चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की खुली पोल, दौसा में बढ़ा चिकनपोक्स का प्रकोप

दौसा। केन्द्र व राज्य सरकार के द्वारा भले ही चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इन तमाम योजनाओं की ...

दौसा। केन्द्र व राज्य सरकार के द्वारा भले ही चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इन तमाम योजनाओं की उस समय कलई खुल गई, जब जिला मुख्यालय की ही एक ढाणी में चिकनपोक्स से पीड़ित करीब बीस बच्चे पाए गए। इस ढाणी में पिछले कई बरसों से टीकारण ही नहीं हुआ, जिसके कारण बच्चों को चिकनपोक्स ने अपनी चपेट में ले लिया।

चिकनपोक्स जिसे राजस्थान में माता के रूप में देखते हैं एवं रूढ़ीवादी परम्पराओं के चलते बच्चों के हाथों में दवा के बजाय चाकू लेकर बीमारी से लड़ने का प्रयास किया जाता है ठीक वैसे ही यहां का आलम है। इन बच्चों को तेल और चिकनाईयुक्त खाना नहीं दिया जा रहा है और ना ही इन्हे स्नान आदि कराया जा रहा है। दर्द से कराहते ये बच्चे जानकारी के अभाव में इस बीमारी से जूझ रहे हैं।

गौरतलब है कि क्षेत्र को चिकनपोक्स मुक्त माना जा रहा है और चिकनपोक्स के मामले बहुत कम ही सामने आते हैं, लेकिन जिस तरह जिला मुख्यालय की एक ढाणी में यह मामला सामने आने के बाद विभाग की कार्यशैली को संदेह के घेरे में ला दिया है। इस बात की जानकारी मिलते ही चिकित्सा विभाग की टीम गांव में पहुंची और बच्चों की जांच पड़ताल के बाद उनमें चिकनपोक्स होने की पुष्टी की। गुरूवार को यहां चिकित्सा विभाग की विशेष टीम आकर गांव में टीकाकरण करेगी। 

दौसा रेलवे ट्रैक के समीप जम्बूरा की ढाणी में चिकनपोक्स ने पांव पसार दिए है। यहां पिछले दो माह से बच्चों को चिकनपोक्स ने अपनी चपेट में ले लिया है। पिछले कई वर्षो से इस ढाणी में टीकाकरण तक नहीं किया गया है, जिसके कारण इस ढाणी के राहुल, कविता, सुरेन्द्र, सपना, गोलू, राहुल, विजेन्द्र, अभिषेक, सीमा, सन्नो, आशा, रोहित, रोशन, कष्णावतार सहित करीब बीस बच्चे शामिल है।

जम्बूरा की ढाणी निवासी मीठालाल ने बताया कि करीब सबसे पहले कष्णावतार को शरीर में फुन्सियां होनी शुरू हुई उसके बाद एक कर बच्चे इसकी चपेट में आते गए। अब तक करीब बीस बच्चों को यह बीमारी हो चुकी है और बीमारी का फैलना जानी है।

रूढ़िवादी परम्पराएं :चिकनपोक्स को राजस्थान में माता के रूप में देखते है और उसी के अनुरूप यहां आज भी रूढ़ीवादी परम्पराएं कायम है। चिकनपोक्स से पीड़ित परिवार के सदस्य मीठालाल का कहना है कि ऐसा ही कुछ उनके यहां भी किया जा रहा हैं, जिसमें बच्चों को तेल या चिकनाई से बनी चीजें नहीं दी जाती और ना ही स्नान आदि कराया जाता है। बच्चों को उपरी हवाओं से बचाने के लिए हाथों में चाकू आदि पकड़ा दिया जाता है और उसे अकेला नहीं छोड़ते।

स्कूल जा रहे चिकनपोक्स से पीड़ित बच्चे :चिकनपोक्स से पीड़ित बच्चे पढ़ाई के लिए स्कूलों में जा रहे हैं,  जिससे यह बिमारी फैलने का अंदेशा बढ़ गया है। हालांकि एहतियात के तौर पर अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल नहीं भेजा, लेकिन शिक्षकों के दबाव बनाए जाने के बाद बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे हैं।



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