र में मौजूद शिक्षा से वंचित सैकड़ों से भी अधिक बच्चों को स्कूल से नही जोड़ पा रहा है, जिससे इन बच्चों का भविष्य अज्ञानता के अंधेरे में ही बीत रहा है।
यह है नियम : शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत यदि किसी भी गांव व ढ़ाणी में शिक्षा से वंचित बच्चा हो तो उसका तत्काल स्कूल में नामांकन करने का प्रावधान है। वही ईंट-भठठा, थड़ी-ठैलों, होटलों आदि पर काम करने वाले मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चों को नियर बाई स्कूल में स्थानांतरित करने तथा स्कूल से कार्यस्थल की दूरी अधिक होने पर बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा वाहन सुविधा का प्रबंध करने का भी प्रावधान है।
शिक्षा का शत प्रतिशत लक्ष्य हांसिल करने के लिए हर वर्ष राज्य सरकार द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को पाठशाला से जोड़ने के लिए शिक्षा विभाग को आदेश जारी कर प्रत्येक गांव में शिक्षा से वंचित बच्चों का सर्वे भी करवाती है तथा कोई भी बच्चा आऊट आफ स्कूल न हो इसके लिए कड़े निर्देश भी जारी किए हुए है। लेकिन सर्वे का काम करने वाले अध्यापक शिक्षा से वंचित कुछ बच्चों का नाम रजिस्टर में तो अंकित कर देते है। लेकिन ऐसे बच्चों को अक्षर ज्ञान प्रदान करने के लिए विद्यालय की राह दिखाने की कोशिश ही नही की जाती है।
हकीकत तो यह है कि आज भी क्षेत्र में शिक्षा से वंचित बच्चों का सारा दिन गाय, भैंस व भेड़-बकरियां चराने में ही बीत रहा है। जिस उम्र में बच्चों के हाथ में कलम व किताब एवं पीठ पर बस्ता होना चाहिये उसी उम्र में गरीबी में जीवनयापन कर रहे सैकड़ों बच्चे हाथ में कटोरा लेकर दिनभर बाजारों में गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगते नजर आते हैं या कचरे के ढ़ेर में प्लास्टिक बीनने का कार्य करने, सिर पर भारी वजन रखकर उसे ढोने को मजबूर है।
इसे अधिकारियों की लापरवाही कहे या पापी पेट का सवाल कहें जो अधिकारियों की नजर ऐसे बच्चों पर पड़ने के बावजूद भी इन्हे स्कूलों से नही जोड़ा जाता, जिससे इन बच्चों का भविष्य अंधकार की ओर तो अग्रसर हो ही रहा है, वहीँ शिक्षा के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने पर भी राज्य सरकार का अनिवार्य शिक्षा व सब पढ़े-आगे बढ़े का सपना साकार नही हो पा रहा है।
ये है सुविधा : प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक तबके के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए अनेक सरकारी सुविधाए भी मुहैया करवाई जा रही है। सरकार द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आठवी कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा, मुफ्त पोशाक, अनूसूचित एवं बीपीएल परिवार के बच्चों को प्रोत्साहन राशी, मध्याह्न भोजन की व्यवस्था, अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राओं को भी प्रोत्साहन राशी की सुविधा, सभी स्कूलों में डीटीएच के माध्यम से विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा तथा सीडब्ल्यूएसएन छात्र-छात्राओं के लिए नि:शुल्क शारीरिक चैकअप एवं शौचालय की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है। जिन पर सरकार का प्रति वर्ष करोड़ों रूपए खर्च हो रहा है। लेकिन अधिकारियों व कुछ अध्यापकों की लापरवाही के कारण सरकार की इन तमाम सुविधाओं का मोह भी क्षेत्र में मौजूद शिक्षा से वंचित सैकड़ों से भी अधिक बच्चों को स्कूल से नही जोड़ पा रहा है, जिससे इन बच्चों का भविष्य अज्ञानता के अंधेरे में ही बीत रहा है।
यह है नियम : शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत यदि किसी भी गांव व ढ़ाणी में शिक्षा से वंचित बच्चा हो तो उसका तत्काल स्कूल में नामांकन करने का प्रावधान है। वही ईंट-भठठा, थड़ी-ठैलों, होटलों आदि पर काम करने वाले मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चों को नियर बाई स्कूल में स्थानांतरित करने तथा स्कूल से कार्यस्थल की दूरी अधिक होने पर बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा वाहन सुविधा का प्रबंध करने का भी प्रावधान है।