सिर्फ कविताओं का हिस्सा नहीं, प्रकृति और स्वास्थ्य का संरक्षक है कदम्ब

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श्रीकृष्ण का मनभावन 'कदंब का पेड़' सिर्फ कविताओं का हिस्सा ही नहीं, बल्कि बहुपयोगी वृक्ष है। इसमें कई तरह के उपयोगी तत्व होते हैं, जिस वजह से इसे ‘देव वृक्ष’ की श्रेणी में शुमार किया गया है। कदंब के पेड़ का वानस्पतिक नाम Neolamarckia Cadamba है। यह मूलतः अंडमान, बंगाल तथा असम में पाया जाता है। इसके अलावा कदम्ब का पेड़ उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान में भी बहुतायत में पाया जाता है। अपने गुणों की वजह से इसे प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य का संरक्षक भी कहा जाता है।

कदंब का वृक्ष 45 मीटर तक ऊंचा हो सकता है, जबकि इसकी मध्यम ऊंचाई 20 से 40 फीट की होती है। इसकी कई जातियां होती हैं, जैसे राजकदंब, धूलिकदंब और कदम्बिका। वर्षा ऋतु में अपनी छटा बिखेरने वाला ये पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर है। कदम्ब के फल, पत्ते, छाल, फूल यहां तक की लकड़ी और जड़ भी काफी उपयोगी होते हैं। बच्चों का हाजमा ठीक करने के लिए कदम्ब के फलों का रस फायदेमंद है।

इस वृक्ष को जहरनाशक भी कहते हैं। जहरीले जीव-जंतु जैसे सांप, बिच्छू के काटने पर इसके पत्तों का रस लगाना लाभदायक होता है। इसकी छाल और पत्तियों का उबालकर उसके पानी से धोने पर घाव भी जल्दी भर जाते हैं। मुंह में छाले हो जाने पर इसके पत्तों को चबाकर लार बाहर आने दें, यह लाभकारी होगा। इसके साथ ही कदम्ब के फलों का पाउडर शारीरिक दुर्बलता भी कम करता है। लगाातार बुखार हो तो इसके छाल का काढ़ा बनाकर पीएं, ज्वर शांत होगा। ये सभी प्रयोग किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए।

औषधीय गुणों के साथ-साथ कदम्ब के पेड़ के और भी कई उपयोग हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कदम्ब के पत्तियों की लंबाई 13 से 23 सेंटीमीटर होती है। इसके पत्ते बडे़ और मोटे होते हैं, जिनसे गोंद निकलता है। इसके फूल काफी आकर्षक होते हैं। यह लाल, पीले और नारंगी रंगों में होते हैं और खुशबूदार होेते हैं। वर्षा ऋतु में जब इसके सारे फूल खिल उठते हैं तो यह वृक्ष अति सुंदर प्रतीत होता है। इसके फूलों का उपयोग इत्र बनाने के लिए भी किया जाता है।

इस पेड़ का तना काफी महंगा होता है। सीधा और नर्म होने की वजह से इसे काटना आसान होता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मकान, नाव और फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है। कदम्ब की जड़ों से पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है। स्वास्थ्य के साथ साथ कदम्ब को प्रकृति का संरक्षक भी कहा जाता है। यह वृक्ष दूसरों की तुलना में काफी तेजी से बढ़ता है। लिहाजा जंगलों को फिर से हरा भरा बनानेे और मिट्टी को उपजाऊ बनाने में यह वृक्ष महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हिन्दू मान्यता में कदम्ब के पेड़ की महिमा को भला कौन भूल सकता है। भगवान श्रीकृष्ण की अठखेलियों के अलावा भी इससे कई कथाएं जुड़ी हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार स्वर्ग से अमृत पीकर लौट रहे भगवान विष्णु के वाहन गरूड़ की चोंच से कुछ बूंद अमृत कदम्ब के पेड़ पर भी गिर गई थी। इसीलिए इसे अमृत तुल्य माना जाता है। इसे भगवान विष्णु, देवी पार्वती, काली और कामदेव का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है।

इस वृक्ष की अद्भुत महिमा की वजह से ही साहित्य में इसका कई जगह उल्लेख किया गया है। खासकर कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा होने के कारण ब्रजभाषा के कई कवियों ने इसे आधार बनाया है। इसी तरह कवि भेरवी, माघ, भवभूति, बाणभ आदि ने भी अपने काव्य में कदम्ब का विशिष्ठ वर्णन किया है।

राजस्थान के भी कई वन अभ्यारणों में कदम्ब के पेड़ पाये जाते है। राजस्थान के जयपुर के हरमाड़ा क्षेत्र में भी कदम्ब के पेड़ हैं इसलिए वहां पर एक पहाड़ का नाम कदम्ब की डूंगरी रखा गया है। इन कदम्ब के पेडों पर राम का नाम लिखा हुआ है। इसी प्रकार भरतपुर में भी कदम्ब के पेड़ से मिलता-जुलता पेड़ मिलता है, परंतु वहां पर कदम्ब के पेड़ को कलम कहा जाता है।


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