शिविर के दौरान आर्यवीर सीख रहे है आत्म रक्षा के गुर
बालोतरा। महर्षि दयानंद सरस्वती की ओर से स्थापित आर्य समाज की युवा इकाई आर्यवीर दल राजस्थान का प्रांतीय षिविर स्थानीय पचपदरा रोड पर स्थित ...
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बालोतरा। महर्षि दयानंद सरस्वती की ओर से स्थापित आर्य समाज की युवा इकाई आर्यवीर दल राजस्थान का प्रांतीय षिविर स्थानीय पचपदरा रोड पर स्थित धोरानाडी में चल रहा है। षिविर में संपूर्ण प्रांत से आए हुए 130 प्रषिक्षाणार्थी आर्यवीर जुड़ों कराटे, आत्म रक्षा के दांव, अस्त्र-शस्त्र व नैतिक षिक्षा एवं देषभक्ति की षिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आर्यवीरों के प्रांत कालीन सत्र को संबोधित करते हुए संगठन के प्रचार मंत्री विमल शास्त्री ने कहा कि संसार में व्यक्ति का चरित्र ही सबसे बड़ा है। चरित्र मानव जीवन का दर्पण है। चरित्र व्यक्ति की आदतों का समूह है। व्यक्ति प्रतिदिन जो कार्य करता है, उसका संस्कार उसके मानस पर पड़ता है। ये संस्कार सुदृढ़ होकर स्वभाव में परिणत हो जाते है। ये आदते ही चरित्र कहलाते है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के लिए देषभक्ति, एकता, श्रम का महत्व, समुचित कर देना, योग्य व्यक्तिों को संस्कार में भेजना, राष्ट्र रक्षा आदि गुणों का समावेष होना चाहिए। चरित्र की यह माला विभिन्न सद्गुण रूपी रत्नों का गुंफन करने से ही सुषोभित होती है। सवाई माधोपुर से आए षिक्षक राजमल आर्य ने षिविर में गीत जीवन में नया उधार-उभार यह षिविर आर्यवीरों का गाकर सबकों मंत्रमुग्ध कर दिया। अलवर के बहरोड के आए रामकृष्ण शास्त्री ने संगठन हम करें आपदों से लड़ें, हमने ठाना हम बदल देंगे। सारा जमाना गीत सुनाया। आर्य समाज के प्रधान बृजमनोहर पिथाणी ने बताया कि षिविर मे आर्य जाति के उत्थान और पतन के कारणों पर प्रकाष डालते हुए राजस्थान आर्यवीर दल के कार्यकारी संचालक देवेंद्र शास्त्री ने कहा कि वैदिक वर्ण व्यवस्था, सूदृढ़ संस्कृति, वैदिक धर्म, एकेष्वरवाद, पुरूषार्थ राष्ट्रप्रेम, स्वी शिक्षा, अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान और यज्ञ हमारी उन्नति के कारण थे। वहीं महाभारत का युद्ध, जन्म से वर्ण व्यवस्था, मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष छुआछुत और आपसी फूट अवनति के मुख्य कारण थे। प्रधान शिक्षक भैरोंसिंह आर्य के नेतृत्व में 15 शिक्षक शिविर में सघनता से प्रषिक्षण दे रहे है।
