एक पत्रकार की व्यथा और पत्रकारिता का कटु सत्य

वो देखो एक पत्रकार जा रहा है... जिँदगी से हारा हुआ है... पर काम से हार नही मानता, अपनी स्टोरी की एक-एक लाईन इसे रटी हुई है.. पर आज ...

वो देखो एक पत्रकार जा रहा है...
जिँदगी से हारा हुआ है...
पर काम से हार नही मानता,

अपनी स्टोरी की एक-एक लाईन इसे रटी हुई है..
पर आज कौन से रंग के मोजे पहने है ये नही जानता...

दिन पर दिन इधर उधर डोलता जा रहा है..
वो देखो एक पत्रकार जा रहा है...
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10,000 अच्छाइयो में से भी एक गलती ढूंढ लेता है....
लेकिन बीवी की आँखो की नमी दिखाई नही देती..

कम्प्यूटर पर हजार विन्डो खुली है...
पर दिल की खिडकी पे कोई दस्तक सुनाई नही देती,
रिर्पोटिँग करते करते पता ही नही चला बोस कब माँ बाप से बढकर हो गया है..
किताबो मेँ गुलाब रखने वाला खबरों में खो गया
दिल की जमीँ से अरमां विदा हो गया..

सैलरी मिलने पर वडापाव खाकर जश्न मना रहा है...
वो देखो एक पत्रकार जा रहा है...।।
Dedicated to all patrkar

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