सरकारी विज्ञापनों में राजनेताओं की तस्वीर पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में बुधवार को सरकार तथा इसकी एजेंसियों के विज्ञापनों में मंत्रियों सहित राजनेताओं की तस्वीरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। न्यायालय ने कहा कि यह व्यक्ति पूजा को बढ़ावा देने जैसा है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने हालांकि सरकार तथा इसकी एजेंसियों के विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, देश के प्रधान न्यायाधीश तथा राष्ट्रपिता सहित दिवंगत नेताओं की तस्वीरों का इस्तेमाल करने की इजाजत दी।

न्यायालय ने कहा कि विज्ञापनों में किसी व्यक्ति, नेता या मंत्री के फोटो का इस्तेमाल न सिर्फ उस व्यक्ति को परियोजना से जोड़ता है, बल्कि यह व्यक्ति पूजा को भी बढ़ावा देता है। न्यायालय ने कहा कि यह लोकतंत्र के साथ सीधे तौर पर अन्याय है।

फैसले के मुताबिक, "हमारा यह विचार है कि केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा भारत के प्रधान न्यायाधीश के मामले में ही अपवाद (विज्ञापन में तस्वीर) होना चाहिए।" इस संदर्भ में न्यायालय ने एन.आर.माधवन मेनन समिति की उस सिफारिश को अस्वीकार कर दिया, जिसमें सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल या मुख्यमंत्री की तस्वीर प्रकाशित करने की सिफारिश की गई थी।

न्यायालय ने कहा कि महत्वपूर्ण व्यक्तित्व जैसे देश के राष्ट्रपति की वर्षगांठ मनाने के लिए जारी विज्ञापनों में दिवंगत नेता की तस्वीर होगी। दो गैर सरकारी संगठनों ने केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा सार्वजनिक फंड का इस्तेमाल कर सरकारी विज्ञापन जारी करने पर रोक लगाने के लिए अदालत से निर्देश देने की मांग की थी। उनके मुताबिक, इसका प्राथमिक उद्देश्य सरकार के अलग-अलग पदाधिकारियों या सत्तासीन पार्टी का गुणगान करना होता है।

माधवन मेनन समिति की अधिकांश सिफारिशों को मंजूर कर लिया गया, हालांकि न्यायालय ने प्रत्येक मंत्रालय द्वारा निष्पादन लेखा परीक्षा के संबंध में ओम्बुड्समैन की नियुक्ति तथा चुनाव की पूर्व संध्या पर विज्ञापनों पर प्रतिबंध की सिफारिश को अस्वीकार कर दिया। ओम्बुड्समैन की सिफारिश को अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा, "सरकार को तीन सदस्यीय निकाय का गठन करना चाहिए, जिनके सदस्य स्पष्ट रूप से तटस्थ व निष्पक्ष हों और अपने क्षेत्रों में उन्हें महारत हासिल हो।"

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