फाइलों में घूम रही पॉलिसी, नहीं मिल पाई स्ट्रीट वेण्डर्स को पहचान
https://khabarrn1.blogspot.com/2015/08/street-vendrs-policy-cannot-complete-yet.html
जयपुर। स्ट्रीट वेण्डर्स को फुटपाथ पर स्थायी जगह अथवा थड़ी देने के साथ एक पहचान देने के लिए नंबरीकृत करने का कार्य पूर्व सरकार के समय से अभी तक अटका हुआ है। पिछली सरकार के समय में निकायों और शहरों में कलेक्ट्रेट स्तर पर सूची सौंपने के निर्देश सरकार ने दिए थे, लेकिन अभी तक सरकार ने सड़क किनारे रहने वाले फुटपाथियों के लिए स्थायी जगह उपलब्ध नहीं हो पाई है।
जयपुर में भी मुंबई की तर्ज पर स्ट्रीट वेण्डर्स पॉलिसी बनाई जानी थी, लेकिन सरकार बदलती गई और वेण्डर्स पॉलिसी भी फाइलों में ही घूमती रही, जिससे वेण्डर्स को अभी तक उनकी पहचान दिलाने का कार्य अटका हुआ है।
गौरतलब है कि प्रदेशभर में लाखों फुटकर व्यवसायी सड़क किनारे व्यवसाय कर अपना जीवन-यापन करते हैं। स्थायी जगह, पहचान, आवंटित नंबर नहीं मिलने के कारण कभी पुलिस तो कभी निगम दस्ता इनको उजाड़ देता है, तो गुमटी या छोटी सी थड़ी लगाने के लिए महीने की हफ्ताबंदी भी निगम कर्मचारियों को देनी पड़ती है।
ऐसे में ये लोग मजबूरीवश येन-केन-प्रकारेण अपना व्यवसास चला पाते हैं। इनके तंग हालातों के कारण परिवार में बच्चे भी अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। राजधानी जयपुर में ही हजारों वेण्डर्स चारदीवारी और शहर में सड़कों के किनारे अपना व्यसाय करते हैं।
हालांकि हर बार निगम की कार्रवाई में इनको उजाड़ दिया जाता है और इनका सामान जब्त कर लिया जाता है। लेकिन परिवार पालने की मजबूरी के चलते ये लोग फिर से वहीं पहुंच जाते हैं, जहां पर उनकी दुकान अथवा थड़ी को उजाड़ दिया गया था। ऐसे में दोबारा थड़ी बनवाने और उसमें सामान रखने के लिए उन्हें अतिरिक्त खर्चा वहन करना पड़ता है।
जयपुर में भी मुंबई की तर्ज पर स्ट्रीट वेण्डर्स पॉलिसी बनाई जानी थी, लेकिन सरकार बदलती गई और वेण्डर्स पॉलिसी भी फाइलों में ही घूमती रही, जिससे वेण्डर्स को अभी तक उनकी पहचान दिलाने का कार्य अटका हुआ है।
गौरतलब है कि प्रदेशभर में लाखों फुटकर व्यवसायी सड़क किनारे व्यवसाय कर अपना जीवन-यापन करते हैं। स्थायी जगह, पहचान, आवंटित नंबर नहीं मिलने के कारण कभी पुलिस तो कभी निगम दस्ता इनको उजाड़ देता है, तो गुमटी या छोटी सी थड़ी लगाने के लिए महीने की हफ्ताबंदी भी निगम कर्मचारियों को देनी पड़ती है।
ऐसे में ये लोग मजबूरीवश येन-केन-प्रकारेण अपना व्यवसास चला पाते हैं। इनके तंग हालातों के कारण परिवार में बच्चे भी अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। राजधानी जयपुर में ही हजारों वेण्डर्स चारदीवारी और शहर में सड़कों के किनारे अपना व्यसाय करते हैं।
हालांकि हर बार निगम की कार्रवाई में इनको उजाड़ दिया जाता है और इनका सामान जब्त कर लिया जाता है। लेकिन परिवार पालने की मजबूरी के चलते ये लोग फिर से वहीं पहुंच जाते हैं, जहां पर उनकी दुकान अथवा थड़ी को उजाड़ दिया गया था। ऐसे में दोबारा थड़ी बनवाने और उसमें सामान रखने के लिए उन्हें अतिरिक्त खर्चा वहन करना पड़ता है।