जनता ने जताया विश्वास, अब आपकी है बारी
जयपुर ( पवन टेलर )। देश में भाजपामयी लहर के चलते पहले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकारें चुनने...
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जयपुर (पवन टेलर)। देश में भाजपामयी लहर के चलते पहले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकारें चुनने के बाद अब जनता ने निकाय चुनाव में भी एक बार फिर से भाजपा पर अपना विश्वास जताते हुए भाजपा को विजय श्री दिलाई है और प्रदेश के अधिकांश नगर निकायों पर भाजपा का बोर्ड बनाने की राह बनाई है।
जनता के द्वारा लगातार भाजपा को सत्ता में काबिज करने और अपना प्रतिनिधित्व सौंपने के बाद अब जनप्रतिनिधियों की बारी है कि वे जनता के विश्वास पर खरे उतरे और उनकी उम्मीदों-आशाओं को पूरा करने का हर संभव प्रयास करें। क्षेत्रीय मुद्दों के साथ जनता के बीच चुनावी वादों का पिटारा लेकर उतरने के बाद जब जनता उन्हें उन सभी वादों को पूरा करने के लिए मौका देती है और अपना प्रतिनिधित्व सौंपने के साथ ही अपने क्षेत्र में होने वाली तमाम तरह की समस्याओं को मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की उम्मीद भी रखती है, जिसे उन जनप्रतिनिधियों के द्वारा पूरा करने की आस होती है, लेकिन वही जनप्रतिनिधि जब उनकी आशाओं के अनुरूप कार्य ना करें और उनकी उम्मीदों के साथ-साथ उनसे किए वादों को भी भूल जाए तो फिर क्या? जाहिर सी बात है ‘काठ की हांडी बस एक बार ही चढ़ती है’ वाली कहावत चरितार्थ होने लगती है और दोबारा वैसे प्रतिनिधि चुनने का ख्याल भी लोग अपने दिलो-दिमाग से निकाल देते हैं।
मौजूदा परिपेक्ष्य में अब जब देश के नागरिक ने अपनी गली से लेकर संसद के गलियारे तक भाजपा को सत्ता चाबी सौंपी है और वह भी अमूमन सभी जगहों पर प्रचंड बहुमत के साथ, तो फिर ऐसे में सत्ता में काबिज होने वाले राजनीतिक दल और उन दलों के उम्मीदवारों से जनता की जो अपेक्षाएं और उम्मीदें होती है वह कई गुना बढ़ जाती है, क्योंकि केन्द्र और राज्य सरकार में अलग-अलग दलों की सरकार होने की बात विकास की राह में एक रोड़ा सा बन जाती है। शायद इस बार जनता ने भी राजनेताओं और राजनीतिक दलों के द्वारा दी जाने वाली इस दलील को समझ लिया है और विकास की राह में रोड़ा बनने वाले इस बहाने को ही खत्म कर दिया है।
अब केन्द्र से लेकर ना सिर्फ राज्य तक बल्कि अपने नगर निकाय में भी जनता ने एक ही राजनीतिक दल को सत्ता सौंप दी है, तो ऐसे में जनप्रतिनिधियों के द्वारा जनता की उम्मीदों और आशाओं को पूरा करना ना सिर्फ उनका दायित्व ही बन जाती है बल्कि अपनी और अपनी पार्टी की साख को बनाए रखने का कर्तव्य भी इसके साभ जुड़ जाता है, जिसे जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की जनता के बीच हमेशा अपनी मौजूदगी दर्शाते हुए क्षेत्र की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने और समस्याओं का समाधान करने के साथ ही अपने क्षेत्र से जुड़ाव रखते हुए विकास की राह में अग्रसर करके ही पूरा कर सकता है। क्योंकि जनता के द्वारा जनप्रतिनिधि पर विश्वास जताए जाने के बाद उनकी बारी आती है कि वे भी सत्ता के मद में मदहोश होने के बजाए जनता के उस विश्वास पर खरे उतरे और जनता के विश्वास और उम्मीदों को पूरा करने के लिए समर्पित भाव से सच्चे मन से भरसक प्रयास करने में जुट जाए।
जनता के द्वारा लगातार भाजपा को सत्ता में काबिज करने और अपना प्रतिनिधित्व सौंपने के बाद अब जनप्रतिनिधियों की बारी है कि वे जनता के विश्वास पर खरे उतरे और उनकी उम्मीदों-आशाओं को पूरा करने का हर संभव प्रयास करें। क्षेत्रीय मुद्दों के साथ जनता के बीच चुनावी वादों का पिटारा लेकर उतरने के बाद जब जनता उन्हें उन सभी वादों को पूरा करने के लिए मौका देती है और अपना प्रतिनिधित्व सौंपने के साथ ही अपने क्षेत्र में होने वाली तमाम तरह की समस्याओं को मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की उम्मीद भी रखती है, जिसे उन जनप्रतिनिधियों के द्वारा पूरा करने की आस होती है, लेकिन वही जनप्रतिनिधि जब उनकी आशाओं के अनुरूप कार्य ना करें और उनकी उम्मीदों के साथ-साथ उनसे किए वादों को भी भूल जाए तो फिर क्या? जाहिर सी बात है ‘काठ की हांडी बस एक बार ही चढ़ती है’ वाली कहावत चरितार्थ होने लगती है और दोबारा वैसे प्रतिनिधि चुनने का ख्याल भी लोग अपने दिलो-दिमाग से निकाल देते हैं।
मौजूदा परिपेक्ष्य में अब जब देश के नागरिक ने अपनी गली से लेकर संसद के गलियारे तक भाजपा को सत्ता चाबी सौंपी है और वह भी अमूमन सभी जगहों पर प्रचंड बहुमत के साथ, तो फिर ऐसे में सत्ता में काबिज होने वाले राजनीतिक दल और उन दलों के उम्मीदवारों से जनता की जो अपेक्षाएं और उम्मीदें होती है वह कई गुना बढ़ जाती है, क्योंकि केन्द्र और राज्य सरकार में अलग-अलग दलों की सरकार होने की बात विकास की राह में एक रोड़ा सा बन जाती है। शायद इस बार जनता ने भी राजनेताओं और राजनीतिक दलों के द्वारा दी जाने वाली इस दलील को समझ लिया है और विकास की राह में रोड़ा बनने वाले इस बहाने को ही खत्म कर दिया है।
अब केन्द्र से लेकर ना सिर्फ राज्य तक बल्कि अपने नगर निकाय में भी जनता ने एक ही राजनीतिक दल को सत्ता सौंप दी है, तो ऐसे में जनप्रतिनिधियों के द्वारा जनता की उम्मीदों और आशाओं को पूरा करना ना सिर्फ उनका दायित्व ही बन जाती है बल्कि अपनी और अपनी पार्टी की साख को बनाए रखने का कर्तव्य भी इसके साभ जुड़ जाता है, जिसे जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की जनता के बीच हमेशा अपनी मौजूदगी दर्शाते हुए क्षेत्र की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने और समस्याओं का समाधान करने के साथ ही अपने क्षेत्र से जुड़ाव रखते हुए विकास की राह में अग्रसर करके ही पूरा कर सकता है। क्योंकि जनता के द्वारा जनप्रतिनिधि पर विश्वास जताए जाने के बाद उनकी बारी आती है कि वे भी सत्ता के मद में मदहोश होने के बजाए जनता के उस विश्वास पर खरे उतरे और जनता के विश्वास और उम्मीदों को पूरा करने के लिए समर्पित भाव से सच्चे मन से भरसक प्रयास करने में जुट जाए।